Ad

Tag: एल के अडवाणी के ब्लाग से

इस्लाम और हिंदुत्व एक दूसरे को सहयोग करने के लिए जरूर प्रयास करेंगे :एल के अडवाणी

भाजपा के वयोवृद्ध नेता और ब्लॉगर लाल कृषण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में चुनावों से ठीक पहले आर एस एस[RSS] की उदार साम्प्रदायिक सामंजस्यवादी छवि का उल्लेख किया है इसके लिए ब्लॉगर ने प्रसिद्द सरदार खुशवंत सिंह[Khushwant Singh] के ९९वे जन्म दिन पर उनके ही द्वारा लिया गया ४ दशक पूर्व एक साक्षात्कार [interview]का उल्लेख किया है | खुशवंत सिंह ने तत्कालीन आर एस एस चीफ एम् एस गोलवाकर[श्री गुरु जी] से यह साक्षात्कार लिया था |
अपने ब्लॉग के टेलपीस[TAIL PIECE]में ब्लॉगर अडवाणी ने बताया कि नवम्बर १९७२ के इलस्ट्रेटेड वीकली[ Illustrated Weekly] में छपे इस साक्षात्कार में वरिष्ठ एडिटर पत्रकार खुशवंत सिंह ने शुरुआत में ही लिखा था कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके विषय में जाने बगैर ही उनसे घ्रणा की जाती है उनमे सर्वप्रथम एम् एस गोलवाकर हैं |मुस्लिम MuslimIssues के प्रति विचार पूछे जाने पर आर एस एस चीफ गोलवाकर ने कहा बिना किसी शक के यह कह सकता हूँ कि मुस्लिम समाज भारत और पाकिस्तान के प्रति बंटी मुस्लिम सामज की निष्ठा[ Loyalty]
के लिए इतिहास उत्तरदाई है “I have not the slightest doubt that historical factors alone are responsible for the Divided Loyalty that Muslims have towards India and Pakistan. Moreover both Muslims and Hindus are equally to blame for this:और इसके लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों सामान रूप से जिम्मेदार हैं कुछ लोगों कि गलतियों के लिए पूरे समाज को दोषी मान लेनाउचित नहीं होगा|हमें मुस्लिम समाज के दिल को प्यार से जीतना होगाऔर मुझे आशाऔर विश्वास है कि इस्लाम और हिंदुत्व एक दूसरे को सहयोग करने के लिए जरूर प्रयास करेंगे

