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भारतीय सेना के जाबांजों की शहादत के प्रति बिहार के असंवेदनशील नेताओ के कई चेहरे सामने आये

भारतीय सेना के जाबांजों की शहादत के प्रति बिहार के असंवेदनशील नेताओ के कई चेहरे सामने आये हैं जिससे राजनीती में उबाल आ गया है| सोमवार की देर रात.जम्मू कश्मीर के पूँछ एल ओ सी के समीप मारे गए पांच जवानो में चार बिहार प्रदेश के थे| वैसे तो शहीद पूरे राष्ट्र का होता है लेकिन उसका अंतिम संस्कार चूंकि उसके परिजनों द्वारा किया जाता है इसीलिए शहीद के पार्थिव शरीर को उसके प्रियजनों को सौंपा जाता है|इसी प्रक्रिया में चार लाडलों के शव बिहार लाये गए|
सरकार ने हालांकि शहीदों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये देने की घोषणा के साथ ही राजकीय सम्मान के साथ शहीदों का अंतिम संस्कार भी किया गया लेकिन सत्ता रूड दल जे डी यूं के मंत्री ने मीडिया में ऐसा असंवेदना पूर्ण बयाँ दिया जिसके फलस्वरूप देश में आक्रोश व्याप्त हो गया इसे शांत करने के लिए मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को माफ़ी मांगनी पड़ी|
पाकिस्तानी सेना के हमले में मारे गए पांच भारतीय जवानों में से चार बिहार राज्य से थे| गुरुवार को इन सैनिकों के शव उनके पैतृक गांव लाये गए| शहीदों के शव जब रात के 10 बजे पटना के हवाई अड्डे पर पहुंचे तो बिहार सरकार का कोई मंत्री श्रद्धांजलि देने के लिए वहां उपस्थित नहीं था। जिसे लेकर मीडिया ने स्वाभाविक सवाल किये
बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री भीम सिंह ने . जवानों के सम्मान में मंत्रियों की अनुपस्थिति के संबंध में एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में कहा कि सेना और पुलिस में जवान शहीद होने के लिए ही शामिल होते हैं.|भड़के भीम सिंह मीडिया से ही उल्टे सवाल करने लगे कि क्या आप वहां उपस्थित थे आपके माता पिता उपस्थित थे और अगर आप उपस्थित थे, तो अपने वेतन का काम कर रहे थे.
क्या आपके माता-पिता उपस्थित थे, वे भी तो नागरिक हैं.
राज्य सरकार की उदासीनता पर तब ज्यादा हंगामा हो गया जब शहीदों के अंतिम संस्कार में भी सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा|
बिहार सरकार के प्रवक्ता के सी त्यागी ने जहाँ इसे दुर्भाग्पूर्ण बताया और मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्री भीम सिंह के असंवेदनशील बयान पर खेद प्रकट करते हुए माफी मांगी और कहा कि पूरा देश भारतीय सैनिकों का कर्जदार है, शहीदों को सम्मान देना हमारा कर्तव्य है. साथ ही उन्होंने भीम सिंह के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें इस बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए.
सी एम् ने इसे शहीदों का अपमान बताया|
मुख्यमंत्री के दबाव के चलते भीम सिंह ने भी अपने बयान पर खेद प्रकट करते हुए माफी मांगी|
.इससे पूर्व पार्टी के ही सांसद शिवानन्द तिवारी ने भी कमोबेश ऎसी ही असंवेदनशीलता का परिचय दिया |
उन्होंने संसद में दिए गए रक्षा मंत्री के ब्यान पर टिपण्णी करते हुए कहा कि एल ओ सी पर पाकिस्तान सेना की वर्दी में कुछ लोग थे जिन्होंने भारतीय जवानो की हत्या की उन्होंने रक्षा मंत्री के बयाँ का समर्थन करते हुए पाकिस्तान की सेना को अभय दान देने में देर नही लगाई| श्री तिवारी भोजपुर से हैं और जे डी यूं के राज्य सभा में सदस्य हैं|इससे पूर्व आपने आपत्ति जनक बयानों के चलते पार्टी प्रवक्ता का पद खो चुके हैं इनके स्थान पर के सी त्यागी को पार्टी प्रवक्ता बनाया गया था|

रक्षा मंत्री ने भारतीय सैनिकों पर हुए हमले के बारे में अपने पूर्व ब्यान में आज संशोधन करके संसद में आये गतिरोध को समाप्त किया

