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करवा चौथ के चुम्बक से सुहागनों ने अपने वैवाहिक जीवन को सात जन्मो के लिए सुदढ़ किया

प्रेम+श्रद्धा,+ विश्वास और त्याग का पावपावन पर्व

करवा चौथ के चुम्बक से सुहागनों ने अपने वैवाहिक जीवन को सात जन्मो के लिए सुदढ़ किया

का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया गया |सुबह चार बजे सरगी का प्रसाद ग्रहण करके पूरे दिन भूखी-प्यासी रहकर पत्नियों ने सोलह श्रंगार धारण किये और अपने पति की लंबी उम्र की कामना की
और शाम को विधि विधान से पूजा के चुम्बक से अपने वैवाहिक जीवन को सात जन्मो के लिए सुदढ़ किया| सुहागिनों ने धन धान्य की प्रतीक थालिया घुमा घुमा कर पूजी और रात चन्द्रमा के दर्शन करके जल ग्रहण किया जाता है|
लोक कथाओं के अनुसार शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था,परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी।
उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन तपस्या से वीरवती को माँ पार्वती का आशीर्वाद मिला और उसका सुहाग पुनः प्राप्त हो गया। इसके अतिरिक्त एक और लोक कथा है जिसमे यही वीरवती भाइयों के प्रेम के कारण ही रानी से नौकरानी बनती है और फिर इसी व्रत की महिमा से माँ पार्वती को प्रसन्न करती है और गाती है रोली की गोली हो गई गोली की रोली हो गई”अपने गौरव को प्राप्त करती है|
|इस व्रत का नियम इस काव्य में वर्णित है
वीरो कुड़िये कर्वरा सर्व सुहागन कर्वरा
कत्ती न अटेरी न
घूम चरखा फेरी ना
गवांड फेर पाईं ना
सुई च धागा पाईं ना
रुठरा मनाईं ना
सुतडा जगाईं ना
भैन प्यारी वीराँ
चन चड ते पानी पीवां
वे वीरो कुरिए कर्वरा वे सर्व सुहागन कर्वरा