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गुरु प्रीतम मेरे साथ है कष्टों में , वह स्वयम मुझे छुड़ा लेता है

गुरु प्यारे मेरे नाल है , जित्थे किथे मैनूं लए छुड़ाई ।
अर्थात गुरु प्रीतम मेरे साथ है , जहाँ कहीं भीड़ पड़ती है , वह मुझे छुड़ा लेता है ।
गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत गाढ़ा है जिसकी मिसाल नहीं दी जा सकती , फिर भी महात्माओं ने समझाने का यत्न किया है । माता और बच्चे के प्रेम के उदाहरण से इस रिश्ते को समझने में मदद मिल सकती है । बच्चे को जन्म देकर माता उसकी कितनी संभाल करती है ,बच्चा दुखी हो तो माता को चैन नहीं , उसका दुःख दूर करना का यत्न करती है । सारी – सारी रात जागती है , बच्चा खुश हो तो माता का ह्रदय खिल उठता है । बच्चा मल-मूत्र में सन जाता है , माता को घिन नहीं आती , उसको साफ़ करके ह्रदय से लगा लेती है । बच्चे के लालन-पालन के साथ -साथ वह उसके बौद्धिक विकास में सहायता देती है , बुरे भले का ज्ञान उसे देती है । इसी प्रकार शिष्य जब सतगुरु के घर जन्म लेता है अर्थात दीक्षा या नाम लेता है तो वह परमार्थ में अबोध होता है , गुरु मन और इन्द्रियों को स्थिर करने का साधन शिष्य को देता है अपनी दया – मिहर की दृष्टि से अंतर्मुख नाद या ध्वनि का परिचय और अनुभव उसे देता है । गुरु को हर वक्त शिष्य की भलाई का ध्यान रहता है , वह यत्न करता है कि शिष्य विकार रहित हो , उसके सारे अवगुण धुल जाएं ।
ज्यों जननी सुत जन पालती रखती नदर मंझार ।
त्यों सतगुरु सिख को रखता हरि प्रीत प्यार ।
गुरुवाणी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना