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Category: Religion

गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं , निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं: संत दर्शन सिंह जी महाराज

संत और महापुरुष पौराणिक काल से अपनी अमर वाणी में गुरु की महिमा का वर्णन करके समाज का मार्ग दर्शन करते आ रहे हैं |प्रस्तुत है ऐसे ही दो महापुरुषों की वाणी के कुछ शब्द
[१]गुरु बिन कभी न उतरे पार ।
नाम बिन कभी न होय उधार ।
शब्द : स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज
संत दर्शन सिंह जी महाराज ने भी अपने एक रूहानी शेर में फ़रमाया है :-
[२]गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं ।
निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं ।।
भाव : स्वामीजी महाराज हमें समझाते हैं हमें काल के दायरे से बाहर निकलना है किसी गुरु के बिना हम ऐसा नहीं कर सकते । हमें या ऐसे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो स्वयं रूहानियत के रास्ते पर चलता हो, एक ऐसा महापुरुष जो प्रभु के हुक्म से यहाँ भेजा गया हो ।ऐसा गुरु जब हमें परमात्मा के शब्द से जोड़ता है तो हमारा उद्धार संभव है
: स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज ,
रूहानी शायरी के शिरोमणि संत दर्शन सिंह जी महाराज,
प्रस्तुति राकेश खुराना

एल के अडवाणी के ब्लाग से :अगले ईस्टर पर भाजपा का पुनः जन्म Reincarnation of B J P On Easter