रक्षा मंत्री ऐ के एंटोनी ने एल ओ सी के समीप भारतीय सैनिकों पर हुए हमले के बारे में अपने पूर्व ब्यान में आज संशोधन करके संसद में आये गतिरोध को समाप्त करने का प्रयास किया | आज के ब्यान में जहाँ एक तरफ उन्होंने देश की क्षमता का प्रदर्शन किया वहीं पाकिस्तान को भी चेतावनी दी| रक्षा मंत्री ने लोकसभा में कहा कि नियंत्रण रेखा के नजदीक भारतीय गश्ती दल पर 6 अगस्त, 2013 को किए गए नृशंस और अकारण हमले ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है। जब मैंने सदन में इस घटना की जानकारी दी, तब यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह उन तथ्यों की जानकारी दे, जो उस समय उसके पास मौजूद थे और मेरा बयान उपलब्ध सूचना पर आधारित था।
सेना अध्यक्ष ने उस इलाके का अब दौरा कर लिया है और मामले की विस्तार से तहकीकात की है । अब यह स्पष्ट है कि हमले में पाकिस्तानी सेना से विशेष प्रशिक्षण प्राप्त जवान शामिल थे, जिन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके से नियंत्रण रेखा को पार करके हमारे बहादुर जवानों को मार दिया। हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तानी सेना की सहायता, सुविधा और अक्सर उसके प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुए बिना नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की तरफ से कुछ नहीं हो सकता।
पाकिस्तान में जो लोग इस दुखद घटना और इस वर्ष के शुरू में दो जवानों की जघन्य हत्या के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें हर कीमत पर सजा़ मिलनी चाहिए। पाकिस्तान को आतंकवादी नेटवर्क, संगठनों और बुनियादी ढांचे को समाप्त करने के लिए स्पष्ट दृढ़ता दिखानी चाहिए और ऐसे प्रयास करने चाहिए जिनसे नवंबर, 2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ जल्द कार्रवाई हो।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि निश्चित तौर पर पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों और नियंत्रण रेखा पर हमारे व्यवहार पर असर पड़ेगा।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि हमारे संयम को कमजोरी नहीं समझना चाहिए और हमारी सशस्त्र सेना की क्षमता को तथा हमारे इस दृढ़ निश्चय को कि हम नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं होने देंगे, कम करके नहीं आंका जाना चाहिए था।

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रक्षा मंत्री ने पाकिस्तानी सेना को अभयदान दिया तो विदेश राज्य मंत्री ने चीन के साथ लगी सीमा को विवादित स्वीकारा

रक्षा मंत्री ने पाकिस्तानी सेना को अभयदान दिया अब विदेश राज्य मंत्री ने चीन के साथ लगी सीमा को विवादित स्वीकारा
पाकिस्तानी सेना की घुसपैंठ को अभयदान देकर विपक्ष के विरोध में झुलस रही भारत सरकार ने आज चीन के साथ लगी सीमा को भी विवादित स्वीकार कर लिया|
विदेश राज्य मंत्री श्रीमती प्रनीत कौर ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि भारत तथा चीन के मध्य सीमावर्ती क्षेत्र में साझा तौर पर अंकित कोई नियंत्रण रेखा नहीं है । नियंत्रण रेखा की धारणा के संबंध में मतभेद के कारण समय-समय पर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं जिन्हें दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा के संबंध में कोई साझी धारणा होने पर टाला जा सकता था ।
सरकार चीन की ओर से नियंत्रण रेखा पर किसी अतिक्रमण के मामले को, सीमा कार्मिक बैठकों, फ्लैग बैठकों, भारत तथा चीन सीमा मामले पर परामर्श समन्वय के लिए कार्यचालन तंत्र तथा राजनयिक माध्यमों की बैठकों सहित स्थापित तंत्र के माध्यम से नियमित आधार पर निपटाती है । सीमा का प्रश्न लंबित रहने तक भारत चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में नियंत्रण रेखा पर शांति तथा सौहार्द बनाए रखने की वचनबद्धता को दोनों ओर से कई अवसरों पर दोहराया गया है ।
भारत की सुरक्षा से संबंधित सभी गतिविधियों पर सरकार लगातार नजर रख रही है तथा इसे सुरक्षित रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय कर रही है ।
इससे पूर्व बीते दिन रक्षा मंत्री ऐ के अंटोनी ने राज्य सभा में यह बयाँ दिया था कि सोमवार की देर रात भारतीय सेना के पांच जवानो कि न्रिशंश हत्या करने वाले पाकिस्तानी सेना के नहीं वरन पाकिस्तानी सेना कि यूनिफार्म में आतंक वादी थेजिसे लेकर विपक्ष ने आज सदनों की कार्यवाही बाधित रखी |

नवाज शरीफ ने चाहा के हथियारों की हौड समाप्त हो लेकिन उनकी सेना ने पांच भारतीय सैनिको को मार डाला

