सेना के एक विशेष रूप के बही खातों का महज़ दो सालों का आडिट करवाए जाने से लगता है कि सरकार ने बगावती तेवर दिखाने वाले रिटायर्ड सेना प्रमुख वी के सिंह पर लगाम कसनी शुरू कर दी है|रक्षा मंत्रालय के आधीन रक्षा लेखा विभाग[Defence Accounts Department] की एक शाखा से कराये गए विशेष आडिट में उपकरणों की खरीद में अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल के लिए अन्य पूर्व सेना प्रमुखों के साथ अभी हाल ही में रिटायर्ड हुए जनरल वी के सिंह भी चपेट में आ रहे हैं लेकिन यह भी सत्य है कि आंतरिक आडिट रिपोर्ट में किये गए खुलासे चौंकाने वाले हैं| सेना की एक कमांड से रिजेक्ट किये गए उपकरणों को दूसरी कमांड द्वारा खरीदा जाना अपने आप में व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाता है| सेना को होली काऊ मान कर इसके प्रति आज तक आलोचना से बचा जाता रहा है लेकिन इस बार आडिट रिपोर्ट को मीडिया में पब्लिश करवाए जाने के भी कुछ विशेष कारण पर्दे के पीछे जरूर होंगें|वैसे यह भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि बाद में कैग इसका आडिट करे इससे पहले स्थिति की जानकारी ले ली जाये|लेकिन एक बात गौर करने लायक है कि कैग द्वारा आडिट की रिपोर्ट मीडिया में छपने
आडिट रिपोर्ट में उजागर गलतियों के कारण देश को महज दो साल में 100 करोड़ की चपत के रूप में लग चुकी है।अगर अडिट विभाग कि यह वित्तीय सलाह है या मेजर फायनेंशियल इर्रेगुलेटरी है और अगर यह सेना द्वारा स्वीकार कर ली जाती है[जिसकी उम्मीद कम ही नज़र आती है] तो इस पर देश कि सबसे बड़ी अदालत संसद में चर्चा की जानी चाहिए | जैसी की उम्मीद थी थलसेना ने खरीद में हुए 100 करोड़ के नुकसान की बात से इनकार किया है. उसका कहना है कि किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है.ये उपकरण सीधे कंपनी से खरीदने की बजाय दलालों के जरिए खरीदे गए। जबकि मूल कंपनी के अफसर भारत में ही मौजूद थे।जांच के मुताबिक अगर ये संचार उपकरण भारतीय कंपनियों से खरीदे गए होते तो सस्ते मिल सकते थे। ये मामला महज फिजूलखर्ची का नहीं बल्कि नियमों की अनदेखी का भी है।
आरोप
एन डी टी वी न्यूज चैनल ने प्रमुखता से इसे दिखाया है और सेना कमांडर वर्ग पर यह आरोप भी लगाया गया है कि ये लोग परीक्षकों की तैनाती कमांड में होती है जिसके फलस्वरूप कमांडर का दबाब इन परीक्षकों पर रहता है और उनकी नाराजगी परीक्षक के प्रोमोशन को प्रभावित करती है|
खरीद और अधिकार कि रिपोर्ट
. इस ऑडिट रिपोर्ट में 2009-11 की अवधि के बीच हुए करीब 55 लेनदेन का मूल्यांकन किया गया है. उस समय मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह कोलकाता स्थित पूर्वी कमान के कमांडर थे.
रिपोर्ट के मुताबिक,[१] कुछ उपकरण प्रतिबंधित मार्केट से खरीदे गए.[२] इनमें कुछ चीनी संचार उपकरण भी शामिल थे.[३] उत्तरी कमान में दूध खरीद में कुप्रबंधन को भी रेखांकित किया है. [४] पूर्वी कमान द्वारा खरीदी गई दूरबीनों का भी जिक्र है भारतीय बाजार में उपलब्ध दूरबीने कम कीमत की दूरबीनों को विदेशी विक्रेता से खरीदा गया[५] आर्मी हेडक्वॉर्टर ने जिन बुलेटप्रूफ जैकेटों को खराब खराब क्वॉलिटी का बताकर रिजेक्ट कर दिया था उसे नॉर्दर्न कमांड ने खरीद लिया अप्रत्याशित परिस्थितियों में जरूरतों को पूरा करने के लिए सेना प्रमुख को लगभग 125 करोड़ रुपए और उत्तरी तथा पूर्वी कमान के कमांडरों को 50-50 करोड़ रुपए का बजट प्रदान किया जाता है. चार अन्य कमानों को भी 10-10 करोड़ रुपए का बजट दिया जाता है.|
सेना की प्रतिक्रया
आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सेना मुख्यालय का कहना है कि कुछ गलत नहीं हुआ है| चीनी कलपुर्जे वाले संचार उपकरण निर्धारित दरों पर और व्यापक जांच के बाद ही खरीदे गए और ‘कोई भी अवलोकन सच नहीं साबित होगा.’
उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्री ऐ के एंटनी के निर्देश पर रक्षा लेखा नियंत्रक (कंट्रोलर ऑफ़ डिफेन्स एकाउंट्स ) ने 2009-10 और 2010-11 के दौरान आर्मी कमांडरों के स्पेशल फाइनैंशल पावर्स का ऑडिट किया। सीडीए ने इंडियन आर्मी के 7 कमांड्स में से 6 के 55 ट्रांजैक्शंस की जांच की। मीडिया में छापी खबरों के अनुसार ऑडिट रिपोर्ट में कुल 103.11 करोड़ रुपए के नुकसान की बात कही गई है। ऑडिटर्स ने बताया कि किसी भी आर्मी कमांडर ने सारा डेटा नहीं दिया। रक्षा मंत्री ने फिजूलखर्ची को गंभीरता से लिया है और सैन्य अधिकारियों द्वारा खर्च किया जाने वाला धन मंत्रालय से पास कराना जरूरी कर दिया है।
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