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के आडवाणी ने ईसाईयों के प्रभु यीशु के पुर्नजन्म से जुड़े पवित्र त्यौहार ईस्टर संडे से अपनी पार्टी भाजपा को जोड़ते हुए आगामी चुनावों में अपनी पार्टी के पंर जन्म के संकेत दिए हैं|उन्होंने अपने ब्लॉग में भाजपा के इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया है कि प्रभु यीशु को गुड फ्राइडे को सलीब पर चडा कर मानवता का अपमान किया गयाथा उसके ठीक दो दिन बाद के सन्डे [ईस्टर]को प्रभु का पुनः जन्म हुआ और पीड़ित जनता की खुशियाँ लौटी| जैसे पवित्र ईस्टर का त्यौहार एक निश्चित तिथि पर नहीं मनाया जाता ठीक उसी प्रकार देश में एलेक्शन भी अलग अलग तिथियों में कराये जाते हैं| इमरजेंसी के काले युग को समाप्त करने के लिए ६ अप्रैल १९८० को भाजपा का पुनर जन्म हुआ और अब आगामी वर्ष में भी Easter के आस पास ही चुनाव होने के संभावना जताई जा रही है|[Reincarnation of B J P ]
प्रस्तुत है एल के अडवाणी के ब्लॉग से :
गत् रविवार 31 मार्च, 2013 ईस्टर सण्डे (रविवार) था- एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ईसाई त्योहार। जार्जियन कैलेण्डर के मुताबिक जबकि अन्य सभी ईसाई त्योहार प्रत्येक वर्ष एक निश्चित दिन पर पड़ते हैं परन्तु ईस्टर एक ऐसा त्योहार है जो प्रत्येक वर्ष विभिन्न तिथियों पर पड़ता है।
उदाहरण के लिए अगले वर्ष ईस्टर 20 अप्रैल, 2014 को मनाया जाएगा।
सन् 1980 में गठित भारतीय जनता पार्टी में हम लोगों के लिए ईस्टर सण्डे का विशेष महत्व है। 1980 में ईस्टर 6 अप्रैल के रविवार को पड़ा था जिस दिन नई दिल्ली में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी नींव रखी थी।
जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समाजवादी पार्टी नेता श्री राजनारायण की याचिका पर निर्णय देते हुए श्रीमती गांधी के लोकसभाई निर्वाचन को रद्द कर दिया था। प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी चुनावी कदाचार की दोषी पाई गई थीं और उन्हें अगले 6 वर्षों तक कोई भी चुनाव लड़ने के अयोग्य कर दिया गया था।
इस गंभीर घटनाक्रम के बाद कांग्रेस सरकार ने आंतरिक गड़बड़ियों की आड़ में देश पर आपातकाल थोप दिया था। संविधान प्रदत्त सभी मूलभूत अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया, विपक्षी दलों के एक लाख से ज्यादा कार्यकर्ता जेलों में डाल दिए गए और मीडिया का ऐसा दमन किया गया जो ब्रिटिश शासन में भी नहीं हुआ था। आपातकाल लगभग 20 महीने तक रहा।
मार्च, 1977 में जब अगले लोकसभाई चुनाव हुए तो भारतीय मतदाताओं ने स्वतंत्रता के पश्चात् पहली बार कांग्रेस पार्टी को नई दिल्ली की सत्ता से उखाड़ फेंका। उस समय के कांग्रेस (ओ) के अध्यक्ष श्री मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।
यद्यपि सन् 1952 के बाद से हुए सभी संसदीय चुनावों में एक प्रचारक या फिर एक प्रत्याशी के रूप में मैंने भाग लिया है परन्तु निस्संकोच मैं कह सकता हूं कि 1977 के चुनाव देश के राजनीतिक इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहे हैं। किसी अन्य अवसर पर चुनावों के नतीजों पर भारतीय लोकतंत्र इतना दांव पर नहीं लगा था जितना इन चुनावों में था। यदि कांग्रेस पार्टी यह चुनाव जीत जाती तो भारत के बहुदलीय लोकतंत्र को समाप्त करने के घृण्श्निात षड़यंत्र-आपातकाल- को जनता की वैधता मिल जाती! इसी प्रकार, किसी और अन्य चुनाव में भी भारतीय मतदाताओं के लोकतांत्रिक विवेक की यह बानगी नहीं मिलती। मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से दण्डित किया। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अनेक प्रदेशों में कांग्रेस को एक सीट भी नहीं मिली।
मोरारजी भाई सरकार ज्यादा नहीं चल पाई। अंदरूनी उठापठक के चलते 1979 में यह गिर गई। अगले लोकसभाई चुनाव 1980 में सम्पन्न हुए। जनता पार्टी के हम लोगों को साफ लगता था कि हम बुरी तरह हारेंगे। परन्तु इस उठापठक ने वास्तव में जनता पार्टी की शोचनीय हालत कर दी। सन् 1977 में 298 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी 1980 में मात्र 31 सीटों पर सिमट कर रह गई। इन 31 सांसदों में से जनसंघ की संख्या सन् 1977 में 93 की तुलना में 16 रह गई।
