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Tag: कर्म

कर्मों का विधान बड़ा अटल है जिसे टाला नहीं जा सकता

करम गति टारे नाहीं टरी ।
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी , सोध के लगन धरी ।
सीता हरन मरन दशरथ को , वन में बिपति परी ।

Rakesh Khurana On Sant Kabir Das

भाव : संत कबीर दास जी कर्मों के बारे में हमें समझा रहे हैं कि कर्मों का विधान बड़ा अटल है और ये टाला नहीं जा सकता ।कर्मों को अगर हम टालना भी चाहें ,तो टाल नहीं सकते ।कर्मों की प्रबलता पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि राजा दशरथ के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ जी बहुत बड़े ज्ञानी थे । उन्होंने सोच – समझ कर श्री रामचंद्र जी की जन्मपत्री तैयार की । अपना पूरा ध्यान लगाकर लगन की घड़ी निकाली । उसके बाद क्या हुआ कि इतने बड़े ज्ञानी ने जब सोच – समझ कर श्री रामचंद्र जी की आगे की ज़िंदगी का हाल लिखा तब भी उन्हें वन में जाना पड़ा , इस दुःख में राजा दशरथ के प्राण चले गए । सीता जी का हरण हो गया ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

निष्काम कर्म बांधने वाले नहीं होते:सकाम कर्म मुक्त नहीं करते

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम ।
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ।

Rakesh Khurana

का त्याग करके नैष्ठिकी शांति को प्राप्त होता है । परन्तु सकाम मनुष्य कामना के कारण फल में आसक्त होकर बंध जाता है ।
व्याख्या-कर्म बाँधने वाले नहीं होते , प्रत्युत कर्म फल की इच्छा बाँधने वाली होती है । कर्म न तो बाँधते हैं , न मुक्त ही करते हैं । कर्मों में सकाम भाव बाँधने वाला और निष्काम भाव मुक्त करने वाला होता है ।
श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
प्रस्तुति राकेश खुराना