नवाज शरीफ ने चाहा के भारत और पाकिस्तान में हथियारों की हौड समाप्त हो लेकिन उनकी सेना ने भारतीय सीमा में घुस कर पांच भारतीय सैनिको की निर्मम हत्या कर दी | पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों के हथियारबंद दस्ते ने एलओसी के करीब 450 मीटर भीतर घुसकर गश्त पर निकले भारतीय सेना के जवानों पर हमला बोला और पञ्च जवानों की निर्मम हत्या करके दौड़ गए| जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में भारतीय सैनिकों की टुकड़ी पर हमला करने वाले पाकिस्तानी सेना की वर्दी में थे | बिहार और महाराष्ट्र के शीद हुए बहादुर सैनिकों का विवरण निम्न बताया गया है |[1]-सिपाही विजय कुमार राय (21-बिहार रेजीमेंट) – पटना, बिहार[2]-सिपाही रघुनंदन राय (21-बिहार रेजीमेंट) – छपरा, बिहार[3]-नायक प्रेम नाथ सिंह (21-बिहार रेजीमेंट) – छपरा, बिहार[4]-लांस नायक शंभू शरण राय (21-बिहार रेजीमेंट) -भोजपुर, बिहार[5]-नायक माने कुंडलिक केरबा (14-मराठा लाइन)- कोल्हापुर, महाराष्ट्र|
पाकिस्तान की इस करतूत पर भारत में संसद से सड़क तक जबरदस्त आक्रोश की लहर है। भारत की क्षमता और चुप्पी पर प्रश्न उठाये जा रहे हैं|
संसद में विपक्ष ने भी पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए यूपीए सरकार पर जमकर निशाना साधा।रक्षामंत्री के बयान को लचर बता कर विपक्षी पार्टियों ने राज्यसभा में जमकर धज्जियां उड़ाई। विपक्षी दलों ने कहा कि रक्षामंत्री के बयान से ही पाकिस्तान को बचने का रास्ता मिल गया है।
रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने संसद को बताया कि हथियारों से लैस 20 आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सैनिकों के गश्ती दल पर हमला कर इसे अंजाम दिया।उन्होंने अपने वक्तव्य में पाकिस्तान की वर्दी में आतंकवादियों के हमले की बात कही जिसे विपक्ष ने गैर जिम्मेदाराना करार दिया
पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इस बार भी नमक छिड़कते हुए अपनी सेना की इस नापाक करतूत से पल्ला झाड लिया और पूरी घटना से ही इनकार कर दिया है।पाक सेना की इस हरकत ने नव निर्वाचित प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की भारत के साथ अच्छे रिश्ते की कोशिशों पर सवालिया निशान लगा दिया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक सोमवार की देर रात चक्कां दा बाग की पोस्ट पर 21 बिहार रेजिमेंट के एक जूनियर कमांडिंग ऑफिसर (जेसीओ) और पांच जवान गश्त पर निकले थे।
एक तरफ तो पाकिस्तान के प्रधान मंत्रीनावज शरीफ भारत और पाकिस्तान में तनाव कम करने के लिए हथियारों की हौड को समाप्त करने की बात करा रहे है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना की यह शर्मनाक हरकत उनके दोहरे पण को दर्शाती है| रक्षा मंत्री के बयाँ के अनुसार पाकिस्तान द्वारा इस वर्ष ५७ बार सीज फायर का उल्लंघन किया गया है| यह बीते वर्ष के मुकाबिले ८०% अधिक है|

मेरठ छावनी में कारगिल के 92 शहीदों के नाम के शिलापट लगाए

जिला सैनिक बोर्ड कार्यालय स्थित अलंकृत वाटिका में शहीदों को श्रद्धांजलि देते पूर्व सैनिक

जिला सैनिक बोर्ड कार्यालय स्थित अलंकृत वाटिका में शहीदों को श्रद्धांजलि देते पूर्व सैनिक

मेरठ में २६ जुलाई [शुक्रवार] को कारगिल विजय दिवस मनाया गया। सब एरिया कार्यालय के समीप स्थित शहीद स्मारक पार्क में सब एरिया कमांडर मेजर जनरल वीके यादव ने कारगिल के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और 92 शहीदों के नाम के शिलापट का लोकार्पण किया इस अवसर पर शहीदों के परिजन और सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए |जिला सैनिक बोर्ड कार्यालय स्थित अलंकृत वाटिका में शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई इसका आयोजन भारतीय पूर्व सैनिक संगठन के सदस्यों ने किया ।
भारतीय पूर्व सैनिक संगठन के सदस्य कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए

भारतीय पूर्व सैनिक संगठन के सदस्य कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए


महासचिव पूर्व मेजर राजपाल सिंह+ अध्यक्ष पूर्व मेजर पद्म सिंह वर्मा+ संरक्षक मेजर जनरल कर्ण सिंह सोलंकी+ रनबीर सिंह+ कर्नल ओकार सिंह+ आदि ने शहीदों को पुष्प अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