1980 के चुनावों के शीघ्र पश्चात् जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई जिसमें यह तय हुआ कि पार्टी की संगठनात्मक वृध्दि पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। पार्टी कार्यकारिणी ने जनता पार्टी का सदस्यता अभियान चलाने का भी फैसला किया ताकि निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक पार्टी के चुनाव कराए जा सकें। मैं मानता हूं कि इसी निर्णय ने पार्टी के कुछ वर्गों को आशंकित कर दिया जिसे बाद में दोहरी सदस्यता विरोधी अभियान के रूप में जाना गया। यह अभियान जनसंघ के पूर्व सदस्यों के विरूध्द था जिनके बारे में आरोप लगाया गया कि वे केवल जनता पार्टी के सदस्य नहीं हैं अपितु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी सदस्य हैं। यह सभी को विदित था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक राजनीतिक दल नहीं है। यह ऐसा था कि किसी कांग्रेसी जो आर्यसमाजी भी है, पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगाया जाए! शीघ्र ही यह कानाफूसी अभियान शुरू हो गया कि यदि पूर्व जनसंघियों को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से सम्बन्ध रखने दिया गया तो मुस्लिम मतदाता पार्टी से विलग हो जाएंगे।
दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर हुए तीखे विवाद पर एक सही परामर्श प्रख्यात गांधीवादी और स्वतंत्रता-सेनानी अच्युत पटवर्धन ने दिया। उन्होंने 9 जून, 1979 को ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ में ‘जनता, आर.एस.एस. ऐंड द नेशन‘ शीर्षक वाले लेख में लिखा-‘आपाताकल के विरूध्द जन-संघर्ष में महान् योगदान की क्षमता के कारण भारतीय जनसंघ को जनता पार्टी के प्रमुख घटक के रूप में शामिल किया गया था। आपातकाल की समाप्ति के बाद से अब तक जनसंघ और या संघ ने ऐसा क्या क्या किया, जिसने श्री मधु लिमये और श्री राजनारायण तथा उनके समर्थकों को इन्हें बदनाम करने का एक उग्र अभियान छेड़ने के लिए प्रेरित किया?
श्री वाजपेयी, श्री नानाजी देशमुख और मैंने इस दोहरी सदस्याता के अभियान का प्रखर विरोध किया। पार्टी की बैठकों में, मैंने कहा कि हमारे साथ पार्टी में ऐसा व्यवहार किया जा रहा है, जैसे मानों हम अस्पृश्य हों। मेंने आगे कहा:
‘जनता पार्टी के पांच घटक थे- कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी, सी.एफ.डी. और जनसंघ। राजनीतिक दृष्टि से कहें तो इनमें से पहले चार द्विज थे, जबकि जनसंघ की स्थिति हरिजन जैसी थी, जिसे परिवार में शामिल किया गया हो।
वर्ष 1977 में इसे पार्टी में स्वीकार करते समय काफी हर्षोल्लास था। पर समय बीतने के साथ परिवार में एक ‘हरिजन‘ की उपस्थिति ने समस्याएं शुरू कर दीं। ऐसा सोचने वाला मैं अकेला नहीं था बल्कि देश भर में पूर्ववर्ती जनसंघ के लाखों कार्यकर्ताओं और समर्थकों की गूंज इसमें शामिल थी। फरवरी-मार्च 1980 में जनसंघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी सुंदर सिंह भंडारी और मैंने देश भर का दौरा कर जमीनी स्तर पर जनता पार्टी के बारे में लोगों के विचार जानने के प्रयास किए। जहां भी हम गए, हमने पाया कि पूर्ववर्ती जनसंघ के कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर घोर आपत्ति थी कि पार्टी के भीतर उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों किया जा रहा है।
जनता पार्टी के नेतृत्व ने दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर अंतिम निर्णय करने के उद्देश्य से पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 4 अप्रैल को बैठक बुलाई। इस बैठक से निकलने वाले नतीजों को भांप पर श्री वाजपेयी और नानाजी सहित हमने जनसंघ के पूर्व सदस्यों का एक सम्मेलन 5 और 6 अप्रैल, 1980 को बुलाया।
जैसाकि अपेक्षित था कि 4 अप्रैल को जनता पार्टी की कार्यकारिणी ने पूर्व जनसंघ के सभी सदस्यों को निष्कासित करने का फैसला लिया। अपनी आत्मकथा में मैंने उल्लेख किया है:
”जनसंघ के हम सभी सदस्यों को जनता पार्टी से निष्कासन का फैसला बड़ी राहत लेकर आया। 5 और 6 अप्रैल, 1980 के दो दिवसीय सम्मेलन ने स्फूर्तिदायक भावना और दृढ़ विश्वास जोड़ा।
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में 3,500 से अधिक प्रतिनिधि एकत्र हुए और 6 अप्रैल को एक नए राजनीतिक दल ‘भारतीय जनता पार्टी‘ (भाजपा) के गठन की घोषणा की गई। अटल बिहारी वाजपेयी को इसका पहला अध्यक्ष चुना गया। सिकंदर बख्त और सूरजभान के साथ मुझे महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई।”
इस ब्लॉग की शुरूआत में मैंने ‘ईस्टर सण्डे‘ का संदर्भ दिया जिसे ईसाई दो दिन बाद पड़ने वाले गुडफ्राइडे को त्यौहार के रूप में मनाते हैं, माना जाता है कि इसी दिन यीशु पुनर्जीवित हुए थे। ईस्टर सण्डे को ईसा मसीह के पुनर्जीवित होने का दिन जाना जाता है।
हमारी पार्टी के सम्बन्ध में भी 1980 में गुड फ्राइडे के दिन जनता पार्टी के प्रस्ताव से हमें सूली पर चढ़ाया गया और ईस्टर सण्डे के दिन हम पुनर्जीवित हुए।

