Ad

कान्हा तुम्हारी राह निहारते नयन दुखने लगे

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा,
तन मन धन सब भेंट धरुँगी, भजन करूंगी तुम्हारा,
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें ओगुण सारा,
में निगुनी कछु गुण नहीं जानू, तुम हो बक्शणहारा
मीरा कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैन दुखारा.

संत मीराबाई जी प्रभु को विरह वेदना प्रकट करते हुए कहती हैं कि आप मेरे
घट मंदिर में विराजो. मैं अपना तन, मन, धन सबकुछ आपको भेंट करुँगी और
आपका गुणगान करुँगी. आप सर्वगुण संपन्न हैं मैं अवगुणों का भंडार हूँ. मुझमें कोई
गुण नहीं है. मैं पापी हूँ और आप बक्शणहारे हो.
आगे मीरा बाई जी कहती हैं हे प्रभु ! आप की राह निहारते-निहारते मेरे नयन दुखने लगे
हैं आप मेरे ह्रदय में कब पधारोगे?
मीरा वाणी