कारगिल विजय दिवस पर राष्ट्र ने शहीदों को श्रधान्जली अर्पित की

कारगिल विजय दिवस पर राष्ट्र ने शहीदों को श्रधान्जली अर्पित की
कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त करते हुए शहीद हुए भारतीय सैनिकों को आज राष्ट्र ने भावभीनी श्रधान्जली अर्पित की |रक्षा मंत्री ऐ के अंटोनी + थल सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह +नौसेनाध्यक्ष एडमिरल डी के जोशी और एयर मार्शल अरूप राहा ने इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर पुष्पचक्र चड़ाए और शहीदों को श्रधान्जली अर्पित की|
१९९९ में पाकिस्तानी फौजों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था | भारतीय सेना ने पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तन की सेना को खदेड़ा और विजय प्राप्त की |इस एतिहासिक विजय को प्राप्त करने के लिए भारतीय सैनिकों ने बड़ी संख्या में सर्वोच्च बलिदान किया |इस स्मृति में प्रतिवर्ष २६ जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है|
फोटो कैप्शन
The Defence Minister, Shri A. K. Antony, the Chief of Army Staff, General Bikram Singh, the Chief of Naval Staff, Admiral D.K. Joshi and the Vice Chief of the Air Staff, Air Marshal Arup Raha laid wreath, at Amar Jawan Jyoti, on the occasion of Kargil Vijay Diwas, in New Delhi on July 26, 2013.

कपिल सिब्बल ने ”उर्दू भाषा फान्ट और कीबोर्ड ड्राइवर” जारी करके उर्दू को तकनीकी विकास की मुख्य धारा से जोड़ा

कपिल सिब्बल ने ”उर्दू भाषा फान्ट और कीबोर्ड ड्राइवर” जारी करके उर्दू को तकनीकी विकास की मुख्य धारा से जोड़ा
श्री कपिल सिब्बल ने ”उर्दू भाषा फान्ट और कीबोर्ड ड्राइवर” जारी करके उर्दू और इसके भाषियों को तकनीकी+ शिक्षा +विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए पहल की
केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने आज यहां विभिन्न माध्यमों के लिए ”उर्दू भाषा फान्ट और कीबोर्ड ड्राइवर” जारी किए। इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के भारतीय भाषाएं कार्यक्रम के लिए प्रौद्योगिकी विभाग के तत्वावधान के तहत विकसित यह फान्ट एवं कीबोर्ड ड्राइवर जनता के इस्तेमाल के लिए निशुल्क उपलब्ध होंगे। डिजिटल माध्यम पर भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी विभाग पर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग मुख्य बल दे रहा है।
किसी भाषा की वृद्धि के लिए सामग्री रचना और उपभोग महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक है तथा इसी को ध्यान में रखते हुए जनता के लिए निम्नलिखित उर्दू फान्ट एवं कीबोर्ड ड्राइवर जारी किए जा रहे हैं:
1]. नक्श लिपि के लिए यूनिकोड सक्षम ओपन फान्ट फार्मेट – 12
2]. नसतालिक लिपि के लिए यूनिकोड सक्षम ओपन फान्ट फार्मेट – 1
3]. बढ़ी हुई इनस्क्रिप्ट, फोनेटिक और विंडो 32/64 बिट आप्रेटिंग सिस्टम के लिए अनुकूल उर्दू कीबोर्ड ड्राइवर
4.] एंड्रॉयड प्लेटफार्म के लिए बढ़ी हुई इनस्क्रिप्ट वाले कीबोर्ड के साथ उर्दू कीबोर्ड ड्राइवर
मंत्रालय द्वारा जारी विवरण के अनुसार उूर्दू फान्ट वह पहला संपर्क है जो यूजर अपनी स्क्रीन पर एप्लिकेशन के साथ करता है तथा मोटेतौर पर यह फान्ट की पसंद और आकर्षण है जो एप्लिकेशन को दृश्यात्मक रूप से आकर्षक बनाता है। सीडैक और जिस्ट ने फान्ट विकसित करते समय इन तथ्यों को हमेशा ध्यान में रखा है।

The Union Minister for Communications & Information Technology and Law & Justice, Shri Kapil Sibal launching the Urdu Fonts and Keyboard Managers, at a function, in New Delhi on July 12, 2013.

The Union Minister for Communications & Information Technology and Law & Justice, Shri Kapil Sibal launching the Urdu Fonts and Keyboard Managers, at a function, in New Delhi on July 12, 2013.


