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गुरुभक्त के सामने तो काल भी सिर झुकाता है

लगा रहे सतज्ञान सों, सबही बंधन तोड़ ।
कहैं कबीर व दास सौं, काल रहै हथजोड़ ।
भावार्थ: कबीर साहिब शिष्य की महिमा बताते हुए कहते हैं, जिसने विषयों से अपने मन को हटा लिया है, जो सांसारिक बंधनों से रहित है और सत्य-स्वरूप में जिसकी दृढ़ निष्ठा है, ऐसे गुरुभक्त के सामने तो काल भी सिर झुकाए खड़ा रहता है। अर्थात- मन की लम्बी दौड़ और काम-वासना ही मनुष्य का काल है। एक सच्चे गुरु-भक्त के सामने कामवासनाएं या कल्पनाएँ ठहरती ही नहीं हैं ।
वाणी: कबीर दास जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना