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Archive for: December 2012

विकास और बहुमत के ऊंट पर सवार सोणी मन मोहनी सरकार को कोई न कोई काट ही लेता है


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

एक सोश्लाईट

ओये झल्लेया ये कौन सी नई भसुडी पड़ गई है| ओये बलात्कारियों के लिए फांसी की मांग करना भी गुनाह हो गया|एक तो ये पोलिस और सरकार मिल कर भी कानून व्यवस्था को पटरी में नहीं ला पा रहे ऊपर से शांतिपूर्वक आन्दोलन क्या हुआ पोलिस और सरकार दोनों ही पटरी से उतर गए| पोलिस और दिल्ली की सरकार आपस में ही टकराने लग गए |इस अप्रिय घटना क्रम से बचने के लिए अब नया ष्ट्राग शुरू हो गया है | प्रदर्शन स्थलपर बेचारे एक पोलिस कांस्टेबिल सुभाष तोमर की दुखद मौत होने का नाजायज़ फायदा उठा कर हसाडीनई नई “आप” को ही कांस्टेबिल तोमर का कातिल ठहराया जाने लगा हैजबकि ऊपर वाले की कृपा से वहाँ एक प्रत्यक्ष दर्शी योगेन्द्र ने एन डी टी वी पर पोलिस की पोल खोल क़र रख दी है | योगेन्द्र का कहना है कि उसने[योगेन्द्र] ने स्वयम कांस्टेबिल को गिरते हुए देखा था और उन्होंने ही उसे अस्पताल पहुँचाया था |इस आई विटनेस के अनुसार सिपाही खुद भागते हुए गिरा और अस्पताल पहुँचाया गया |ऐसे में सुभाष की मौत को कत्ल बता कर कैसा इन्साफ किया जा रहा है| ओये वोह सिपाही तो बेचारा हार्ट पेशेंट था फिर भी उसको ऐसी कड़ी डयूटी पर लगाया गयाजिसके कारण वोह गिरा | उसकी मौत की तो निष्पक्ष जांच होनी जरूरी है|

झल्ला

पुरानी कहावत है +रिवायत है +सियासत है और उस पर गाना भी बना था कि वोह अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मौड़ देकर छोड़ना अच्छा| लेकिन दुर्भाग्य से जब भाग्य या किस्मत या लक ख़राब हो तो ऊंट पर बैठने पर भी कुत्ता काट ही लेता है|ये हसाडी सोणी मन मोहनी सरकार का भी भाग्य ख़राब चल रहा है|तभी सब कुछ अच्छा होने पर भी इस प्रकार की तोहमत लगती ही जा रही है| और अफसानों को मौड़ देते समय खुद ही भम्भड़ भूसे में पड़ जाते हैं|

विकास के ऊंट पर बैठी सोणी मन मोहनी सरकार को कोई न कोई काट ही लेता है

एल के अडवाणी के नज़रिए से तवलीन सिंह की १० जनपथी “दरबार”

पत्रकार तवलीन सिंह द्वारा गांधी परिवार पर लिखित पुस्तक ‘दरबार‘ पर एल के अडवाणी ने अपने ब्लॉग में प्रतिक्रिया देते हुए पुस्तक को अत्यन्त ही रोचक पठनीय बताया है|इस पुस्तक में पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गे राजिव गाँधी के उत्थान और फिर पतनके माध्यम से 10 जनपथ[कांग्रेस अध्यक्ष] की रहस्यात्मकता या गुप्तता” को उजागर करने का प्रयास किया गया है|

एल के अडवाणी के नज़रिए से तवलीन सिंह की १० जनपथी “दरबार”

