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प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी

जो रूह बन के समा जाए हर रगों -पै में ।
तो फिर न शहद में लज्ज़त न सागरे – मैं में ।
वही है साज के पर्दे में , लेहन में , लै में ।
उसी की ज़ात की परछाइयाँ हर इक शै में ।
न मौज है न सितारों की आब है कोई ।

प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी


तजल्लियों के उधर आफ़ताब है कोई ।
संत दर्शन सिंह जी महाराज
भाव: संत दर्शन सिंह जी महाराज फरमाते हैं जब हमारी रूह सिमटती है और प्रभु के शब्द के साथ जुडती है
तो उसमे इतनी मिठास आ जाती है जितनी न तो शहद में है , न मैं के पैमानों में है , वह तो सुरीले संगीत
में मस्त हो जाती है । बाहर के संगीत से उसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता । जैसे लहरें समुद्र का हिस्सा
होती हैं , वैसे ही अंतर्मुख होने पर हम उस शब्द का हिस्सा बन जाते हैं , प्रभु में लीन हो जाते हैं । वह मस्ती
न इन सितारों में है , न आसमान में है , न सूर्य में है , न चंद्रमा में है । इस मंडल के पार जो दुनिया है उसका
अपना सूर्य है , उनका इशारा प्रभु की ओर है । प्रभु की रोशनी से ही चारों ओर उजाला है । उस सूर्य की हमें
किरणें बनना है । जब हमारी अंदरूनी आँख इस सूर्य को देखेगी तो हमारी ज़िंदगी का ध्येय पूरा हो जायेगा ।
सावन कृपाल रूहानी सत्संग के संत दर्शन सिंह जी महाराज की रूहानी शायरी
प्रस्तुति राकेश खुराना