कुल 12 नक्श और 1 यूनिकोड 6.2 के अनुकूल फान्ट जनता के लिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
बढ़ी हुई इनस्क्रिप्ट पर आधारित उर्दू कीबोर्ड ड्राइवर
उर्दू के लिए जनवरी 2007 में जारी कीबोर्ड ड्राइवर इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट पर आधारित था जिसे अब इनस्क्रिप्ट स्टैंडर्ड को बढाकर आधुनिक यूनिकोड स्टैंडर्ड 6.2 के अनुकूल बनाया गया है। नया उर्दू कीबोर्ड ड्राइवर बढ़ी हुई इनस्क्रिप्ट पर आधारित है जो इस्तेमाल करने वाले को यूनिकोड साफ्टवेयर में टाइप करने, ईमेल लिखने, उर्दू में चैट करने की सुविधा देता है। यह सीधे दाई तरफ से बाई तरफ लिखने के लिए अनुकूल है तथा नोटपैड, एमएस वर्ड, इत्यादि जैसी विंडो में भी काम करता है।
एंड्रॉयड प्लेटफार्म के लिए बढ़ी हुई इनस्क्रिप्ट वाला कीबोर्ड
एंड्रॉयड डिवाइसेज के लिए ऑनस्क्रीन कीबोर्ड ड्राइवर, 3 लेयर्ड – अंग्रेजी क्वेरटी लेयर, अंग्रेजी को सपोर्ट करने के लिए उपलब्ध कराइ्र गई है। यह एंड्रॉयड वर्जन 4.1 और उससे अधिक को सपोर्ट करता है।

