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शांत मन से ध्यानाभ्यास पर बैठ कर सभी संबंध भी शांतिपूर्ण हो जाते हैं:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी SOSऔर सावन कृपाल रूहानी मिशनSKRM के वर्तमान संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अध्यात्म और विज्ञान के संबंधों के प्रति जिज्ञासा से सम्बंधित प्रश्नो का उत्तर दिया|
[१]प्रश्न:
आप ध्यानाभ्यास की विधि सिखाते हैं और आपकी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है? अध्यात्म और विज्ञान के बीच भला क्या संबंध है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
हम आज एक अति वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। आज का समय ऐसा नहीं है जबकि लोग अंधविश्वास में पड़कर बस चीज़ों को मान लें। आज के समय में हम उसी चीज़ में विश्वास करते हैं जिसे हम स्वयं अनुभव कर सकते हों। हमारी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है क्योंकि हम मानते हैं कि अध्यात्म भी एक तरह का विज्ञान ही है। इसमें भी हम स्वयं अनुभव किए बिना किसी चीज़ को यूँ ही नहीं मान लेते।
[२]प्रश्न:
विज्ञान का तरीका तो है प्रयोग करना, क्या अध्यात्म का तरीका भी प्रयोग करना ही है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
अध्यात्म का तरीका, या जिस तरीके द्वारा हम अपने सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं, वो एक प्रयोग ही है। इस प्रयोग में हम शारीरिक चेतनता से ऊपर उठते हैं। इस प्रयोग को बार-बार दोहराया जा सकता है, और सही व नियमित ढंग से करने पर इस प्रयोग के नतीजे भी हमेशा ज्ञात और प्रमाणित होते हैं। विज्ञान में भी यही होता है। हम एक प्रयोग करते हैं, और हमें अपेक्षित नतीजे हासिल होते हैं। अध्यात्म को भी प्रयोग के द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
[३]प्रश्न:
यह प्रमाणित किया जा सकता है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
यह बिल्कुल प्रमाणित किया जा सकता है। हम मानव शरीर को एक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ते हैं, तो हम एक प्रयोगशाला में जाते हैं और प्रयोग करते हैं। हो सकता है कि हम एक ट्यूब में कोई ऐसिड डालें और रंगीन धुँआ बाहर निकले। हमारे शिक्षक हमें पहले ही बता देते हैं कि सही ढंग से प्रयोग करने पर किस तरह का और कौन से रंग का धुँआ निकलेगा। इसी तरह, जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हम अपने अंतर में जा पाते हैं। हम अपने भीतर दिव्य प्रकाश देख पाते हैं और दिव्य श्रुति को सुन पाते हैं। तो यह मानव शरीर भी एक प्रयोगशाला है जिसमें हम अपने सच्चे स्वरूप को, अपनी आत्मा को जानने के लिए प्रयोग करते हैं।
जब हम संतुष्ट होते हैं, तो हम जीवन में जो कुछ वास्तव में महत्त्वपूर्ण है, उस पर ध्यान दे पाते हैं। हम एक शांत मन के साथ ध्यानाभ्यास पर बैठ पाते हैं। अपने परिवारजनों और मित्रों के साथ हमारे संबंध शांतिपूर्ण हो जाते हैं। हम लगातार अपनी इच्छाओं को पूरा करने की भागदौड़ में नहीं लगे रहते। ऐसा करने से हम जीवन के कई तनावों से बच सकते हैं।