सिर्फ भगवान ही हमारी अर्थव्यवस्था की सहायता कर सकता है; सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण आडवाणी ने अपने नए ब्लॉग में भारत की बिगड़ी अर्थव्यवस्था पर नेताओं की अकर्मण्यता पर निशाना साधा और अर्थ व्यवस्था को बहग्वान के भरोसे बताया | ब्लागर अडवाणी ने स्तम्भकार तवलीन सिंह के लेख (आइए, सोनिया के बारे में बात करें) का हवाला दिया और यूं पी ऐ की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी को असली प्रधान मंत्री बताते हुए समृध्द भारत के सपने के धवस्तीकरण के लिए श्रीमती गाँधी को जिम्मेदार ठहराया|
”निराशा के इतने घने बादल छाए हुए हैं इन दिनों दिल्ली के राजनीतिक आकाश में कि याद करना मुश्किल है कि सोनिया गांधी की सरकार जब बनी थी एक दशक पहले तो मौसम बहारों का था….
उस समृध्द भारत के सपने को सोनिया गांधी की आर्थिक नीतियों ने खत्म कर दिया है, प्रधानमंत्री को दोष देना बेकार है क्योंकि पिछले दशक से इस देश का असली प्रधानमंत्री कौन रहा है, हम सब जानते हैं।”इसी समाचारपत्र के उसी पृष्ठ पर एक और अन्य स्तम्भकार मेघनाद देसाई की टिपण्णी का उल्लेख किया जिसमे कहा गया है के” गरीबी और भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र के दो स्तम्भ हैं। ये पवित्र हैं। यदि इन्हें धन्यवाद दिया जाए तो अर्थव्यवस्था ठप्प होती है, कठिन भविष्य कठिनाइयों है।
प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लॉग से :
संसद और मीडिया में पिछले एक महीने से देश के सम्मुख मौजूद गंभीर आर्थिक संकट की चर्चा मुख्य रुप से हो रही है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत भयावह गति से नीचे जा रही है! इन दिनों टिप्पणीकार बार-बार सन् 1991 के उस संकट की तुलना वर्तमान स्थिति से कर रहे हैं जब पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार को अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत को 67 टन सोना गिरवी रख 2.2 बिलियन डॉलर का आपात कर्जा लेने को बाध्य होना पड़ा था।
दो दिन पूर्व दि इक्नॉमोक्सि टाइम्स (31 अगस्त) ने प्रकाशित किया है: ”सभी प्रयासों के बावजूद रुपए की गिरावट को रोकने में असफल रहने के बाद, अब नीतिनिर्माताओं ने मंदिरों के द्वार खटखटाने की योजना बनाई है।
आंध्र का तिरुपति मंदिर, महाराष्ट्र में शिरडी मंदिर, मुंबई में सिध्दिविनायक और केरल में पद्मानाभास्वामी मंदिर, देश के उन सर्वाधिक अमीर मंदिरों में से हैंजिनके पास सोने का अकूत भण्डार है, से केंद्रीय रिजर्व बैंक उनसे उनके सोने को नकद में परिवर्तित करने को कहेंगे।
arun-jaitleysushma-swarajदोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं सहित संसद में भाजपा के दस नेताओं और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष 30 अगस्त को राष्ट्रपति से मिले और उन्हें, वर्तमान आर्थिक संकट के बारे में एक ज्ञापन सौंपा जिसमें हमने कहा है:
”सदैव की भांति भारत सरकार सच्चाई से मुंह मोड़ रही है। इतने भर से वह संतुष्ट नहीं है और वर्तमान संकट के लिए खुद को छोड़कर बाकी सभी पर आरोप लगा रही है। यह विपक्ष, राज्य सरकारों, भारत के रिजर्व बैंक और वैश्विक कारणों पर दोषारोपण कर रही है। गैर-जिम्मेदारी की हद तब पार हो गई जब वित्त मंत्री ने इसका ठीकरा अपने पूर्ववर्ती (वित्त मंत्री) पर थोप दिया और प्रधानमंत्री मौन साधे रहे। महोदय, अर्थव्यवस्था और देश पर छाया वर्तमान संकट मुख्य रुप से विश्वास का संकट है। यहां एक ऐसी सरकार है जो निर्णय लेने, नेतृत्व प्रदान करने या भविष्य के लिए आशा की एक किरण दिखाने में अक्षम है। यह भयंकर भ्रष्टाचार में फंसी है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय को भी अब संदेह है कि सरकार महत्वपूर्ण फाइलों को गायब कर साक्ष्यों को नष्ट करने का प्रयास कर रही है।
rajnath_singसंकट के इस मौके पर एक लकवाग्रस्त सरकार है, जो कभी नहीं बोलने वाले प्रधानमंत्री, एक ऐसा वित्त मंत्री जो गलत तरीके से अपने उस पूर्ववर्ती पर दोषारोपण करता है जो अपना बचाव नहीं कर सकता, एक ऐसी सर्र्वोच्च नेता जिसे इसकी चिंता नहीं है कि पैसा कहां से आएगा और एक जड़वत नौकरशाही जो अक्षम है, को देश वहन नहीं कर सकता। इस सरकार के मंत्री बेलगाम हैं और परस्पर विरोधी उद्देश्यों के लिए काम कर रहे हैं। भारत सरकार का राज्य सरकारों, विशेष रुप से गैर-यूपीए शासित राज्यों तथा विपक्षी दलों वाले राज्यों से सम्बन्ध निचले स्तर पर है। इसलिए, हम आप से अनुरोध करने आए हैं कि इस अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए इस सरकार को शीघ्रातिशीघ्र नया जनादेश लेने की सलाह दें और अगामी तीन महीनों में होने वाले राज्य विधानसभाई चुनावों के सा

एल के आडवाणी को ८५वे जन्म दिन की वधाईयां :राजनीतिक लालिमा और स्याही का गाढापन बरकरार है

