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उफ़ ये गर्मी तो जाने का नाम ही नहीं लेती,अरे मेहमान तो दो दिन ही अच्छा होता है

सूरज तुझे भी पूरा हक़ है हमें रुलाने का
पर चुप कराने का हुनर भी आना चाहिए
ठीक है,तुम्हें कपडे अच्छे नहीं लगते
सामाजिक तकाजा है ,सो मजबूरी है
मोती मानस चून से दुश्मनी हुई पुरानी
इंसानों की जान पर आफत बन आई है
ये गर्मी क्या क्या गुल खिलाएगी
पारा तो जा पहुंचा हैं ४३ पर अभी
उफ़ ये गर्मी तो जाने का नाम ही नहीं लेती
अरे मेहमान दो दिन का ही अच्छा होता है
माना होंगें तुम्हारे चाहने वाले भी दुनिया में
उनको भी मेजबानी का अवसर मिलना चाहिए