असतो मा सद्गमय: ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय: ।
मृत्योर्मामृतं गमय: ।
भाव: जैसे – जैसे साधक अंतर का अनुभव पाने लगता है , तो सारे सांसारिक सुख उसे तुच्छ प्रतीत होने लगते हैं । अटल सत्य के थोड़े से अनुभव में ये सब सांसारिक सुख चलायमान और नाशवान प्रतीत होने लगते हैं इसलिए वह सांसारिक सुखों को मांगना व्यर्थ समझता है।
बृहदारंयक उपनिषद
प्रस्तुति राकेश खुराना