प्रस्तुत है अडवानी के ब्लाग से उद्दत दरबार पर उनकी यह प्रतिक्रया ।
तहलका जैसी पत्रिकाओं ने प्रकाशित किया है कि यह पुस्तक गांधी परिवार के विरूध्द ”पुराने हिसाब किताब चुकाने” के उद्देश्य से लिखी गई एक गपशप है। जबकि दूसरी और दि एशियन एज ने पुस्तक की समीक्षा ‘दिल्ली दरबार के रहस्यपूर्ण वातावरण से पर्दा उठना‘ (Unraveling the mystique of Delhi’s Durbar) शीर्षक से प्रकाशित की है। हालांकि कोई भी इससे इंकार नहीं कर सकता कि तवलीन की नवीनतम पुस्तक अत्यन्त ही रोचक पठनीय है।
‘एशियन एज‘ में समीक्षक अशोक मलिक की यह टिप्पणी बिल्कुल सही है कि अपनी सारी पहुंच के बावजूद राजधानी में राजनीतिक पत्रकार अक्सर लुटियन्स दिल्ली के लिए अंतत: बाहरी ही रहते हैं। कम से कम 10 जनपथ के संदर्भ में यह शत-प्रतिशत सत्य है।
अनगिनत समस्याओं वाला भारत एक विशाल देश है। संविधान और कानून सरकार को देश का शासन प्रभावी ढंग से चलाने की सभी जिम्मेदारी प्रदान करते हैं। जैसाकि सभी लोकतंत्रों में लोकतांत्रिक तंत्र का मुखिया प्रधानमंत्री होता है। लेकिन देश में सभी जानते हैं कि आज के भारत में मुखिया प्रधानमंत्री नहीं अपितु कांग्रेस अध्यक्ष हैं। यही वह स्थिति है जो इन दिनों देश की अनेक समस्याओं की मूल जड़ है।
यह पुस्तक अपने पाठकों को बताती है कि एक समय था जब इसकी लेखक का न केवल राजीव गांधी के साथ अपितु श्रीमती सोनिया गांधी के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध था। तब अचानक यह निकटता समाप्त हो गई। अशोक मलिक लिखते हैं : तवलीन की पुस्तक हमें ”10 जनपथ की रहस्यात्मकता या गुप्तता” को समझने में सहायता करती है।
मलिक द्वारा ”इंदिरा गांधी हत्याकाण्ड में राजीव के और सोनिया के सामाजिक मित्रों को फंसाने के विचित्र दुष्टताभरे अभियान” की ओर इंगित करने ने ‘मुझे पुस्तक के अध्याय 14 के उन सभी आठ पृष्ठों को पढ़ने को बाध्य किया‘ जिनपर मलिक की टिप्पणी आधारित है। तवलीन से भी इस सम्बन्ध में इंटेलीजेंस ब्यूरो (आई0बी0) ने पूछताछ की थी। इस प्रकरण के सम्बन्ध में तवलीन का अंतिम पैराग्राफ हमारी गुप्तचर एजेंसियों की काफी निंदा करता है:

”जांच के अंत में, हमारी गुप्तचर एजेंसियों के स्तर के बारे में मुझे गंभीर चिंता हुई। इसलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब कुछ महीने बाद यह जांच कि भारत के प्रधानमंत्री की हत्या में कोई बड़ा षडयंत्र था, को चुपचाप समाप्त होने दिया गया।”
312 पृष्ठों वाले इस संस्मरण की शुरूआत में लेखक का चार पृष्ठीय ‘नोट‘ है। इस पुस्तक में तवलीन सिंह की टिप्पणियों से आप असहमत हो सकते हैं और उनके कुछ निष्कर्षों को चुनौती दे सकते हैं। लेकिन मुझे उनके इस शुरूआती ‘नोट‘ में दम लगता है जिसे इस अंतिम पैराग्राफ में सारगर्भित ढंग से समाहित किया गया है:
”दरबार लिखना मुश्किल था। राजीव गांधी की मृत्यु के तुरंत बाद मैंने इसे लिखना शुरू किया। मैं उन्हें तब से जानती थी जब वह एक राजनीतिज्ञ नहीं थे और अपने को मैंने इस अनोखी स्थिति में पाया कि उन्हें यह बता सकूं कि कैसे भारतीय इतिहास में सर्वाधिक प्रचण्ड बहुमत वाला प्रधानमंत्री अंत में कैसे निराशाजनक स्थिति में पहुंचा। केवल इसलिए नहीं कि मैं भी उस छोटे से सामाजिक ग्रुप का हिस्सा थी जिसमें वह भी थे, लेकिन इसलिए कि एक पत्रकार के रूप में मेरा कैरियर इस तरह से बदला कि मैंने उस भारत को देखा जो राजीव के एक राजनीतिज्ञ के रूप में लगभग समानांतर चलता रहा था। तब मुझे लगा कि उन्होंने भारत की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया लेकिन जब मैं इस पुस्तक को लिखने बैठी तो मुझे अहसास हुआ कि वही अकेले नहीं थे जिन्होंने भारत को शर्मिंदा किया। एक समूचे सत्तारूढ़ वर्ग ने ऐसा किया। वह सत्तारूढ़ वर्ग जिससे मैं भी सम्बन्धित हूं।