एन डी ऐ के सर्वोच्च नेता+ वरिष्ठ अधिवक्ता और अभी तक युवा पत्रकार लाल चंद किशन चंद आडवाणी को उनके ८५ वें जन्म दिन पर ढेरों वधाईयां | इस ८५वे जन्म दिन पर भी आडवाणी पर पीलापन नहीं छाया है कलम की स्याही के गाड़े पण को हल्का नहीं होने दिया है| उन्होंने अपने न्रेत्त्व की लाली को प्रगट करते हुए अपने पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी के गलत कारनामों का पूरजोर विरोध किया और सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी के एक अंश का अपने ब्लॉग में उल्लेख करके कांग्रेस की नीतिओं की धज्जियां उधेड़ी हैं|
गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के ऊपर भ्रष्टाचार और गलत ब्यान बाजी के आरोप लग रहे है ऐसे में भजपा के जेठमलानी परिवार और एल के अडवानी द्वारा अध्यक्ष का पूर जोर विरोध मीडिया की सुर्खियाँ बना हुआ है| आज सुबह जन्म दिन की बधाई देने गडकरी अडवानी के निवास पर पहुंचे और अपनी स्थिति स्पष्ट की इसे एल के आडवानी के नजरिये की जीत माना जा रहा है | भाजपा का एक धडा नितिन के इस्तीफे का विरोध करते हुए इसमें पार्टी की छवि के धूमिल होने की आशंका से ग्रसित है जबकि दूसरों का मानना है कि अध्यक्ष के इस्तीफे से न केवल पार्टी की छवि सुधरेगी बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपण से घिरी कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी पर भी हमलावर होने का अवसर मिलगा| एल के आडवाणी को ८५वे जन्म दिन की वधाईयां :राजनीतिक लालिमा और स्याही का गाढापन बरकरार है [/caption
एल के आडवाणी वरिष्ठ पत्रकार है मगर उन्होंने पत्रकारिकता की नई विधा ब्लॉग को लिखने की शुरुआत सात जनवरी २००९ से की हैजिसके माध्यम से विसंगतियों पर आक्रमण के साथ अपना राजनितिक[विपक्ष] धर्म भी निभा रहे हैं| अपने नवीनतम ब्लाग में प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की पहले गृह मंत्री सरदार पटेल के प्रति इर्ष्या डाह का चित्रण किया है और नेहरू की नीतिओं की आलोचना की है|
आडवाणी ने अपने ब्लॉग में ३० अक्टूबर , २०१२ को ,पायनीयर में छपी एक नई स्टोरी का उल्लेख किया है| सरदार पटेल कि जन्म शती[१३७] पर छापी गई इस स्टोरी में हैदराबाद के भारत में विलय को लेकर नेहरू की तुष्टिकरण की नीति को उजागर किया गया है|इसमें लिखा गया है कि नेहरू जान बूझ कर हैदराबाद को भारत में शामिल करने के पटेल के प्रयासों को विफल कर देना चाहते थे |इस न्यूज स्टोरी में बताया है कि हैदराबाद के विलय को लेकर सरदार पटेल हैदराबाद की निजी सेना के निरंकुश अत्याचारी २ ,०० ,००० रजाकारों से मुकाबिला करके हैदराबाद को अन्यायी निजाम से मुक्त करना चाहते थे जबकि नेहरू इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहते थे|इसी लिए आयोजित एक भरी केबिनेट मीटिंग में नेहरू ने तत्कालीन उप प्रधान मंत्री पटेल का अपमान करते हुए उन्हें कम्म्युनालिस्ट बताया |इस अपमान का पटेल के दिल पर गहरा असर हुआ और उसके बाद उन्होंने कभी केबिनेट की मीटिंग अटेंड नहीं की|
इस पर भी नेहरू के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया| दिसम्बर १५ , १९५० को सरदार पटेल के निधन पर नेहरू ने दो नोट तैयार करके भेजे एक नोट में सरदार पटेल द्वारा इस्तेमाल की जा रही ऑफिसियल किडिलैक कार [ Cadillac ] को वापिस मंगवाने का आदेश दिया गया था और दूसरे नोट में , सरका र के सचिवों को यह हिदायत दी गई थी कि अगर वोह पटेल की अंतिम संस्कार में जाना चाहते हैं तो अपने खर्चे से जायेंगे | उस समय वी पी मेनन ने सारा खर्चा ]स्वयम अपनी जेब से उठाया

