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भक्ति मार्ग के पथिक को प्रेम एवं श्रद्धा अनिवार्य है.

द्वेष , कलह विवाद जहाँ, वहां न भक्ति उमंग
यथा ही मिलकर ना रहे, अग्नि गंग के संग.
भक्ति प्रकाश ग्रन्थ के रचयिता संत शिरोमणि श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज
जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं कि जहाँ ईर्ष्या, क्लेश, तर्क वितर्क हैं वहां
भक्ति का आगमन नहीं हो सकता जैसे अग्नि एवं पानी मिलकर नहीं रह सकते .
अर्थात भक्ति मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेम एवं श्रधा का होना अनिवार्य है.

स्वामी सत्यानन्द जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ का एक अंश
श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली, मेरठ