जैसे कहानी आगे बढ़ती है यह मानों मेरे अपने जीवन का दर्पण है, राजनीतिज्ञ के रूप में राजीव के संक्षिप्त जीवन और कैसे वंशानुगत लोकतंत्र के बीज बोए गए-का ही यह एक संस्मरण नहीं है बल्कि एक पत्रकार के रूप में मेरा भी है। मैंने पाया कि पत्रकारिता की स्पष्ट दृष्टि ने उस देश को समझने के मेरे नजरिए को बदला जिसमें मैं अपने सारे जीवन भर रही हूं। और इसने मूलभूत रूप से उस नजरिए को बदला जिसमें मैं उन लोगों को देख सकी जिनके साथ मैं पली-बढ़ी। मैंने देखा कि कैसे वे भारत से अलिप्त हैं, उसकी संस्कृति और इतिहास उनके लिए कैसे विदेशी हैं, और इसी के चलते वे पुनर्जागरण और परिवर्तन लाने में असफल रहे। मैंने देखा कि एक पत्रकार के रूप में मेरे जीवन ने उन द्वारों को खोला जिनसे मुझे लगातार शर्म महसूस हुई कि कैसे मेरे जैसे लोगों ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। मैं मानती हूं कि इसी के चलते भारत को उसके सत्तारूढ़ वर्ग ने शर्मिंदा किया है और वह वैसा देश नहीं बन पाया जैसा उसे बनना चाहिए था। यदि हम कम विदेशी होते और भारत की भाषाओं और साहित्य की महान संपदा, राजनीति और शासन सम्बन्धी उसके प्राचीन मूलग्रंथों और उसके ग्रंथों के बारे में और ज्यादा सचेत होते तो हम अनेक चीजों में परिवर्तन कर पाते लेकिन हम असफल रहे और अपने बच्चों कीे उनके ही देश में अपनी तरह, विदेशियों की तरह पाला। सभी विदेशी चीजों पर मंत्रमुग्ध और सभी भारतीय चीजों का तिरस्कार।
एक नया सत्तारूढ़ वर्ग धीरे से पुराने का स्थान ले रहा है। एक नयी, अभद्र राजनीतिज्ञों का वर्ग सत्ता पर नियंत्रण हेतु सामने आ रहा है। किसानों और चपरासियों के बच्चे और उन जातियों जो कभी अस्पृश्य माने जाते थे, की संतानें भारत के कुछ बड़े प्रदेशों पर शासन कर चुके हैं। लेकिन पुराने सत्तारूढ़ की बराबरी की चेष्टा में वे अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं और उन्हें पश्चिम के विश्वविद्यालयों में भेजते हैं। इसमें भी कोई हर्जा नहीं है बशर्ते कि वे उन्हें अपनी भाषाओं और संस्कृति से विमुख नहीं करते हों।
एक भारतीय पुनर्जागरण की संभावना, जैसाकि पहली पीढ़ी के उन भारतीयों जो उपनिवेश के बाद के भारत में पली-बढ़ी है, हमारी हो सकती थी और सिमटती और दूर होती जा रही है। सत्तारूढ़ वर्ग के हाथों में एक राजनीतिक हथियार-वंशवाद, देश जिसकी आत्मा पहले से ही शताब्दियों से गहरे ढंग से दागदार है के नए उपनिवेश का मुख्य स्त्रोत बनता जा रहा है। यह वह मुख्य कारण है जिसके चलते तेजी से विस्तारित और फैलते शिक्षित मध्यम वर्ग का लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं से मोहभंग होता जा रहा है।
तवलीन की इन पंक्तियों ने मुझे लार्ड मैकाले द्वारा फरवरी 1835 में ब्रिटिश संसद में की गई टिप्पणियों का स्मरण करा दिया:

”मैंने पूरे भारत की यात्रा की और ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो कि भिखारी हो या चोर हो। इस तरह की संपत्ति मैंने इस देश में देखी है, इतने ऊंचे नैतिक मूल्य, लोगों की इतनी क्षमता, मुझे नहीं लगता कि कभी हम इस देश को जीत सकते हैं, जब तक कि हम इस देश की रीढ़ को नहीं तोड़ देते, जो कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में है। इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूं कि हमें इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था, इसकी संस्कृति को बदलना होगा। इसके लिए यदि हम भारतीयों को यह सोचना सिखा दें कि जो भी विदेशी है और अंग्रेज है, वह उसके लिए अच्छा और बेहतर है, तो इस तरह से वे अपना आत्मसम्मान खो देंगे, अपनी संस्कृति खो देंगे और वे वही बन जाएंगे जैसा हम चाहते हैं-एक बिल्कुल गुलाम देश।”
मैकाले द्वारा अपनाई गई उपनिवेशवादी नीति अंग्रेजों द्वारा भारत लागू शिक्षा व्यवस्था में विद्यमान थी। इसका प्रभाव स्वतंत्रता के बाद भी बना हुआ है। वे लोग जो केवल हिंदी या कोई भारतीय भाषा बोलते हैं और अच्छी अंग्रेजी नही बोल पाते, उन्हें हमारे देश में निकृष्ट समझा जाता है। मैंने अक्सर इस तथ्य को समझने के लिए अपना उदाहरण दिया है। मैं अपने जीवन के आरंभिक बीस वर्षों में-जो मैंने सिंध में बिताए-बहुत कम हिंदी जानता था। राजस्थान आने के बाद मैंने परिश्रमपूर्वक इसका अध्ययन किया। लेकिन मुझे वर्ष 1957 में दिल्ली आने पर यह अनुभव हुआ कि अंग्रेजी भारत में उंचा स्थान कैसे रखती है
उदाहरण के लिए, जब भी टेलीफोन की घंटी बजती थी और मैं इसे उठाता था, मेरा पहला वाक्य होता था आज भी है-‘हां, जी’ जिसके जवाब में अक्सर उधर से पूछा जाता था, ‘साहब घर में हैं?’ यह मान लिया जाता था कि घर से कोई नौकर बोल रहा है। और मैं उनसे कहता था, ‘आपको आडवाणी से बात करनी है तो मैं बोल रहा हूं।‘

प्रार्थना तो आत्मा की गहराइयों से निकलनी चाहिए

Rakesh Khurana


कबीर मुलां मुरारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ ।
जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतर जोई ।
भाव: संत कबीर दास जी कहते हैं कि ए इमाम ! आजान के लिए ऊंचे मीनार पर जाकर क्यों बांग देता है , परमात्मा बहरा नहीं है ।जिसके लिए तू बांग दे रहा है वह तो तेरे दिल में विराजमान है अर्थात ईश्वर की प्रार्थना के लिए हमें कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि प्रार्थना तो आत्मा की गहराइयों से निकलनी चाहिए । जिस चीज के लिए प्रार्थना करें उस की सच्ची ख्वाहिश होनी चाहिए जो न केवल बुद्धि विचार करके हो बल्कि अंतरात्मा से होनी चाहिए ।
संत कबीर दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपई का ८८वां जन्म दिन देश भर में मनाया गया:Bharat Ratn For A B Vajpai Demanded

पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपई का ८८ वा जन्म दिन देश भर में मनाया जा रहा है| इस अवसर पर उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किये जाने की मांग की गई है| सेन्ट्रल दिल्ली स्थित उनके निवास पर प्रधान मंत्री डाक्टर मन मोहन सिंह,भाजपा नेता एल के अडवानी,सुषमा स्वराज,नितिन गडकरी,और राजनाथ ने अटल बिहारी वाजपई को जन्म दिन की बधाई दी|
भाजपा शासित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने की मांग की है।श्री चौहान ने वाजपेयी के व्यक्तित्व पर आधारित जनसंपर्क विभाग की प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के बाद संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि वाजपेयी ऐसे नेता हैं जिनसे सभी प्यार और आदर करते हैं।बताते चलें कि वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को पूर्व रियासत, ग्वालियर में हुआ था, जो अब मध्य प्रदेश का हिस्सा है।
वाजपेयी, भाजपा के पूर्व संगठन भारतीय जन संघ के संस्थापक नेताओं में से एक हैं। वह जनता पार्टी की सरकार में वर्ष 1977 में देश के विदेश मंत्री रहे।
वर्ष 1996 में वह सिर्फ 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने। इसके बाद मार्च 1998 में 13 माह के लिए और फिर अक्टूबर 1999 से मई 2004 के बीच तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने वर्ष 2009 का चुनाव नहीं लड़ा था।आज कल सक्रिय राजनीती से हट कर घर पर ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं|
तालकटोरा स्टेडियम में वाजपई जी का जन्म दिन रक्त दान करके मनाया गया
इस मौके पर बरनाला में कार्यकर्ताओं ने सदर बाजार को जोड़ती दो गलियों टूटे वाटे वाली गली व बांसा वाली गली का नाम बदल कर ‘श्री अटल बिहारी वाजपेयी मार्ग’ रख दिया।
इसकी घोषणा भाजपा जिला अध्यक्ष गुरमीत सिंह हंडियाया ने मंगलवार को बरनाला में हुए समारोह को संबोधित करते हुए कही।।
श्री वाजपेयी के 88 वें जन्मदिवस के अवसर पर बलात्कार पीड़ित लड़की को समर्पित रैली के समक्ष अपने संबोधन में पार्टी के वरिष्ठ नेता एम वेंकैया नायडु ने कहा, ‘‘ देश की राजधानी में जो कुछ हो रहा है, वह कानून व्यवस्था के खिलाफ जनता के संचित गुस्से के कारण है। यह केवल इस बलात्कार की घटना के कारण नहीं है।
मेरठ में बी जे पी कार्यकर्ताओं ने हवं करके अपने नेता की लम्बी आयु की कामना की