श्रीमद भगवत कथा महोत्सव के शुभ अवसर पर पवित्र कलश यात्रा

[मेरठ ]श्रीमद भगवत कथा महोत्सव के शुभ अवसर पर पवित्र कलश यात्रा निकाली गई|यात्रा फूल बाग कालोनी[एस सी अग्रावल] से प्रारम्भ की गई |यह यात्रा गढ़ रोड स्थित राधा गोबिंद मंडप पर संपन्न की गई|

एल के आडवाणी के ब्लॉग से टेलपीस (पश्च्यलेख):प्रचार अभियान में फंसते वोटर्स

 एल के आडवाणी के ब्लॉग से टेलपीस (पश्च्यलेख):प्रचार अभियान में फंसते वोटर्स

एल के आडवाणी के ब्लॉग से टेलपीस (पश्च्यलेख):प्रचार अभियान में फंसते वोटर्स

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग एल के आडवाणी ने अपने ब्लॉग में एक बेहद पुराने चुटकले के माध्यम से वर्तमान राजनीतिक पार्टियों के चरित्र पर कटाक्ष किया है|प्रस्तुत है ब्लाग से उद्धत टेलपीस (पश्च्यलेख
एक व्यक्ति स्वर्ग पहुंचा और पर्ली गेट्स पर सेंट पीटर से मिला। सेंट पीटर ने कहा आज अलग बात है, तुम्हारे सम्मुख स्वर्ग या नरक का विकल्प खुला है; हम तुम्हें दोनों में एक-एक दिन देंगे और तुम अपनी पसंद बताओगे। अत: व्यक्ति ने कहा ठीक है और उसे नरक भेज दिया।
वह नरक पहुंचा और जहां तक उसकी नजरें जा सकती थीं वहां तक हरियाली थी। उसने बीयर का एक बड़ा पीपा, एक गोल्फ कोर्स और अपने पुराने जिगरी दोस्त देखे। उसने गोल्फ का एक राऊण्ड खेला, पीना-पिलाना हुआ और अपने जिगरी दोस्तों के साथ मौज मस्ती की। उसे लगा यह ठीक है।
बाद में वह स्वर्ग गया। उसने पाया कि वहां शांति है, आप बादलों से दूसरे बादलों पर कूद सकते हो और बीन बजा सकते हो।
दिन बीतते ही सेंट पीटर उसके पास पहुंचे और उससे उसकी पसंद के बारे में पूछा: बगैर रूके उसने कहा: ”मैं नरक जाना पसंद करूंगा।”
वह तुरंत नरक गया लेकिन वहां उसे गंदगी और लावा के सिवाय कुछ नहीं मिला। बीयर का पीपा नदारद था, और उसके जिगरी दोस्त भी कहीं नहीं थे।
वह शैतान पर चिल्लाया कि क्या हुआ? कल यह स्थान अद्भुत था। शैतान ने जवाब दिया, ”कल हम प्रचार अभियान चला रहे थे, आज आप ने वोट डाल दिया है।”

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै
जे को आपुना दुखु मिटावै, हरि-हरि नामु रिदै सद गावै
जे को अपुनी सोभा लोरै, साध संगी इह हउमै छोरै
जे को जनम मरण ते डरे , साध जना की सरनी परै .
भाव: चारों पदार्थों ( धर्म, अर्थ,काम,मोक्ष) में से कोई कुछ चाहे तो उसे सद्गुरु की सेवा करनी चाहिए. अगर किसी को
दुःख और कष्टों से छुटकारा पाने की इच्छा हो तो उसे अपने आन्तरिक ह्रदय आकाश की गहराई में जाकर शब्द (नाम)
के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए. अगर किसी को अपनी प्रसिद्धि और नाम की इच्छा हो तो किसी संत की संगत
में जाकर अपने अहंकार का त्याग करना चाहिए. अगर किसी को जीने- मरने के कष्ट से डर लगता है तो किसी संत
के चरण कमलों का सहारा ढूँढना चाहिए.
वाणी गुरु अर्जुन देव जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

