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मोदी की बंगला देश यात्रा से अब भारत को शांतिनोबल प्राइज+यूंएन सिक्योरिटी कौंसिल ,फिजाओं में गूजेंगे

[नई दिल्ली]भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की बंगला देश की दो दिवसीय यात्रा के पश्चात आज से भारत के लिए शांतिनोबल प्राइज और यूंएन सिक्योरिटी कौंसिल विश्व की फिजाओं में अवश्य गूजेंगे|
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी दो दिवसीय बांग्लादेश यात्रा संपन्न करके आज स्वदेश लौट आए। जब तक इस यात्रा का राजनितिक पोस्ट मार्टम शुरू हो तब तक इस यात्रा के दौरान प्राप्त उपलब्धियों के दावों पर सकारात्मक नजर डाली जा सकती हैं
विपक्ष के तमाम तानों के बावजूद शुरू की गई इस दो दिवसीय यात्रा के दौरान ऐतिहासिक भू सीमा समझौते की पुष्टि के अतिरिक्त आपसी सहयोग को मजबूती प्रदान करने के लिए दोनों देशों ने 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किएहै ।विस्तारवाद को दरकिनार रख कर शांति के साथ विकासवाद के मार्ग का अनुसरण करने के लिए ऐतिहासिक लैंड बॉउंड्री एग्रीमेंट को अमली जामा पहना कर विश्व में शांति प्रयासों की शृंखला में एक बढ़ा नाम लिख दिया गया है |क्योंकि इस एक कदम से शांति+विकास के साथ दिलों को जोड़ा गया है और दोनों देशों के लगभग ५१ हजार लोगों के मानवीय अधिकारों की रक्षा हुई है |
इस प्रयास की तुलना बर्लिन की दीवार ढहने के साथ की जा रही है|यह अपने आप में नोबल शांति पुरूस्कार के लिए पर्याप्त है |चीन और पाकिस्तान भारत की जमीन के लिए बॉर्डर पर आये दिन संकट पैदा करते रहते हैं लेकिन भारत ने शांति के लिए विकास वाद का मार्ग चुना है |
ऐसी ही कोई घटना दुनिया के किसी और भू-भाग में होती तो विश्व में बड़ी चर्चा हो जाती, नोबेल प्राइज देने के लिए रास्ते खोले जाते लेकिन भारत बांग्ला देश जैसे गरीब देशों को इसके लायक नहीं समझा जाता नरेंद्र मोदी के अपने शब्दों में “हमें कोई नहीं पूछेगा क्योंकि हम गरीब देश के लोग हैं लेकिन गरीब होने के बाद भी अगर हम मिलके चलेंगे, साथ-साथ चलेंगे, अपने सपनों को संजोने के लिए कोशिश करते रहेंगे, दुनिया हमें स्वीकार करे या न करे, दुनिया को ये बात को मानना पड़ेगा कि यही लोग हैं जो अपने बल-बूते पर दुनिया में अपना रास्ता खोजते हैं, रास्ता बनाते हैं, रास्ते पर चल पड़ते हैं।”नोबल शांति पुरूस्कार के लिए केवल एक यही प्रयास का उल्लेख पर्याप्त नहीं है इसे पूर्व भी भारत ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों में कभी अपने लिए युद्ध नहीं किया हमेशा यूं एन की पीस कीपिंग फ़ोर्स में सक्रीय भूमिका निभाई पहले महायुद्ध में भारत के १३ लाख सैनिक शामिल हुए और ७० हजार लोगों ने क़ुरबानी दी |दूसरे विश्व युद्ध में भी १५ लाख भारतियों ने शांति प्रयासों में सक्रीय भूमिका निभाई |यही नहीं बांग्ला देश की स्वतंत्रता के लिए १९७१ में आक्रमण कारी पाकिस्तान के पकडे गए ९० हजार सैनिकों को भी बिना शर्त वापिस किया गया इस सब के बावजूद क्या भारत को शांति नोबल प्राइज के लिए कंसीडर किया जाएगा ?क्या भारत को अंतराष्ट्रीय सिक्योरिटी कौंसिल में स्थाई सदस्यता के विषय में यूं एन की में सोच में कोई बदलाव आएगा ऐसे अनेकों यक्ष प्रश्न आज से विश्व की फिजाओं में अवश्य गूजेंगे
फोटो कैप्शन
The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressing at the Bangabandhu International Convention Centre, in Dhaka, Bangladesh on June 07, 2015.