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नासा का स्पेसक्राफ्ट मार्स रोवर- क्यूरियोसिटी स्काईक्रेन के जरिए मंगल पर लैंड हुआ।

अमेरिकी हाई टेक मार्स रोवर क्यूरियोसिटी मंगल की सतह पर सफलता पूर्वक उतर गया है। । भारतीय समयानुसार सोमवार करीब 11 बजे गेल क्रेटर में इसकी लैंडिंग हुई। नासा इसका लाइव प्रसारण किया जा रहा है| इस मिशन में कुछ भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं।
मार्स साइंस लेबोरेटरी के शोध के आधार पर ही मंगल ग्रह पर मानव को भेजने की योजना साकार हो सकेगी। नासा का यह स्पेसक्राफ्ट मार्स रोवर- क्यूरियोसिटी स्काईक्रेन के जरिए मंगल पर लैंड हुआ। जैसे ही यह स्पेसक्राफ्ट मंगल पर लैंड हुआ और इससे सिग्लन मिलने लगे, नासा के वैज्ञानिक जश्न में डूब गए। नासा के वैज्ञानिकों को इस स्पेसक्राफ्ट से तस्वीरें मिलने लगी हैं।
: 6 पहियों वाले क्यूरियोसिटी का वजन 900 किलो है। ऊंचाई 3 मीटर, स्पीड औसतन 30 मीटर प्रति घंटा। यह रोवर मंगल पर 2 साल काम करेगा। इस दौरान कम से कम 19 किलोमीटर की दूरी तय करेगा। यह रोवर नासा ने 26 नवंबर 2011 को केप कैनेवरल स्पेस स्टेशन से एटलस-5 नामक रॉकेट से लॉन्च किया था। रोवर मंगल पर रेडियोआइसोटॉप जेनरेटर से मिलने वाली बिजली से चलेगा। ईंधन के रूप में प्लूटोनियम-238 का इस्तेमाल होगा।
इस मिशन में मंगल के मौसम, वातावरण और भूगोल की जांच होगी। इनसे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई संभावना है।
इंडियन एंगल: नासा साइंटिस्टों और इंजिनियरों में कई भारतीय मूल के हैं। यही नहीं, रोवर में लगाए गए एक माइक्रोचिप पर 59,041 भारतीयों के नाम भी दर्ज हैं। असल में नासा ने पूरी दुनिया से लोगों को मिशन में हिस्सेदारी करने के लिए इनवाइट किया था। इस पर अमेरिका से सबसे ज्यादा 5,29,386, फिर ब्रिटेन से 77,329 नाम आए। तीसरे नंबर पर भारतीय रहे।
पिछले मार्स रोवर और उनका हासिल
जून व जुलाई 2003 को नासा ने स्पिरिट और फिर ऑपरट्यूनिटी नामक मार्स रोवरों से लदे दो रॉकेटों को मंगल की ओर रवाना किया था। स्पिरिट ने शुरुआती एक वर्ष में ही गुसेव क्रेटर की पड़ताल की। इस क्रेटर के बारे में माना जाता था कि यह गड्ढा वहां पानी की झील रहने के कारण बना होगा, पर स्पिरिट ने जो आंकड़े भेजे हैं, उनसे वहां पानी की मौजूदगी का कोई प्रमाण नहीं होने की पुष्टि हुई। ऑपरट्यूनिटी को चट्टानों में हेमेटाइट नामक खनिज का पता चला, जिसे पानी की उपस्थिति का अच्छा प्रमाण माना जाता है। पर स्पिरिट और ऑपरट्यूनिटी, दोनों मिलकर साबित नहीं कर पाए कि मंगल कभी आबाद था या वहां पानी वास्तव में था। 1960 से अब तक इंटरनैशनल लेवल पर 39 मार्स मिशन हो चुके हैं। इनमें से 17 को आंशिक या पूर्ण सफलता मिली है। कामयाब होने वाल मिशनों में ज्यादातर अमेरिकी मिशन रहे हैं।
यह अब तक का सबसे महँगा मिशन बताया जा रहा है