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Tag: अमृत वाणी

राम नाम के जाप से सद्गुणों की वृद्धि होती है और अज्ञानता समाप्त होजाती है

राम नाम जप-पाठ से ,
हो अमृत संचार।
राम-धाम में प्रीती हो ,
सुगुण – गुण का विस्तार ।।

Amrit Vani

भावार्थ : संतजन समझाते हैं कि परमात्मा के पावन नाम राम नाम का जाप बड़ी श्रधा, भावना , प्रेम से कीजिये तो उससे आप में अमृत , प्रेम तथा सुभाव नाओं का संचार होता हैं तथा धीरे धीरे उस प्रभु के पावन धाम , उसके निवास स्थान से प्रीति हो जाती है । हमारे अन्दर सद्गुणों के समूह की वृद्धि होती है । जब सद्गुण रुपी सूर्य हमारे अन्दर अवतरित होता हैं तो अवगुण तथा अज्ञान रुपी अँधेरा समाप्त हो जाता है ।
संत शिरोमणि स्वामी सत्यानन्द जी द्वारा रचित अमृतवाणी बगिया का एक पुष्प
प्रस्तुती राकेश खुराना

राम – नाम की धुन मात्र से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं

राम – नाम जो जन मन लावे ,
उस में शुभ सभी बस जावें ।
जहाँ हो राम – नाम धुन नाद ,
भागें वहाँ से विषम – विषाद ।

राम – नाम की धुन मात्र से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं ।

भाव : जो व्यक्ति अपने मन में राम – नाम को आसीन कर लेता है ,उसमें सभी प्रकार की धन्यता का वास हो जाता है । उसे सौभाग्य , सुख , समृद्धि अर्थात सब प्रकार के आशीर्वाद प्राप्त हो जाते हैं । जहाँ राम – नाम की धुन गूंजती है , वहां से दुःख , पीड़ा देने वाले शोक – संकट भाग जाते हैं ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

नाम का जाप करो और उसके अर्थ की भावना में लीन हो जाओ -यह मन्त्र – योग की विधि है

यथा वृक्ष भी बीज से , जल – रज ऋतु – संयोग ।
पा कर, विकसे क्रम से , त्यों मन्त्र से योग ।

श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुती राकेश खुराना

भाव : जिस प्रकार बीज- जल , मिट्टी और अनुकूल मौसम के सहयोग (मेल ) से धीरे – धीरे वृक्ष बन जाता है , उसी प्रकार मन्त्र – जाप से निरंतर आध्यात्मिक प्रगति होती रहती है।
मन्त्र योग : ऐसी पद्धति , जो मन्त्र की साधना से भगवद मिलन करा दे ।
धारणा , ध्यान और समाधि तीनों का मन्त्र से योग मन्त्र – योग कहलाता है । नाम का जाप करो और उसके अर्थ की भावना में लीन हो जाओ -यह मन्त्र – योग की विधि है ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुती राकेश खुराना

सारे संसार के पालनहार के पावन चरणों में नमस्कार स्वीकार हो

करता हूँ मैं वंदना , नत शिर बारम्बार ।
तुझे देव परमात्मन , मंगल शिव शुभकार ।
अंजलि पर मस्तक किये , विनय भक्ति के साथ ।
नमस्कार मेरा तुझे , होवे जग के नाथ ।

Amrit vani

भावार्थ : भक्तजन परमात्मा के दरबार में जाकर कहते हैं , हे मंगलमय , कल्याणकारी तथा सदा हमारा शुभ करने वाले परमात्मा आपको हम सिर झुकाकर बार – बार प्रणाम करते हैं ।हमें ऐसा वरदान दो कि आपके चरणों की वंदना , स्तुति में हम सदा लगे रहें जिससे हमारा मंगल हो और हमें सौभाग्य एवं शांति मिले । दोनों जुड़े हुए हाथों के साथ माथा झुकाकर ,दोनों घुटनों को टेककर नम्रता , प्रेम एवं भक्तिपूर्वक भाव से , हे सारे विश्व के स्वामी , सारे संसार के पालनहार , रक्षक “राम” आपके पावन चरणों में हमारा नमस्कार स्वीकार हो ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