    एल के अडवाणी ने पी एम् की रेस से फाईनली नाम वापिस लिया

एल के अडवाणी ने आज अपने ८५ वें जन्म दिन पर प्रधान मंत्री पद की रेस से अपना नाम फायनली हटा लिया |उन्होंने कहा है कि पी एम् के पद से पार्टी ज्यादा अहम है|सम्भवत इस त्याग से उन्होंने आरोपों से घिरे नितिन गडकरी और उन्हें बचाने वाले आर एस एस को भी एक सन्देश दे दिया है|उन्होंने एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने की सारी अटकलों को खारिज कर दिया। आडवाणी ने कहा, ‘पार्टी और देश ने मुझे बहुत कुछ दिया है। यह प्रधानमंत्री बनने से कहीं ज्यादा है।’
प्रधानमंत्री बनने की आडवाणी की इच्छा पर खूब चींटा कसी होती रहती है कि प्रधानमंत्री बनने की उनकी इच्छा अधूरी ही रह गई।
एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद का कोई उम्मीदवार फिलहाल तय नहीं हुआ है, लेकिन नरेंद्र मोदी का नाम अक्सर उछाला जाता है। और जब जब ऐसा होता है, तो मोदी के विरोधी माने जाने वाले लोग आडवाणी का नाम उछाल कर मोदी की अहमियत कम करने की कोशिश करते हैं। कुछ वक्त पहले जब इस बात की काफी चर्चा थी कि मोदी एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं, तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लाल कृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता दिया था। इससे पहले अपने ब्लॉग में भी अडवानी ने अगला प्रधान मंत्री गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी बन्ने की भविष्य वाणी की है|

एल के आडवाणी के ब्लॉग से:न्यायपालिका की स्वतन्त्रता पर सात खतरे

एन डी ऐ के सर्वोच्च नेता एल के अडवाणी ने अपने ब्लॉग में न्यायपालिका और उसकी स्वतन्त्रता पर मंडरा रहे सात खतरों के प्रति आगाह किया है|
प्रस्तुत है उनके ब्लॉग के एक लेख के अंत में दिया गया टेलपीस (पश्च्यलेख)
सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रूमा पाल ने नवम्बर, 2011 में पांचवें वी.एम. ताराकुण्डे स्मृति व्याख्यान में ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका‘ विषय पर बोलते हुए कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक व्यवस्था अंतत: न्यायाधीशों की निजी ईमानदारी पर निर्भर करती है। उन्होंने न्यायपालिका और इसकी स्वतंत्रता पर खतरे के ‘सात पाप‘ गिनाए।
”पहला पाप, एक सहयोगी के अविवेकपूर्ण आचरण के प्रति ‘आखें मूंद लेना‘ और मामले को दबाना। उन्होंने कहा विरोधाभास है कि ये (लोग) न्यायपालिका की स्वतंत्रता को आलोचकों के विरूध्द अवमानना की कार्रवाई करने में उग्र रहते हैं जबकि इसी को अपनी ढाल के रूप में उपयोग करते हैं, वह भी अनेकविध पापों को, जिनमें से कुछ धन के लाभ से जुड़े होते हैं और कुछ इतने ज्यादा नहीं।
दूसरा पाप है पाखण्ड। तीसरा है गुप्तता। उदाहरण के लिए, जिस प्रक्रिया से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं या सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किए जाते हैं – ‘को देश में सर्वाधिक गुप्त रखा जाता है।‘
चौथा पाप है दूसरे के शब्दों की चोरी और उबाऊ शब्द बहुलता।अहंकार पांचवां पाप है। न्यायाधीश अक्सर स्वतंत्रता को न्यायिक और प्रशासनिक अनुशासनहीनता के रूप में परिभाषित कर लेते हैंबौध्दिक बेईमानी छठा पाप है।सातवां और अंतिम पाप भाई-भतीजावाद है।

एल के आडवाणी के ब्लॉग से:न्यायपालिका की स्वतन्त्रता पर सात खतरे