किंगफिशर एयरलाइंस बचाने के लिए नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए] को फिर से पुनरुद्धार योजना सौंपी

किंगफिशर एयरलाइंस बचाने के लिए नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए] को फिर से पुनरुद्धार योजना सौंपी

दारू किंग विजय माल्या की कर्ज़ में डूबी किंगफिशर एयरलाइंस ने नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए] को फिर से पुनरुद्धार योजना सौंपी है। इससे पहले भी कंपनी ने दोबारा उड़ान भरने की योजना विमानन नियामक के समक्ष पेश की थी जिसे खामियों के चलते डीजीसीए ने खारिज कर दिया था। विजय माल्या की इस एयरलाइंस का परिचालन अक्टूबर से ही ठप है।और इस कम्पनी का लायसेंस ३१ दिसंबर को समाप्त होने जा रहा है|अब लायसेंस के पुनरुद्धार[रिन्यू ]कराये बगैर उड़ान संभव नहीं होगी|इसीलिए अब कंपनी बचाने के लिए वित्तीय व्यवस्था करने के साथ अपना लायसेंस बचाना भी जरुरी है|
पिछले हफ्ते ही कंपनी ने लाइसेंस नवीनीकरण के लिए आवेदन किया है। डीजीसीए ने लाइसेंस नवीनीकरण से पहले कंपनी से पुनरुद्धार योजना मांगी थी। डीजीसीए के एक अधिकारी ने बताया कि किंगफिशर ने उड़ान लाइसेंस दोबारा हासिल करने की पहली शर्त के तहत यह योजना पेश की है। इससे पहले परिचालन ठप्प होने की वजह से डीजीसीए ने 20 अक्टूबर को लाइसेंस अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया था। उस समय भी नियामक ने एयरलाइंस से परिचालन एवं वित्तीय समस्याओं के संदर्भ में विस्तृत योजना जमा कराने को कहा था। मगर वह ऐसा करने में असफल रही थी।
तब नियामक ने लाइसेंस बहाली के लिए कंपनी को सभी हितधारकों का बकाया भुगतान करने को कहा था। मगर कंपनी इसमें भी नाकाम रही है। सूत्रों के मुताबिक किंगफिशर का लाइसेंस खतरे में है। आमतौर पर पांच साल के लिए लाइसेंस का नवीनीकरण होता है। मगर किंगफिशर के मामले में स्थिति बिल्कुल अलग है। ऐसे में इस बात की संभावना बेहद कम है कि डीजीसीए पुनरुद्धार योजना को मंजूरी देगा।
कुछ दिनों पहले विजय माल्या ने 17 बैंकों के कंसोर्टियम को बताया था कि वे एयरलाइंस का सीमित परिचालन शुरू करने के लिए 425 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे। इन बैंकों का किंगफिशर पर 7,524 करोड़ रुपये का कर्ज है।किंग फ़िशर अभी तक विदेशी निवेशकों को आकर्षित नहीं का पाई है पहले रियाद की एक कम्पनी द्वारा ३००० करोड़ के निवेश की बात कही जा रही थी मगर अभी तक वह फायनल नहीं हुई है| यूं बी ग्रुप द्वारा सवा छह सो करोड़ का निवेश करने के बात कही जा रही है मगर विदेशी निवेश के अभाव में यह पूंजी भी अपर्याप्त समझी जा रही है|