ईश्वर को सभी प्राणियों का ध्यान , चिंता रहती है । वो ही सबका पालनहार है: Amrit Vani

माँगूं मैं राम – कृपा दिन रात,
राम – कृपा हरे सब उत्पात ।
राम -कृपा लेवे अन्त सम्भाल ,
राम -प्रभु है जन प्रतिपाल ।
भावार्थ : जिज्ञासु परमात्मा से प्रार्थना करता है कि मैं आपका बालक आपकी शरण में हूँ । मैं आपकी कृपा हर समय चाहता हूँ क्योंकि राम – कृपा से ही मन की उथल – पुथल एवं चंचलता शांत होती है । जब मन की चंचलता शांत होती है , तब ही परमात्मा के नाम में चित्त लगता है और नाम जपने से ही व्यक्ति राम कृपा का पात्र बनता है ।बाकी सारा धन और पूंजियाँ तो इही लोक की हैं और सांसारिक धन अंत समय में हमारे साथ नहीं जाता , केवल राम नाम का धन ही एक ऐसी पूंजी है जो अंत समय में हमारी रक्षा करती है और हमारे साथ जाती है । ईश्वर को सभी प्राणियों का ध्यान , चिंता रहती है । वो ही सबका पालनहार है ।
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृत वाणी का एक अंश
प्रस्तुति राकेश खुराना

श्री शक्ति धाम मंदिर में अमृत वाणी के पाठ से नव वर्ष का स्वागत हुआ

गुरु चरण कमल चित्त जोड़िए

श्री शक्तिधाम मंदिर लाल कुर्ती मेरठ में

jai mata dii file photo

स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित अमृत वाणी के पावन पाठ से हुआ। पूज्य श्री नीरज मणि ऋषि जी ने इस अवसर पर अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा सर्वप्रथम मनुष्य जीवन भाग्य से मिलता है , मनुष्य जीवन मिल भी गया तो संतों की शरण मुश्किल से मिलती है , संतों की शरण मिल जाती है तो महापुरषों से पतित पावन परमेश्वर का मंगलमय नाम मुश्किल से मिलता है, फिर गुरु कृपा एवम परमेश्वर की कृपा से अंतःकरण में परमात्मा का नाम जपने का भाव मुश्किल से पैदा होता है ।
बिना संत कृपा के नाम भी नही जपा जाता। नाम को केवल लेने से कल्याण नही, नाम को जपने से कल्याण है।
चाहे जीवन भर हम ज्ञान की चर्चा करते रहें पर हमारे जीवन में अगर प्रभु के नाम का ध्यान और सिमरन नही है तो हमें पता ही नही चलता के नाम क्या है? जब हम नाम को जपते हैं तो परमात्मा हमारे अतःकरण में ऐसे प्रकट होता है जैसे मेहंदी को रगड़ने से लालिमा प्रकट होती है।
जिस कन्दरा के अन्दर शेर रहता है वहां गीदड़ नही आते, इसी प्रकार जिसके अन्तःकरण में परमात्मा का नाम होता है, वहां से पाप रूपी गीदड़ भाग जाते हैं।
आज हम सब नव वर्ष की पावन बेला पर भगवान् को याद इसलिए कर रहे हैं ताकि हमारा नव वर्ष मंगलमय हो, कल्याणकारी हो और हमारे जीवन की आन्तरिक और बाहरी विघ्न बाधाएं दूर हों, हमारे मन में ईश्वर की जय-जय कार हो। अंत में पूज्य श्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने सभी उपस्थित भक्तजनों को नव वर्ष के मंगलमय होने का आशीर्वाद देते हुए सत्संग का समापन किया।
प्रस्तुती राकेश खुराना