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अरोरा परिवार ने सूदखोरों के आतंक से आत्महत्या की तो कार्यवाही क्यूँ नहीं ?

[मेरठ,यूपी,दिल्ली]मेरठ में एक ही परिवार की एक साथ एक ही श्मशान में पांच चिताये जली |इस दुखद घटना ने कुछ ज्वलन्त सवाल उछाल दिए हैं जो शायद हमेशा की तरह समय की धूल में ही दब कर रह जायेंगे |
अंग्रेजों के खिलाफ जंग का एलान करने वाली क्रांतिधरा मेरठ में पुरुषार्थी समाज के पञ्च शवों को शमशान घाट लेजाने के लिये कांधों की कमी पढ़ गई |इस सामाजिक+मानवीय ऋण चुकाने के लिए किराये के कांधों का इंतेजाम किया गया
शुक्रवार को एक ही परिवार के पांच सस्दयों के शव मिलने से इलाके में गम की चादर फैली है|स्थानीय पुलिस द्वारा बताया जा रहा है के परिवार के पाँचों सदस्यों ने सामूहिक आत्महत्या की है| समाज और मीडिया भी इसी लाइन को लेकर चल रहा है|अपराध स्थल के मद्देनजर पोलिस की तफ्तीश पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं |
हँसते खेलते+ खाते पीते परिवार के सभी सदस्यों द्वारा आत्म हत्या का यह पहला मामला नहीं हैं|समाज की उदासीनता का भी यह अंतिम उदाहरण नहीं होगा और ऐसे केसों पर पोलिस की तफ्तीश पर सवाल उठते रहे हैं और उठाये रहेंगे
क्योंकि रविवार को कानपूर की जुडिशल मजिस्ट्रेट प्रतिभा गौतम की लाश एक फंदे से झूलती मिली जिसे प्रथम द्रष्टया आत्म हत्या बताय गया लेकिन पोस्ट मार्टम के पश्चात् अब प्रतिभा के ससुराल वालों के खिलाफ हत्या का मामला बनाया जा रहा है|सभी ऐसे केस नहीं हो सकते क्योंकि इसी हफ्ते नॉएडा के डॉक्टर के परिवार के सदस्यों के रांची में शव मिले हैं उनके समीप सुसाइड नोट्स भी मिले हैं
इसीलिए किसी निर्णय पर पहुँचने से पूर्व मेरठ के अरोरा परिवार के पाँचों सदस्यों की मृत्यु को लेकर पोलिस की आत्महत्या की थ्योरी को लेकर चलते हैं|पोलिस के अनुसार अरोरा परिवार पर भारी कर्ज था| कर्ज को लेकर पढ़ा लिखा पूरा परिवार आत्महत्या करे यह थ्योरी कुछ हजम नहीं हो रही|कोई भी दादा अपने सामने अपने पोते की मृत्यु के विषय में सोच भी नहीं सकता,इसीलिए पुत्र और पोते से आत्महत्या करवाना सामान्य समझ से पर हैं|
पाँचों ने आत्महत्या की तो सवाल उठता है के इन्होंने क्यूँ आत्महत्या की?कर्ज पर ब्याज की क्या शर्ते थी ??क्या कर्ज लेनदारों ने कोई धमकी दे रखी थी ???या लेनदारों के दबंगों[बाउंसर्स] की दबंगई से ये लोग आतंकित थे ????
शहर में कर्ज पर ब्याज के आतंक से अनेकों सभ्रांत परिवार त्रस्त हैं|ऐसे सूदखोरों के प्रशासन+शासन+मीडिया में रसूख हैं ,जिनके चक्रव्यूह में फंस कर कर्जदार दिवालिया होकर आत्महत्या करने पर मजबूर होजाता है|सम्भवत इसीलिए मीडिया घरानों से लेकर राजनितिक गलयारों से भी सूदखोरों के विरुद्ध कोई आवाज नही उठी |
अगर देखा जाये तो कर्जदारोंको आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाना भी एक अक्षम्य गंभीर अपराध है|पोलिस अगर आत्महत्या में दर्ज ऐसे सूदखोरों के नाम उजागर करके उनके विरोध कठोर कार्यवाही करे तो सम्भवत ऐसे अनेकों परिवार असमय कल के गाल में जाने से बच सकेंगे