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एल के आडवाणी के ब्लॉग से:ऍफ़ डी आई पर डाक्टर मन मोहन सिंह भी पलटे हैं

यूं पी ऐ के सर्वोच्च नेता एल के आडवाणी ने अपने ब्लाग में प्रियारंजन दास मुंशी के बाद प्रधानमंत्री डाक्टर मन मोहन सिंह द्वारा अपनी बात से पलटते हुए ऍफ़ डी आई का समर्थन करने का आरोप लगाया है|
प्रस्तुत है श्री आडवाणी के ब्लाग से उद्धत उनका आरोप :
अपने पिछले ब्लॉग में मैंने स्मरण कराया था कि एनडीए सरकार के समय कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्य सचेतक श्री प्रियरंजन दासमुंशी ने खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सम्बन्धी योजना आयोग की सिफारिश का संदर्भ देते हुए वाजपेयी सरकार द्वारा ऐसा ‘राष्ट्र-विरोधी‘ काम करने की दिशा में बढ़ने की निंदा की थी।
वाणिज्य मंत्री के रूप में श्री अरूण शौरी ने संसद में तुरंत खड़े होकर यह दोहराया था कि सरकार ऐसे किसी भी प्रस्ताव के पक्ष में नहीं है।
पिछले दिनों सूरजकुंड में सम्पन्न भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में आर्थिक प्रस्ताव पर बोलते हुए मेरे सहयोगी श्री वैंकय्या नायडू ने डा0 मनमोहन सिंह द्वारा राज्य सभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से लिखे गये एक पत्र को उदृत किया जिसमें इस तथ्य की पुष्टि की गई थी। फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र ट्रेडर्स ने इस संबंध में अपनी चिन्ता से उनको अवगत कराया था। 21 दिसम्बर, 2002 के अपने पत्र में डा0 मनमोहन सिंह ने कहा कि दो दिन पूर्व ही यह मामला राज्यसभा में उठा था। डा0 मनमोहन सिंह लिखते हैं कि ”वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया कि सरकार के पास खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आमंत्रित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है”।डा0 मनमोहन सिंह को सम्बोधित फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र ट्रेडर्स का पत्र खुदरा में विदेशी निवेश पर और ज्यादा आलोचनात्मक है। फेडरेशन की विदेश व्यापार समिति के चेयरमैन सी.टी. संघवी द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है कि:”श्रीमन् आपको स्मरण होगा कि 2002-03 में देश में खुदरा व्यापार के महत्वपूर्ण विषय के सिलसिले में मुझे फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ महाराष्ट्र के एक प्रतिनिधिमण्डल के साथ राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के रुप में आप से मिलने का अवसर मिला था।
हमारे विस्तृत वर्णन से पहले ही आपने साफ तौर पर कहा था कि ‘हम खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं देने देंगे।‘ आपने आगे उल्लेख किया कि ”भारत को ऐसे किस्म के सुधार की कोई जरुरत नहीं है जो रोजगार पैदा करने के बजाय रोजगार को नष्ट करें।”इसी पत्र में सिंघवी लिखते हैं :
श्रीमन् जैसाकि हमने आपको इन बहुराष्ट्रीय रिटेल श्रृंखला स्टोर संगठनों द्वारा छोटे दुकानदारों (रिटेलों) को प्रतियोगिता में समाप्त करने हेतु (प्रेडटोरी प्राइसिंग) जैसे गलत व्यापारिक हथकण्डे अपनाने के बारे में बताया था। हमारे प्रतिनिधिमण्डल ने आपका ध्यान सूदूर पूर्वी देशों-थाईलैण्ड, मलेशिया, इण्डोनेशिया-जैसे देशों के खुदरा व्यापार पर इस विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के पड़ने वाले विपरीत प्रभाव की ओर दिलाया था जिन्होंने 1990 के दशक के अन्त में इसकी अनुमति दी थी।
बाद में, हमारा प्रतिनिधिमण्डल आपसे अनेक अवसरों पर मिला और इस विषय पर विभिन्न सम्बन्धित अधिकारियों को सौंपे गए हमारे विस्तृत ज्ञापनों को भी आपको सौंपा । कुल मिलाकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से इस विषय की गंभीरता के संदर्भ में आपने 18 और 19 दिसम्बर, 2002 को राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया और तब के वित्त मंत्री से यह आश्वासन भी लिया कि खुदरा व्यापार मेें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने सम्बन्धी कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है। फेडरेशन को सम्बोधित आपका पत्र संदर्भ के लिए संलग्न है।
यह लेख मेल से प्राप्त हुआ है |

एल के आडवाणी के ब्लॉग से:ऍफ़ डी आई पर डाक्टर मन मोहन सिंह भी पलटे हैं

Comments

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