अध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने से परमात्मा मिल जाते हैं: पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 31 मार्च 2013 को प्रात:कालीन रविवासरीय सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए अध्यात्म मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने की प्रेरणा दी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि अध्यात्म मार्ग समर्पण का मार्ग है। समर्पण वहां होता है जहाँ प्रेम होता है। जहाँ प्रेम नहीं होता, वहां समर्पण हो ही नहीं सकता।
जो जिज्ञासु नाम आराधन कर-कर के तथा अपने अहम् को समाप्त करके परम पिता परमात्मा ले एक मजबूत डोर में बंध गए अर्थात पूर्णतया समर्पित हो गए , उनके जीवन में परमात्मा प्रकट होते हैं।
एक जिज्ञासु नें किसी संत महापुरुष से पूछा ” आपको कुछ पाना हैं या आपको कुछ जानना है?” इसपर संत बोले ” इस जगत में अगर कोई निष्काम, निरही, पूर्ण संत मिल जाएँ और उस संत द्वारा जब पावन नाम मिल जाए तो पाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। और पवित्र नाम को जप-जप कर जब हमनें अपने आप को परमात्मा के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर दिया, वो हमारा हो गया और हम उसके हो गए , अब जानने और खोने के लिए कुछ नहीं बचता हैं । ”
प्रस्तुती राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

पी एम् इन वेटिंग लाल कृषण आडवाणी पी एम् डेसिगनेटेड नरेन्द्र मोदी को चार्ज हेंड ओवर कर सकते हैं: यह दर्शनीय और एतिहासिक होगा


झल्ले दी झाल्लियाँ गल्लां

वैसे तो हमारे यहाँ होली पर बेवकूफ बना कर हंसी ठिठोली की परम्परा है लेकिन उसके बाद विकसित देशों ने भी हमें ऐसे ही हँसी मजाक का मौका दे दिया है यह पश्चिम की यह परम्परा पहली अप्रैल को मनाई जाती है इस दिन को अप्रैल फूल बनाने के लिए ऐसे लोग भी मौके की तलाश में लग जाते हैं जिनके मुह में दांत नही रहते और पेट में आंत नहीं बचती|अब अपना यह कालम ही क्या पूरा पेज ही झल्ले की झल्लय्त को समर्पित है तो पहली अप्रैल का मौका कैसे जाने दे वैसे अभी अपने मुह में पूरे दांत और पेट में आंतें कायम हैं|

पी एम् इन वेटिंग लाल कृषण आडवाणी पी एम् डेसिगनेटेड नरेन्द्र मोदी को चार्ज हेंड ओवर कर सकते हैं: यह दर्शनीय और एतिहासिक होगा

पी एम् इन वेटिंग लाल कृषण आडवाणी पी एम् डेसिगनेटेड नरेन्द्र मोदी को चार्ज हेंड ओवर कर सकते हैं: यह दर्शनीय और एतिहासिक होगा

