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संत भी सामर्थ्यवान हैं परमात्मा ने उसे समर्थता दी है=नीरज मणि ऋषि

इस जगत में दो ही साधनवान और सामर्थ्यवान हैं – एक तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर और दूसरा संत , जिसे परमात्मा ने समर्थता दी है . अपनी स्वार्थी बुद्धि के कारण हम मनुष्य अपने जीवन की डोर जगत के हाथ में दे देते हैं . जगत डूबता है, डुबाता है और संत तरता है, तारता है . जब हम संत की शरण में जाते हैं , संत हमें नाम की नौका में बिठाकर भवसागर से पार कर देता है . वह इस लोक को भी सुधरता है और परलोक को भी सफल बनाता है . आध्यात्मिक मार्ग समर्पण का मार्ग है . समर्पण ह्रदय से होता है , मन से होता है . समर्पण में प्रीति है , त्याग है .
मीराबाई ने अपने आपको कृष्ण भगवान को समर्पित किया , उनसे प्यार किया, महलों के सुख – चैन का त्याग किया, मीरा के जीवन में कितनी भी बाधाएं आयीं, जगत वैरी बन गया परन्तु उसने कृष्ण भगवान से प्रीति तथा उनकी आराधना नहीं छोड़ी. अंततः परमात्मा ने उसे अपनी शरण में ले लिया .
कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्री शक्ति धाम मंदिर , लाल कुर्ती , मेरठ में भगत श्री नीरज मणि ऋषि जी द्वारा दिए गए प्रवचन का एक अंश