चरनी के लाल प्रभु यीशु के जन्म पर पूरे विश्व में खुशियाँ मनाई जा रही है

चरनी के लाल प्रभु यीशु के जन्म पर पूरे विश्व में खुशियाँ मनाई जा रही है

:चरनी के लाल के आगमन पर आज पूरे विश्व में खुशियाँ मनाई जा रही हैं,गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना सभाए हो रही है और उपहार वितरित किये जा रहे हैं|प्रभु यीशु को मानने वाले पूरे विश्व में सबसे बड़े समुदाय[ क्रिस्चियन ] के रूप में विद्यमान है| मेरठ में भी मेथोडिस्ट, केथोलिक्स[दुर्ग] और प्रोटेस्टेंट[दुर्ग] समुदाय ने गिरजाघरों में प्रभु यीशु के आगमन के उपलक्ष्य में विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया|चर्चेस में प्रभु के जीवन से सम्बंधित झांकिया सजाई गई| मसीही [ईसाई]समुदायों में सबसे पवित्र व बड़ा पर्व क्रिसमस को लेकर खासा उत्साह बना हुआ है। लोग गिरजाघरों के अलावा अपने घरों में भी आकर्षक चरनी बनाये हैं, जिसमें प्रभु यीशु के बाल रूप व उनके अनुयायियों की प्रतिरूप दर्शाई गई है। इसके अतिरिक्त क्रिसमस तारा व क्रिसमस ट्री को भी सजाया गया है।प्रस्तुत है कैमरे की नज़र से कुछ झांकिया

कांस्टेबिल सुभाष तोमर की मौत के जुर्म में पकडे गए आठ युवको पर गैंग रेप के साथ ही फास्ट ट्रेक कोर्ट में मुकद्दमा चलाओ :केजरीवाल

दिल्ली पोलिस कांस्टेबिल सुभाष तोमर की मौत के जुर्म में पकडे गए आठ युवको पर गैंग रेप के साथ ही फास्ट ट्रेक कोर्ट में मुकद्दमा चलाओ :केजरीवाल

यह मांग आज “आप “के नेता अरविन्द केजरीवाल ने कौशाम्बी में की |इससे गलत फंसाए गए निर्दोष युवकों को भी जल्द न्याय मिल सकेगा|
श्री केजरीवाल ने आज पोलिस की ऍफ़ आई आर की कमजोरी और कोर्ट की आपत्तियों के हवाले से बताया कि कांस्टेबिल श्री सुभाष तोमर की मौत वाकई दुखद है|और इसके लिए दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए लेकिन अगर किसी निर्दोष को झूठे मुकद्दमे में फंसा कर उनका कैरियर बर्बाद करने के किसी भी प्रयास का जम कर विरोध किया जायेगा|उन्होंने आरोप लगे किपोलिस द्वारा अब पोस्ट ऍफ़ आई आर सबूत घड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं|
गौरतलब है कि गैग रेप के मामले में चल रहे आन्दोलन के कारण कुछ हिंसा भड़कने पर युवा और पोलिस कर्मी घायल हो गए थे|इनमे से कांस्टेबिल सुभाष तोमर को जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां इलाज़ के बावजूद भी श्री तोमर की मृत्यु हो गई|सुभाष की हत्या के प्रयास के आरोप में दफा ३०७ के अंतर्गत आठ युवाओं को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश किया गया |सरकार की तरफ से इन आठ युवकों में से एक चमन को अरविन्द केजरीवाल की पार्टी का स्पोर्टर बताया जा रहा है |
इन आरोपों का खंडन करते हुए आज अरविन्द केजरीवाल ने कौशाम्बी में प्रेस कांफ्रेंस करके पोलिस की कार्यवाही पर आरोपों की झड़ी लगा दी | केजरीवाल और मनीष सिशोदिया ने कहा कि पोलिस ने जिन आठ युवकों पर धारा ३०७ का मुकद्दमा थोपा है वह पूर्णतया आधारहीन और फेब्रिकेटेड है|पोलिस द्वारा दर्ज़ कराई गई ऍफ़ आई आर में भी कोई तथ्य नहीं दिए गए हैं|कोर्ट ने भी मुकद्दमे में कोई जान नहीं देखते हुए अधिकाँश को जमानत दे दीहै| [धारा ३०७ में आसानी से जमानत मंजूर नहीं होती] मार्ग बंद होने के कारण कुछ जमानती नहीं आ पाए |उन्होंने कहा कि आठ में से एक चमन का नाम लेकर हिंसा भड़काने के लिए “आप “बाबा राम देव और जनरल वी के सिंह पर आरोप लगाये जा रहे हैं हमारा[केजरीवाल] का आन्दोलन पिछले डेड साल से चल रहा है मगर हमेशा शांतिपूर्वक रहा है अब हम [केजरीवाल ]पर आरोप लगा कर न जाने पोलिस कौन सा हिसाब बराबर करने पर तुली हैं
इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि पोलिस और सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि आठों आरोपियों की जमानत “आप ” के मनीष सिशोदिया ने ली है तो यह आरोप भी सरासर गलत है जिनकी भी जमानत हुई है उनके रिश्तेदारों ने ही कराई है|उनके साथ आरोपियों के वकील भी थे |