अडवाणी ने धारा ३७० के लिए कांग्रेस और उमर अब्दुल्लाह के दादा की गलतियों का इतिहास पढाया ;सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने कभी अपने सहयोगी रहे जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को धारा ३७० पर सलाह देते हुए कहा कि उन्हें ‘धोखाधड़ी‘ और ‘विश्वासघात‘ जैसे शब्दों से भरी आक्रामक भाषा का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। अपने ब्लाग के माध्यम से अडवाणी ने कहा कि उन्हें[उमर] पता होना चाहिए कि संविधान सभा में धारा-370 जो जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती, को जब स्वीकृति दी गई तब तक जनसंघ का जन्म भी नहीं हुआ था। हालांकि संविधान के प्रारूप में यदि कोई ऐसा प्रावधान था जिसका विरोध लगभग समूची कांग्रेस पार्टी कर रही थी तो वह यही प्रावधान था। इस मुद्दे पर नवम्बर, 1946 में संविधान सभा द्वारा संविधान को औपचारिक रूप से अंगीकृत करने से दो महीने पूर्व ही विचार किया गया।
इस विषय को लेकर इतिहास के पन्नो को पलटते हुए अडवाणी ने कहा कि सरदार पटेल के तत्कालीन निजी सचिव वी. शंकर द्वारा लिखित दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक ‘माई रेमिनीसेंसेज ऑफ सरदार पटेल” के अनुसार विदेश जाने से पहले नेहरू ने जम्मू व कश्मीर राज्य से संबंधित प्रावधानों को शेख अब्दुल्ला के साथ बैठकर अंतिम रूप दिया और संविधान सभा के माध्यम से उन प्रावधानों को आगे बढ़ाने का काम अपने रक्षामंत्री गोपालस्वामी अयंगार को सौंप दिया। प्रस्तुतु है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से :
अयंगार ने अपने प्रस्तावों को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में प्रस्तुत किया। शंकर के अनुसार इससे चारों ओर से रोषपूर्ण विरोध के स्वर उठने लगे और अयंगार स्वयं को बिल्कुल अकेला महसूस कर रहे थे, एक अप्रभावी समर्थक के रूप में मौलाना आजाद को छोड़कर।
शंकर के अनुसार, ‘पार्टी में एक बड़ा वर्ग था, जो जम्मू व कश्मीर और भारत अन्य तिरस्कृत राज्यों के बीच भेदभाव के किसी भी सुझाव को भावी दृष्टि से देख रहा था और जम्मू व कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के संबंध में एक निश्चित सीमा से आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं था।
सरदार पटेल स्वयं इसी मत के पक्ष में थे; लेकिन नेहरू और गोपालस्वामी अयंगार के निर्णयों में दखलंदाजी न करने की अपनी स्वाभाविक नीति के चलते उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत नहीं किए और इस प्रकार, नेहरू और अयंगार ने अपने अनुसार ही सारा मामला निपटाया था। सच तो यह है कि प्रस्ताव का प्रारूप तैयार करने में सरदार पटेल ने भाग नहीं लिया था। इनके बारे में उन्हें तभी पता चला, जब गोपालस्वामी अयंगार ने कांग्रेस संसदीय दल के सामने उसे पढ़कर सुनाया।‘
कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में अपने साथ हुए कठोर बरताव से निराश होकर अयंगार अंतत: सरदार पटेल के पास पहुंचे और उन्हें इस स्थिति से बचाने का अनुरोध किया। सरदार पटेल ने कांग्रेस संसदीय ल की एक और बैठक बुलाई।
शंकर लिखते हैं कि: ”मैंने कभी भी ऐसी तूफानी और कोलाहलपूर्ण बैठक नहीं देखी। मौलाना आजाद को भी शोर मचाकर चुप करा दिया गया। अंत में चर्चा को सामान्य व व्यावहारिक स्थिति में लाने और बैठक में उपस्थित लोगों को यह समझाने-कि अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के कारण एक कामचलाऊ व्यवस्था ही की जा सकती है-का काम सरदार पटेल पर छोड़ा गया।‘
”ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस पार्टी अनिच्छापूर्वक ही सरदार पटेल की इच्छाओं के सामने झुकी। वस्तुत: इसी से स्पष्ट हो जाता है कि संविधान सभा में इस प्रावधान पर हुई चर्चा इतनी सतही और नीरस क्यों थी। अयंगार के अलावा और किसी ने कुछ नहीं कहा-न विरोध में, और न ही समर्थन में।”
यह ज्ञात हुआ, यहां तक कि सरदार पटेल और अयंगार को भी उन प्रारूप प्रावधानों को कांग्रेस पार्टी को सहमत कराना मुश्किल रहा जो विदेश जाने से पूर्व अयंगार और शेख अब्दुल्ला ने पण्डित नेहरू के साथ बैठकर तैयार किए थे; शेख अब्दुल्ला इन स्वीकृत प्रारूप् पर भी पुनर्विचार के संकेत देने लगे थे।
14 अक्तूबर, 1949 को गृह मंत्रालय में कश्मीर मामलों के सचिव विष्णु सहाय ने वी. शंकर को लिखा कि शेख अब्दुल्ला ने प्रारूप पर अपना रूख इस दलील पर बदला है कि नेशनल कांफ्रेंस की वर्किंग कमेटी ने इसे स्वीकृति नहीं दी है।
सहाय लिखते हैं कि अब्दुल्ला ने एक वैकल्िपिक प्रारूप भेजा है जिसमें प्रावधान है कि भारतीय संविधान जम्मू एवं कश्मीर में केवल माने गए विषयों पर ही लागू होगा। शेख ने इस तथ्य पर भी आपत्ति की कि प्रस्तावित अनुच्छेद को अस्थायी वर्णित किया गया है और राज्य की संविधान सभा इसे समाप्त करने हेतु सशक्त है।
