Ad

संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने निराशा पर विजय पाने के लिए ध्यानाभ्यास कामार्ग दिखाया

[नई दिल्ली]संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने निराशा पर विजय और संतोष पाने के लिए ध्यानाभ्यास का उपदेश दिया |महाराज संत कृपाल रूहानी मिशन के प्रभारी संत हैं |
संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने कहा के “हम सोचते हैं कि बाक़ी सब लोग ख़ुश हैं और केवल हमको ही मुसीबतों और परेशानियों ने घेरा हुआ है। हम अपने भाग्य को कोसते रहते हैं, और यह सोच-सोचकर निराशा के गर्त में गिर जाते हैं कि हम तो दुखों के सागर में डूबे हुए हैं जबकि बाक़ी सभी ख़ुशियों से भरपूर जीवन बिता रहे हैं। जो बात हम समझ नहीं पाते, वो यह है कि हरेक व्यक्ति को किसी न किसी समस्या ने जकड़ा हुआ है।हमें लगता है कि दूसरों के पास हमसे ज़्यादा ह+हमें लगता है कि दूसरों की नौकरियाँ बेहतर हैं+दूसरों का स्वास्थ्य हमसे बेहतर है+ दूसरों के रिश्ते हमसे बेहतर हैं+ हम दूसरों की ओर देखने में ही समय नष्ट कर देते हैं और सोचते रहते हैं कि काश हमारे पास भी वो सबकुछ होता जो उनके पास है।
बहुत कम लोगों का यह एहसास होता है कि सभी के जीवन में भी कोई न कोई परेशानी अवश्य होती है। यदि हम दूसरों के जीवन को क़रीब से देखें, तो हमें पता चलेगा कि वे तो शायद हमसे भी अधिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। अगर हम उनसे कहें कि आइए हम अपनी समस्याएँ आपस में अदल-बदल कर लें, तो हम पाएँगे कि अधिकतर लोग अपनी ख़ुद की समस्याओं से ही निपटना चाहेंगे।
यह सोचने के बजाय कि दूसरे कितने सुखी हैं, हमें उन देनों की ओर ध्यान देना चाहिए जो हमें अपने जीवन में मिली हैं। जिस प्रकार हम प्रभु से शिकायतें करने में इतना सारा समय लगा देते हैं, उसी प्रकार हमें प्रभु के उपहारों को याद करने और उनका शुक्राना करने में भी समय बिताना चाहिए। हमें उन सारे दिनों को याद करना चाहिए जब हमारा स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक रहा। हमें उन सभी दिनों को याद करना चाहिए जब हमारे पास पर्याप्त धन रहा कि हम अपने सिरों पर छत, पेट में भोजन, और शरीर पर वस्त्र रख सके। हमें अपने परिवार के सदस्यों और प्रियजनों को मिली देनों को भी याद करना चाहिए। हमें प्रभु द्वारा मिले आध्यात्मिक उपहारों को भी याद करना चाहिए। यदि हम किसी ऐसे पूर्ण सत्गुरु की शरण में पहुँच चुके हैं जिन्होंने हमें ध्यानाभ्यास की विधि सिखाकर अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जोड़ दिया है, तो हमें प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए। यदि हमें किसी पूर्ण संत की संगति में समय बिताने का और उनसे आध्यात्मिक जागृति प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है, तो इसके लिए हमें प्रभु का शुक्राना करना चाहिए।
हममें से हरेक के जीवन में अच्छी चीज़ें भी होती हैं और परेशानियाँ भी। इस सच्चाई से तो कोई भी बच नहीं सकता। इसीलिए हमें यह नहीं लगना चाहिए कि दूसरों का जीवन हमसे अधिक आसान या बेहतर है। हरेक व्यक्ति को अपने हिस्से की मुसीबतें और कष्ट सहने ही पड़ते हैं।
संतोष का विकास करने का एक तरीक़ा है ध्यानाभ्यास में समय बिताना ताकि हम आंतरिक आनंद का अनुभव कर सकें। हमें अपने जीवन में होने वाली अच्छी चीज़ों की ओर ही ध्यान देना चाहिए और उनके लिए प्रभु का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमें परेशानियों को जीवन का एक हिस्सा ही मानना चाहिए, और यह भी समझना चाहिए कि दूसरे भी किसी न किसी परेशानी से अवश्य गुज़र रहे होते हैं। यदि हम ऐसा कर सकें, तो हम देखेंगे कि हम दुख, निराशा, और अवसाद की भावनाओं से आसानी से बाहर आ सकेंगे तथा जीवन के प्रति संतुष्टिदायक रवैया रख पाएँगे, और इस तरह हमेशा ख़ुश रहने के रहस्य को जान जाएँगे।