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संत रजिंदरसिंह जी ने बंसत ऋतू में आत्मा व्यायाम भी जरूरी बताया

[नई दिल्ली]संत रजिंदर सिंह जी महाराज ने बंसत ऋतू में आत्मा व्यायाम का भी उपदेश दिया इसके लिए उन्होंने ध्यानाभ्यास को जरूरी बताया|
साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के संत राजिन्दर सिंह जी महाराजने कहा हे के
वसंतऋतु का ख़ुशनुमा मौसम हमें घर से बाहर निकलने, व्यायाम करने, और अपने शारीरिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। जहाँ वसंतऋतु तरह-तरह के व्यायामों के लिए अच्छा समय है, जैसे कि मैराथाॅन की तैयारी करना, जाॅगिंग करना, और अन्य तरह के खेलकूद में हिस्सा लेना, वहीं यह समय आत्मा के व्यायाम के लिए भी बहुत अच्छा है। ध्यानाभ्यास वो सरल विधि है जिसके द्वारा हम अपनी आत्मा का व्यायाम और उसका विकास कर सकते हैं। ध्यानाभ्यास से हमारा आत्मिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर हो जाता है।
महाराज ने अपने ब्लॉग में बताया के जहाँ एक ओर हम अपने व्यायामों, जैसे कि एैरोबिक्स, कार्डियोवस्क्युलर एैक्सरसाइज़, वेट लिफ़्टिंग, इंटरवल ट्रेनिंग, वेट-बियरिंग एैक्सरसाइज़ आदि, की रूपरेखा तैयार करते हैं – यह तय करते हैं कि हमें रोज़ाना कितने मिनट कौन सा व्यायाम करना है – वहीं हम ध्यानाभ्यास के लिए भी रोज़ाना एक अवधि निश्चित कर सकते हैं, ताकि हमारे शरीर, मन, और आत्मा को लाभ मिल सके। इससे हम देखेंगे कि हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गए हैं, बल्कि आत्मिक रूप से भी स्वस्थ हो गए हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा आत्मिक स्वास्थ्य-लाभ पाने से हम जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का सामना शांत व स्थिर रूप से कर पाते हैं। इससे हमारा तनाव कम होता है, तथा हम तनाव से उत्पन्न रोगों का शिकार होने से बच जाते हैं। साथ ही, ध्यानाभ्यास के द्वारा हम आंतरिक मंडलों की सुंदरता, प्रकाश, ध्वनि, प्रेम, शांति, व ख़ुशी का अनुभव भी कर पाते हैं।
रोज़ाना आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने से, हम बाहरी वसंतऋतु की ताज़ा हवा का आनंद लेने के साथ-साथ अंतर में आध्यात्मिक वसंतऋतु की स्फूर्तिदायक हवा का आनंद भी ले पाते हैं।