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जयपुर की बेटी ने पिता की पगड़ी धारण की

आज कल बेटियां भी यह साबित कर रहीं है कि वोह बेटों से किसी भी सूरत में कम नहीं हैं|
सांस्कृतिक रस्म है कि पिता के अवसान के बाद बड़ा बेटा ही परिवार का दाईत्व संभालता है बड़ों की पगड़ी धारण करता है मगर जयपुर की ज्योति माथुर ने पिता के निधन के बाद पगड़ी की रस्म ऐसे सम्पन्न की जैसे कोई बेटा करता है.|ज्योति ने पिता की पगड़ी अपने सिर बाँध बदलाव की नई इबारत लिखी है|ज्योति कहती हैं वो चाहती है बेटियों को बराबरी का हक़ मिले.
बी बी सी हिंदी के अनुसार नाते रिश्तेदारों की भीड़ जमा हुई और जब पगड़ी की रस्म का अवसर आया, ज्योति ने प्रचलित रस्म का प्रतिकार किया और परिवर्तन की प्रतिमा बन कर खड़ी हो गई. पुरोहित ने मंत्रोचारण किया और ज्योति के माथे पिता की पगड़ी बंधी तो उसके चेहरा बदलाव की रोशनी से दमक उठा.
पगड़ी को इंसान के रुतबे और इज्जत का प्रतीक माना जाता है, पर जब भी पगड़ी सम्मान के लिए आगे बढ़ी, उसने दस्तार के लिए बेटो के माथे का ही वरण किया.
मगर अब समय बदला है. इसीलिए ज्योति ने दस्तारबंदी[पगड़ी] की तो रस्मो रिवाज खुद ब खुद झुक गए|
इससे पूर्व पिता कि चिता को पुत्री द्वारा मुखाग्नि देने के कुछ समाचार छापे गए हैं मगर पुत्री कि दस्तार बंदी का शायद यह पहला केस है|