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उजालों के आते ही स्याह साये हो गए साफ़ ,रह गई W UP फिरने को यहाँ से वहां मारी मारी

आश्वासन की मृगतृष्णा में आरोपों के हैं चश्मे ,बेचारी जनता फिर रही यहाँ से वहां मारी मारी
ग़ुरबत में जो थाम ले हाथ वोही है सच्चा हमदर्द , उजालों में तो स्याह साये तक साथ छोड़ देते हैं
सियासी मुस्कराहट से किस का हुआ कब भला ,फूल सूखने पर ये भवरें कब कली पर टिकते हैं
केंद्र के एलेक्शंस हुए यूं पी में देरी है सालों की,वेस्टर्न यूं पी के भाग्य में केवल है भारी लाचारी
बिजली नही ,न्याय नहीं,नहीं है कहीं रोजगारी ,आश्वासन की मृगतृष्णा हैं आरोपों के हैं चश्मे
मीडिया के अनेकों स्तम्भों में नीवं में हैं विज्ञापन,इसीलिए “गोयनका” की कमी खलती भारी
इलेक्ट्रॉनिक्स हो या प्रिंट मीडिया या फिर हो कोई सोशल साइट सबने ढपली अलग ही बजाई
उजालों के आते ही स्याह साये भी साफ़ हो गए ,रह गई जनता फिरने को यहाँ से वहां मारी मारी