भाजपा ने अरसे से पी एम् इन वेटिंग के पद पर वरिष्ठ डाडा लाल कृषण आडवाणी को लटकाया हुआ है|बेचारे अपने को जिंदादिल जवां साबित करने के लिए रोजाना नया पापड बेलते हैं |डाडा बेचारे इस उम्र में भी जिम का उद्घाटन करके वेट उठाते दिखाई दे जाते हैं |डाक्टर मन मोहन सिंह को अपने से कमजोरसाबित करने में लगे रहते हैं|लेकिन दुर्भाग्य से कभी आर एस एस और कभी पार्टी में दायें बाएं से आये भाजपाई डाडा के सर कि मालिश करके उकी खुश्की कम करने के बजाय उनके पावों के नीचे चिकना तेल डालने में ही व्यस्त रहते हैं| अब जब २०१४ में डाक्टर मन मोहन सिंह क्या उनकी पूरी सरकार ही अपनी कारगुजारियों के कारण कमजोर साबित होने जा रही है ऐसे में डाडा का नंबर लगने की संभावना दुगुनी हो गई है |ऐसे में नए अध्यक्ष बने ठाकुर राज नाथ सिंह ने आर एस एस के मार्ग दर्शन में एक नया पद इन्वेंट कर दिया है | यह पद पी एम् डेसीग्नेतेड [मनोनीत ] है|यदपि यह अभी डिक्लेयर नही किया गया है|यह अत्यंत गोपनीय [टाप सीक्रेट][रयूमर्स] है और सिर्फ ख्याली पुलाव या सत्ता के गलियारों [ हर्ड इन कोरिडोर ]से आगे नही बढ पाई है |लेकिन फिर भी बात तो निकल ही गई है इसीलिए यह दूर तलक तो स्वाभाविक रूप तक जायेगी ही |
गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को छह साल के निर्वासन के पश्चात अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल करके राष्ट्रीय राजनीतिक धारा में शामिल कर लिया गया है|चर्चा है कि मोदी को अगले प्रधान मंत्री के रूप में स्थापित किया जा रहा है|सरकारी हलकों में एक पुराना नियम है कि पंजीकृत पत्र [Registered dak]कभी सिंगल डिस्पेच नही किया जाता उसके साथ एक संलग्नक[Enclosure] लगाया जाना जरुरी होता है|वैसे आज कल सरकारी महकमों में इस नियम का कोई महत्त्व नहीं है लेकिन भाजपा द्वारा इस नियम का कडाई से पालन करते हुए नरेन्द्र मोदी के साथ ही उनके खासुलखास अमित शाह और सम विचारक वरुण गांधी आदि भी नत्थी कर दिए गए हैं|
इस नए घटना क्रम से एक नई परिपाटी का जन्म हुआ है|पी एम् इन वेटिंग से पी एम् डेसिगनेटेड आ गया है|अब जब यह चमत्कार हो ही गया है तब आने वाले समय में एक नया चमत्कार देखने को मिल सकता है|पी एम् इन वेटिंग लाल कृषण आडवाणी पी एम् डेसिगनेटेड अपने राजनीतिक शिष्य नरेन्द्र मोदी को चार्ज हेंड ओवर कर सकते हैं |अगर ऐसा हुआ तो यह अपने आप में दर्शनीय और एतिहासिक होगा |

प्रभु यीशु मुर्दों में जी उठा : हैप्पी ईस्टर

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प्रभु यीशु मुर्दों में जी उठा : हैप्पी ईस्टर

प्रभु यीशु मुर्दों में जी उठा : हैप्पी ईस्टर

प्रभु यीशु मुर्दों में जी उठा |प्रभु के पुनर्जन्म लेने का पर्व ईस्टर आज ३१ मार्च रविवार को श्रधा भाव से से मनाया गया। गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना सभाएं हुई। प्रभु यीशु को मानने वालों ने बाइबिल का पाठ कर प्रभु के फिर से जीवित होने की खुशियां मनाई।चर्चो में विशेष प्रार्थना की गई। यीशु के बताए प्रेम और सेवा के मार्ग पर चलने का संकल्प दिलाया गया |
गौरतलब है कि प्रभु यीशु को गुड फ्राइडे पर सलीब पर लटकाया गया था इसके बाद आज ईस्टर पर वह पुन: जीवित हो उठे थे,|यह पवित्र दिन होता है।
मान्यता नुसार पूर्वजों की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई । ।मोमबत्ती जलाकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई ।

नई कार्यकारिणी में नरेन्द्र मोदी को सुरक्षा कवच और वरुण गाँधी को उत्तर प्रदेश में नया चैलेन्ज मिला

