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प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो

प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो ।
सम दरसी है नाम तिहारो, अब मोहिं पार करो ।

प्रभु जी मेरे औगुण चित न धरो


भाव : संत सूरदास जी कहते हैं , हे प्रभु ! मैं बड़ा गुनाहगार हूँ , गुनाहों से बचना मेरे बस की बात नहीं है , मुझे सिर्फ आपकी बख्शिश का ही सहारा है । आप मुझ पर दया करके मेरे गुनाहों को नज़र अंदाज कर दीजिए । आप सबको एक नजर से अथवा एक आत्मा के स्तर से देखते हैं । जो भी आपको पुकारता है आप उसकी मदद करते हैं मैं भी आपको दिल से पुकार रहा हूँ , आप मुझे हमेशा के लिए मुक्त कर दीजिए। मुझे मोह -माया से बचाइये और अपने चरणों में जगह दीजिए।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना