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अडवाणी ने अपने पुराने शिष्य मोदी को स्पोर्ट करने के लिए ब्लॉग के माध्यम से कांग्रेस को इतिहास पढ़ाना शुरू किया

भारतीय जनता पार्टी [भाजपा]के वयोवृद्ध नेता और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने अपने पुराने शिष्य नरेंदर मोदी को स्पोर्ट करने के लिए कांग्रेस को इतिहास के पाठ पढ़ाने शुरू कर दिए हैं इसके लिए ब्लॉग पर इतिहास की लगातार परतें उधेड़ी जा रही हैं|
इसी कड़ी में अडवाणी ने अपने १० नवम्बर के ब्लॉग में एक बार फिर तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्ल्भ भाई पटेल में राष्ट्रीयता को लेकर आई खाई को उजागर किया है |इससे पूर्व नवम्बर के पहले सप्ताह में एक नौकर शाह 1947 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी स्वर्गीय श्री एमकेके नायर द्वारा मलयालम भाषा में लिखी गई पुस्तक पर आधारित अडवाणी के ब्लॉग ने एक विवाद खड़ा किया हुआ है।
इस विवाद पर टिपण्णी करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने आडवणी के ब्लॉग और उसमे दी गई एम् के मेनन की जानकारी पर प्रश्न चिन्ह लगाये थे और बताया था कि मेनन की भर्ती ही आजादी के बाद हुए थी |प्रधान मंत्री डॉ मन मोहन सिंह ने भी मोदी के इतिहास और भूगोल के ज्ञान के माध्यम से भाजपा कि जबरदस्त आलोचना की है | इससे विचलित हुए बगैर अडवाणी ने अपने ब्लॉग में एक नया रहस्योद्घाटन करते हुए बताया है कि 1947 में कबाइलियों और पाकिस्तान द्वारा जम्मू एवं कश्मीर पर हमले के बाद वहां सेना भेजने के मुद्दे पर भी नेहरु को हैदराबाद जैसी ही आपत्ति थी|‘इसके समर्थन में उन्होंने नेट‘पर उपलब्ध प्रेम शंकर झा द्वारा भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ से लिया गया साझात्कार का उदहारण दिया है |इस ब्लॉग में एक विशेष पैरा को हाई लाइट किय गया है जो प्रस्तुत है
“सदैव की भांति नेहरु संयुक्त राष्ट्र, रुस, अफ्रीका, सर्वशक्तिमान परमात्मा सहित सभी के बारे में बात करने लगे जब तक कि सरदार पटेल ने अपना धैर्य नहीं खो दिया। उन्होंने कहा ‘जवाहरलाल क्या तुम कश्मीर चाहते हो या इसे गंवा देना चाहते हो।‘ उन्होंने (नेहरु) कहा ‘निस्संदेह, मुझे कश्मीर चाहिए। तब उन्होंने (पटेल) कहा ‘कृपया अपने आदेश दीजिए।‘ और इससे पहले कि वह कुछ कह पाते सरदार पटेल मेरी तरफ मुड़े और कहा ‘तुम्हें अपने लिए आदेश मिल गए हैं।”‘
अडवाणी ने इसी साक्ष्य के आधार पर नेहरू पर ब्रिटिश तुष्टिकरण निति कि तरफ वभी इशरा किया है ” ब्रिटेन साफ तौर पर नहीं चाहता था कि पूरा जम्मू एवं कश्मीर भारत के साथ जाए। लंदन में यह व्यापक धारणा थी कि यदि भारत के नियंत्रण में पाकिस्तान से लगे क्षेत्र रहे तो पाकिस्तान जिंदा नहीं रह पाएगा।
भारत और पाकिस्तान तथा व्हाईटहाल के ब्रिटिश उच्चायोगों के बीच आदान-प्रदान किए गए अत्यन्त गोपनीय ‘केबल्स‘ सच्ची कहानी कहते हैं। कमाण्डर-इन-चीफ नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग से निर्देश प्राप्त कर रहे थे। नेहरु ने पाकिस्तान में कबाइलियों के अड्डों पर हमला करने का निर्णय लिया परन्तु माऊंटबेंटन इसके विरोध में थे।”