भाजपा ने २०१४ के लोक सभा के चुनावों में विजय निर्माण के लिए अपने राजनीतिक अभियंताओं के दल की घोषणा कर दी है|इस में विशेष तौर से आज केवल दो तीन नामो पर चर्चा किया जाना श्रेयकर रहेगा|
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज नाथ सिंह के लिए घोषित टीम में गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनके विशेष सिपाहसालार अमित शाह और उत्तर प्रदेश में सांसद वरुण गांधी को राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया है|इससे कई निशाने साधने के प्रयास किये गए हैं|
नरेन्द्र मोदी अभी तक विरोधियों के अलावा अनेकों एन जी ओ के निशाने पर रहे हैं| मोदी के अलावा गुजरात के ही अमित शाह भी आरोपों में घिरे हैं|यहाँ तक की उन्हें जमानत पर छोड़ा गया है| तमाम विरोधों के बावजूद पहले अमित शाह को राज्य की मुख्य राजनीतिक धारा में लाया गया और अब अमित को राष्ट्रीय धारा में शामिल किया गया है|इसका एक प्रभाव तो यह हुआ है के आज नरेन्द्र मोदी से ज्यादा अमित शाह की आलोचना होने लग गई है| विरोध के स्वरों का लक्ष्य बदलने लग गया है|नरेन्द्र मोदी की कम और अमित शाह की आलोचना ज्यादा हो रही है|अमित के अपराधिक और साम्प्रदाईक दंगों के रिपोर्ट कार्ड को आगे लाया जा रहा है| गुजरात में विपक्षी और भाजपा में अपने नेताओं के सुरों में अमित गूंजने लगा है| आजकल नरेन्द्र मोदी अमेरिका की प्रशंसा पाने के लिए जरुरत से ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं लेकिन इसके साथ ही केंद्र में भी मोदी की ढाल के रूप में अमित शाह को इंट्रोड्यूस कर दिया गया है|शायद यही पार्टी का उद्देश्य भी हो सकता है|
इसके अलावा युवा सांसद वरुण गाँधी को महासचिव के पद पर प्रोमोट किया गया है|उत्तर प्रदेश से सांसद वरुण को उत्तर प्रदेश में बड़ी भूमिका दी जा सकती है|वरुण के चचेरे बड़े भाई राहुल गांधी के मुकाबिले भाजपा को प्रभावी चेहरे की तलाश थी जो अब दूर हो सकती है| पिली भीत में दिए अपने विवादित बयानों से वरुण गांधी ने एक विशेष तबके को अपनी तरफ आकर्षित किया है|यह उनकी उपलब्धि साबित हो सकती है|इसके अलावा यह कहना अनुचित नहीं होगा के कांग्रेस के राहुल गांधी भरसक प्रयासों के बावजूद भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में कुछ ख़ास मुकाम नहीं दिला सके अब यदि वरुण गांधी यहाँ हिट हो जाते हैं तो स्वाभाविक रूप से दोनों भाईयों में तुलना शुरू हो जायेगी और इसका लाभ वरुण को राष्ट्रीय स्तर पर जरुर मिलेगा

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

संत कबीर दास हरी की महिमा का वर्णन करते हुए फरमाते हैं

हुए ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।

भावर्थ

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जब कबीर साहब काशी में प्रकट हुए , तो पंडित और काज़ी , दोनों विरोधी हो गए क्योंकि उनका मार्ग कुछ और था । जब बातचीत और वाद-विवाद में पूरे न उतर और सके , तो उनको एक शरारत सूझी । कबीर साहब सचखंड से आए थे और ये पंडित और काज़ी बाहर (इन्द्रियों के घाट पर) बैठे थे । मुकाबले में पूरे कैसे उतरते ? उन्होंने बाहर दूर -दूर तक पत्र भेज दिए कि काशी में एक सेठ कबीर साहब हैं , उनके घर अमुक तारीख़ को यज्ञ है , जहाँ तक हो सके जरुर आएँ । जब वह तारीख़ आई , तो लोग हजारों की संख्या में आ गए और पूछने लगे कि सेठ कबीर साहब का घर कहाँ है ? कबीर साहब तो एक साधारण जुलाहे थे , यह सुनकर झाड़ियों में जा छिपे । उधर मालिक (प्रभु) ने कबीर का रूप धर कर सारा सामान तैयार किया । सारी दुनिया खा गई । सभी जाते हुए कहते जाते कि ‘ धन्य है कबीर ।’ जब कबीर साहब को पता लगा , तो कहते हैं –
ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।
वे अपना नाम ही नहीं रखते हैं , बल्कि कहते हैं कि जो कुछ किया उस हरि ने किया है । जो सब कुछ वाहेगुरु को कुर्बान कर देता है , वाहेगुरु भी उसके सभी काम स्वयं करता है ।
संत कबीर दास जी की वाणी ,
साम्प्रादाईक सौहार्द ,
प्रस्तुति राकेश खुराना