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सृष्ठी के छह चक्रों को पार करने पर ही सत लोक की अनुभूति होती है

गुरु अमरदास जी फरमाते हैं –
काया अन्दर सब किछ बसे , खंड, मंडल , पाताला ।
काया अन्दर जग जीवन दाता , सबनां करे प्रतिपाला ।
काया कामण सदा सहेली , गुरुमुख नाम संभाला ।
भाव: इस शरीर की विचित्र रचना है। इस स्थूल शरीर में छह चक्र हैं – पहला गुदा चक्र है , उसका धनी गणेश है । दूसरा इंद्री चक्र है , जिसका धनी ब्रह्मा है । तीसरा नाभि चक्र है, उसका धनी विष्णु है । चौथा ह्रदय चक्र है , जिसका धनी शिव है । पांचवा कंठ चक्र है , जो दुर्गा का स्थान है , वह ब्रह्मा , विष्णु, महेश तीनों की माता है । छटा चक्र दो भ्रू – मध्य आँखों के पीछे है जिसे शिवनेत्र या तीसरी आँख भी कहते हैं \ यह शरीर में रूह की बैठक या आत्मा का ठिकाना है इन चक्रों को तय कर योगीजन अनहद शब्द को पकड़कर सहस्रार में लीन होते हैं ।
गुरु नानक साहब ने योगियों से बातचीत में इसका संकेत दिया है – इस काया अन्दर मंगन चढ़े जोगी तां नाओं पल्ले पाई । अर्थात – इन छह चक्रों से ऊपर आओ तो नाम का परिचय , अनुभव मिलेगा । जैसे पिंड के छह चक्र हैं , ब्रह्माण्ड के भी छह चक्र हैं — सहस्रार या सहस्र दल कमल , त्रिकुटी , सुन्न , महासुन्न, भंवरगुफा और सतलोक या सचखंड । इन मंडलों को गुरु की सहायता से ही तय किया जा सकता है ।
गुरु अमरदास जी,
गुरु नानक,
प्रस्तुती राकेश खुराना