दिल्ली में केंद्र की पोलिस और शीला दीक्षित सरकार में आकंडा ३६ की और

गैंग रेप को लेकर भड़के आन्दोलन को अब एक नए मोड़ की और ले जाने के आरोप लगने लगे हैं|आज गैंग रेप पीड़ित के बयान को लेकर एसडीएम और पुलिस ऑफिसरों से बहस के समाचार आने शुरू हो गए हैं| इस विभत्स,घिनौने,जघन्य गैंग रेप के बाद जनाक्रोश मुख्यतः दिल्ली की मुख्य मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित की तरफ हुआ शीला दीक्षित के खिलाफ राजनीतिक माहौल भी बनने लगा| लेकिन श्रीमती दीक्षित और उनके सांसद पुत्र ने दिल्ली में पोलिस व्यवस्था के लिए केंद्र को दोषी ठहराना शुरू किया और सीधेपोलिस कमिश्नर पर निशाना साध दिया| मुख्य मंत्री के सांसद पुत्र जब बीते दिन आन्दोलनकारियों के बीच पहुंचे तो पोलिस ने उन्हें उचित भाव नहीं दिया जिसके फलस्वरूप सांसद की कार में तोड़ फोड़ की गई और उसके साथ भी बदसलूकी की आ रही हैं|इसके बाद तो पोलिस पर दिल्ली की सरकार के हमले तेज़ होगये|अब गैंग रेप की पीडिता के बयाँ लेने गई एस डी एम् उषा चतुर्वेदी ने एक पोलिस की कार्यवाही को कटघरे में खडा करने वाला ब्यान दे दिया है| प्राप्त जानकारी के अनुसार सफदरजंग अस्पताल में गैंग रेप पीड़ित के बयान लेने पहुंचीं विवेक विहार की एसडीएम ऊषा चतुर्वेदी का आरोप है कि पुलिस ऑफसरों ने बयान लेने के दौरान दखलंदाजी की।पोलिस ने एक प्रश्नोत्तरी दे कर उसके मुताबिक़ ब्यान दर्ज़ करने को दबाब बनाया था| इस बात की लिखित शिकायत एसडीएम ने डिप्टी कमिश्नर से से की, जिन्होंने इसे गृहमंत्री और उप राज्यपाल को भेज दी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस मामले में पुलिस ऑफिसरों के खिलाफ स्वतंत्र जांच की मांग केंद्रीय गृहमंत्री से दोहराई है।

दिल्ली में केंद्र की पोलिस और शीला दीक्षित सरकार में आकंडा ३६ की और


बताया जारहा है की एसडीएम शुक्रवार की रात गैंग रेप पीड़ित के बयानों की विडियोग्रफी कराना चाह रही थीं, जबकि पीड़ित के परिजनों ने विडियोग्रफी से इनकार किया था, जिसका समर्थन मौके पर मौजूद डीसीपी छाया शर्मा और दो एसीपी ने कर दिया। इसी बात को लेकर एसडीएम और पुलिस ऑफिसरों के बीच तीखी बहस हो गई।
असलियत तो जांच के बाद ही सामने आ पायेगी मगर फिलहाल पोलिस की कार्यवाही शक के घेरे में दिख रही है| पहले तो पोलिस द्वारा कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में से धटना वाले इलाके में लापरवाही के दोषी पोलिस अफसरों के नाम ही गायब कार दिए गए |कोर्ट की फटकार और जनांदोलन के के फलस्वरूप आठ पोलिस अधिकारियों के निलंबन की प्रक्रिया शुरू की गई| प्रदर्शन स्थल पर वाटर केनोन+आंसू गैस+और लाठी चार्ज के द्रश्य मीडिया और सोशल साईट्स पर में छाए हुए हैं| इसके बाद अब एस डी एम् का यह आरोप अपने आप में समस्या को टेकल करने में प्रशासनिक असमर्थता दर्शाता है| इसके बाद केन्द्रीय गृह मंत्री का ब्यान “सरकार को आन्दोलन कारियों से मिलने के कोई जरुरत नहीं है”ने आग में घी का काम किया है| नतीजे कुछ भी आयें फ़िलहाल तो शीला दीक्षित की सरकार से अरविन्द केजरीवाल सरीखे नए नए बने राजनीतिकों से दूरी बना ही ली गई है|

शुक्र है कि इन्होने केवल न्याय माँगा रोटी नहीं मांगी वरना सीरिया की तरह मिसाईल ही चलवा देते