15 अक्तूबर, 1949 को शेख अब्दुल्ला और उनके दो साथी अयंगार से मिले तथा उन पर प्रारूप बदलने को दवाब डाला। उसी दिन अयंगार ने सरदार पटेल कोइसकी जानकारी दी। 15 अक्तूबर को सरदार पटेल को लिखे अपने पत्र में अयंगार ने लिखा कि ”उनके (अब्दुल्ला और उनके दो साथियों) द्वारा की गई आपत्तियों में कोई ठोस मुद्दा नहीं था।” उन्होंने आगे जोड़ा ”अंत में मैंने उन्हें कहा कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि आपके घर (पटेल) और पार्टी बैठक में हमारे प्रारूप के प्रावधानों पर सहमत होने के बाद, वे मुझे और पण्डितजी को इस तरह से शर्मिंदा करेंगे जिसका वे प्रयास कर रहे थे। उत्तर में, शेख अब्दुल्ला ने कहा कि ऐसा सोचने पर वह भी काफी दु:ख महसूस कर रहे हैं। लेकिन अपने लोगों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए मुझे इस रूप में प्रारूप स्वीकार करना असम्भव है…….. उसके पश्चात् मैंने उन्हें कहा कि आप वापस जाइए और इस सब पर विचार कीजिए जो मैंने आपको कहा है और आशा है कि वह सही दिमागी दशा में आज या कल मेरे पास वापस आएंगे। तत्पश्चात् मैंने मामले पर आगे विचार किया तथा एक प्रारूप लिखा जिसमें मुख्य दृष्टिकोण को बदले बिना जोकि हमने हमारे प्रारूप में उल्लिखित किया है, में मामूली सा बदलाव किया है जिसे मैं उम्मीद करता हूं कि शेख अब्दुल्ला राजी हो जाएंगे।”
16 अक्तूबर, 1949 को सरदार पटेल का अयंगार को जवाब संक्षिप्त और कठोर था। वह अयंगार से इस पर सहमत नहीं थे कि बदलाव मामूली हैं। पटेल लिखते हैं: ”मैंने पाया कि मूल प्रारूप में ठोस बदलाव किए गए हैं, विशेष रूप से राज्य नीति के मूलभूत अधिकारों और नीति निदेशक सिध्दान्तों की प्रयोजनीयता को लेकर। आप स्वयं इस विसंगति को महसूस कर सकते हैं कि राज्य भारत का हिस्सा बन रहा है और उसी समय इन प्रावधानों में से किसी को भी स्वीकार नहीं कर रहा।”
पटेल ने आगे लिखा: ”शेख साहब की उपस्थिति में हमारी पार्टी द्वारा समूचे प्रस्ताओं को स्वीकृत करने के पश्चात् इसमें किसी भी बदलाव को मैं पसंद नहीं करता। जब चाहे शेख साहब लोगों के प्रति अपने कर्तव्य की दलील पर सदैव हमसे टकराव करते रहते हैं। मान लिया कि उनकी भारत या भारतीय सरकार या आपके और प्रधानमंत्री के जिन्होंने उनकी बात मानने में कोई कोताही नहीं बरती, के प्रति भी निजी आधार पर कोई कर्तव्य नहीं बनता।
अपनी कसी हुई टिप्पणियों में उन्होंने कहा: ”इन परिस्थितियों में मेरी स्वीकृति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यदि आपको यह करना सही लगता है तो आप आगे बढ़ सकते हैं।”
इस बीच शेख अब्दुल्ला ने अयंगार का संशोधित प्रारूप भी रद्द कर दिया और 17 अक्तूबर को अयंगार को लिखे एक पत्र में संविधान सभा से त्यागपत्र देने की धमकी भी दे दी।
17 अक्तूबर, 1949 को संविधान सभा ने बगैर ज्यादा बहस के अयंगार के मूल प्रारूप को स्वीकर कर लिया। शेख अब्दुल्ला से आशा थी कि वह बोलेंगे, लेकिन वह खिन्न और मौन रहे।
नेहरूजी के विदेश से लौटने के बाद सरदार पटेल ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में हुए घटनाक्रम को निम्न शब्दों में लिखा (3 नवम्बर, 1949):
”प्रिय जवाहरलाल,
कश्मीर सम्बन्धी प्रावधान के बारे में कुछ कठिनाईयां थी। शेख साहब उस समझौते से मुकर गए जो कश्मीर सम्बन्धी प्रावधान के सम्बन्ध में वह आपके साथ सहमत हुए थे। वह मूलभूत चरित्र में कुछ निश्चित बदलावों पर जोर दे रहे थे जो नागरिकता और मौलिक अधिकारों सम्बन्धी प्रावधानों को कश्मीर में लागू नहीं होने देने और इन सब मामलों सहित अन्य में भी वे हैं जो राज्य सरकार द्वारा एकीकरण के तीन विषयों जोकि इस रूप में वर्णित हैं कि महाराजा 8 मार्च, 1948 की उद्धोषणा के तहत नियुक्त मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम कर रहे हैं। काफी विचार विमर्श के बाद मैं पार्टी को इन सब बदलावों पर सहमत कर सका सिवाय अंतिम को छोड़कर, जोकि संशोधित किया गया जिससे न केवल पहला मंत्रिमण्डल कॅवर हो सके अपितु इस उद्धोषणा के तहत तत्पश्चात् भी मंत्रिमण्डल नियुक्त हो सकें।
शेख साहब अपने आपको इन बदलावों से नहीं जोड़ सके, लेकिन हम इस मामले में उनके विचारों को नहीं मान सके और प्रावधान सदन ने जैसाकि हमने बदले थे, को पारित कर दिया। इसके पश्चात् उन्होंने गोपालास्वामी अयंगार को पत्र लिखकर संविधान सभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने की धमकी दी है। गोपालस्वामी ने उनको जवाब दिया है कि वह आपके आने तक अपना निर्णय स्थगित रखें।
आपका
वल्लभभाई पटेल
जैसाकि इस ब्लॉग के शुरू में ही मैंने लिखा कि जम्मू एवं कश्मीर के संदर्भ में भाजपा के रूख पर ‘धोखाधड़ी‘ जैसे अपमानजनक शब्दों का उपयोग करना किसी के लिए भी शोभनीय नहीं है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर 1951 में जनसंघ के जन्म से लेकर आज तक हम न केवल सुस्पष्ट, स्पष्टवादी और सतत् दृष्टिकोण बनाए हुए हैं, अपितु यही एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर हमारे संस्थापक-अध्यक्ष ने अपना जीवन बलिदान कर दिया और जिसके लिए लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारियां दी तथा अनेक तरह के कष्ट सहे। कानपुर में हमारे पहले अखिल भारतीय सम्मेलन के समय से लेकर हम जम्मू एवं कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के लिए कटिबध्द हैं।