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

एक सोश्लाईट

ओये झाल्लेया व्हाट इज दिस ?ये हसाड़े हुकुमरानो को क्या हो गया है ? एक तरफ तो प्रधान मंत्री डाक्टर मन मोहन सिंह, उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर,राष्ट्रपति के बेटी और स्वयम सोनिया गांधी भी डेमेज कंट्रोल के लिए बाहर आ रही है और ये मंत्री संतरी सभी घाव पर नमल छिड़कने का काम कर रहे हैं|ओये अब ये गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी कहने लग गए हैं कि गैंग रेप के विरोध में निहत्थे, अराजनीतिक,शान्ति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे हज़ारोंयुवाओं से मिलना उन्हें सांत्वना देना इनकी सरकार के लिए कोई जरूरी नहीं है|ऐसे प्रदर्शन तो होते रहते हैं और होते रहेंगे और कल को माओ वादियों का आन्दोलन हो जाएगा तो क्या उनसे भी मिलना होगा?सत्ता मद में चूर इन्हें पक्ष और विपक्ष कुछ नहीं दिख रहा| लगता है कि इन्हें संसद में अपने बहुमत का घमंड ही ले डूबेगा|

शुक्र है रोटी नहीं मांगी वरना सीरिया की तरह मिसाईल ही चलवा देते

झल्ला

भाई अपनी अपनी समझ है |अभी तक तो ये लोग गैग रेप के दोषियों के लिए फांसी की मांग पर ही बगले झांक रहे थे अब सत्ता मद में शान्ति पूर्वक आन्दोलन करनेवाले और माओवादियों में अंतर भी भूल गए|और वैसे माओ वादी भी तो भारतीय ही हैं इन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए भी तो सैंकड़ों पापड बैले ही जाते हैं|
लेकिन दुर्भाग्य से पहले दोषी पोलिस वालों को बचाने का प्रयास किया गया उसके बाद आन्दोलन की आग जब भड़क गई तो लाठी चार्ज,पानी की बौछारें और आंसू गैस के गोले छोड़े गए \इस कवायद में एक निर्दोष पोलिस कर्मी भी बेचारा मार गया| जब इनसे भी भीड़ तितर बितर नहीं हुई तो आनन् फानन में धारा १४४ लगा कर कर्फियु जैसे हालात पैदा कर दिय गए|
न्याय मांगने वालों से भी आपके गृह मंत्री मिलना जरूरी नहीं समझते |शुक्र है कि इन्होने केवल न्याय माँगा रोटी नहीं मांगी वरना सीरिया के प्रेजिडेंट अल बशर अल असद की तरह मिसाईल [एरियल एटैक] ही चलवा देते

डाक्टर मनमोहनसिंह की पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर ने भी गैंगरेप दोषियों को सख्त सजा देने की अपील की है

डाक्टर मनमोहनसिंह की पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर

प्रधानमंत्री की पत्नी गुरशरण कौर ने भी गैंगरेप दोषियों को सख्त सजा देने की अपील की है।प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहनसिंह की पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर ने दिल्ली में सामूहिक बलात्कार को लेकर पैदा हुए जनाक्रोश की पृष्ठभूमि में कहा है कि इस घटना के गुनाहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस जघन्य अपराध के खिलाफ प्रदर्शन शांतिपूर्ण होना चाहिए क्योंकि इससे अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे।उन्होंने कहा कि बीते 16 दिसंबर को चलती बस में हुआ सामूहिक बलात्कार एक बहुत खराब घटना थी और इसकी निंदा करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। श्रीमती कौर ने सोमवार को एक कार्यक्रम से इतर कहा कि हम सभी इस घटना से बहुत दुखी हैं, लेकिन अगर लोग शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करेंगे तो इसके अधिक नतीजे आएंगे। गौरतलब है कि प्रधान मंत्री स्वयम भी तीन बेटियों के पिता है और उनके परिवार का इस जघन्य ,बीभत्स,ह्रदयविदारक घटना से भावुक होना और चिंता को व्यक्त करना स्वाभाविक ही| एक बार पूर्व में भी श्रीमती कौर रसोई गैस के दम बढाने पर भी इसी प्रकार कि चिंता व्यक्त कर चुकी हैं|
इससे पूर्व प्रधान मंत्री स्वयम भी इस जघन्य अपराध की सार्वजानिक रूप से निंदा कर चुके हैं और हिंसा त्याग कर शान्ति से अपनी बात कहने को कह चुके हैं|