कश्मीर में धारा ३७० के लिए पटेल नही वरन नेहरू जिम्मेदार हैं :एल के आडवाणी

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी ने अपने नए ब्लॉग के पश्च्य लेख (टेलपीस)में कश्मीर में धारा ३७० के लिए पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हुए लोह पुरुष +इंडियन बिस्मार्क पटेल का बचाव किया है| श्री आडवाणी ने स्वतंत्र भारत के इतिहास के प्रारम्भिक पन्नो को खोलते हुए कहा है कि पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दबाब में आ कर कश्मीर नीति में अपने स्वयम के निर्णय को त्याग कर सरेंडर कर दिया था|आडवाणी ने बताया कि सरदार पटेल की मृत्यु दिसम्बर, 1950 में हो गई थी।
24 जुलाई 1952 को पण्डित नेहरू ने जम्मू एवं कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर लोकसभा में एक विस्तृत वक्तव्य दिया। इसमें उन्होंने मजबूती से अनुच्छेद 370 का बचाव किया। उन्होंने यह भी कहा कि सरदार पटेल ही जम्मू एवं कश्मीर के मामले को देख रहे थे। वी. शंकर जो 1952 में आयंगार के मंत्रालय में संयुक्त सचिव थे, अपने मंत्री के पास गए और जो हुआ था उस पर परस्पर जानकारी साझा की। गोपालस्वामी आयंगार की टिप्पणी थी: ”यह सरदार पटेल की उस उदारता का गलत और दुर्भावनापूर्ण प्रतिफल है, जो उन्होंने अपने उत्कृष्ट निर्णय को छोड़कर पण्डित नेहरू के दृष्टिकोण को स्वीकार करने में दिखाई।”

ब्रिटेन ने भारत को भी उच्च जोखिम वाला देश करार दिया

ग्रेट ब्रिटेन को अब भारत के शांति प्रिय पर्यटकों से भी खतरा लगाने लगा है तभी भारत को भी उच्च जोखिम वाला देश करार दे कर यहां आने वाले भारतीयों को मात्र छह महीने के वीजा के लिये 3,000 पौंड[ लगभग पौने तीन लाख रुपये ] देने होंगे। ‘संडे टाइम्स’ के अनुसार ब्रिटेन के गृह विभाग ने घोषणा की है कि पायलट योजना के तहत उच्च जोखिम वाले देशों से [जिसमे भारत को भी शामिल किया गया है] आने वाले अगर निर्धारित अवधि का उल्लंघन करते हैं तो जमा राशि जब्त कर ली जायेगी|इन जोखिम वाले देशों में भारत, पाकिस्तान+घाना और नाइजीरिया समेत अफ्रो-एशियाई देश को शामिल किया गया है|भारत+ पाकिस्तान +नाइजीरिया और एशिया +अफ्रीका के कुछ देशों के १८ साल से ऊपर के नागरिकों को ब्रिटेन में संदेह की निगाह से देखा जाने लगा है | इन देशों को ब्रिटेन हाई रिस्क श्रेणी में रखता है इसीलिए ब्रिटिश गृह मंत्री थेरेसा में ने यह कदम उठाकर स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री डेविड केमरन की सरकार अप्रवासियों की संख्या कम करने के लिए गंभीर है।
बीते साल छह महीना का वीजा[१] भारत के 2,96,000, [२]नाइजीरिया के 1,01,000,[३] पाकिस्तान के 53,000 और [४]श्रीलंका व बांग्लादेश के 14,000 नागरिकों को दिया गया था।भारत से अधिकतर शिक्षा और रोजगार के लिए आते हैं अगर यह पायलट प्रोजेक्ट लागू हो जाता है तो ब्रिटेन में पढ़ाई और नौकरी का सपना देख रहे भारतीयों को नवम्बर से वीजा के लिए ज्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है।
गौरतलब है कि ब्रिटेन में पिहले कुछ समय से आतंकवाद का जोर है और इसी कि रोकथाम के लिए कुछ देशों को उच्च जोखिम वाले देशों की सूची में शामिल किया गया है और इन देशों के नागरिकों के ब्रिटेन में आगमन को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से यह नया कानून बनाया जा रहा है| अगर आंकड़े देखे जाएँ तो इंग्लैण्ड में आतंक वाद कि घटनाओं में अभी तक किसी भारतीय का हाथ साबित नही किया गया है|ऐसे में कहा जा सकता है कि ब्रिटेन भारत के विरुद्ध यह एक साजिश है क्योंकि एक तरह भारत के नागरिकों को हटत साहित किया जा रहा है मगर दूसरी तरफ उनके कैश बांड पर नज़र रखी जा रही है|शायद यह भारतीयों के मुह पर ब्रिटिश तमाचा है|