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Tag: चौरासी लाख जियाजून

परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखने से चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकला जा सकता है

ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरु अपुनै राखे ।
चरण कमल बसे रिद अंतरि अम्रित हरि रसु चाखे ।
भाव: गुरु अर्जन देव जी फरमा रहे हैं , जिसको सतगुरु ने अपना बनाकर रख लिया है उसे कोई विघ्न नहीं आ सकता , उसे कोई भी फ़िक्र नहीं हो सकती । उसके अन्दर परमात्मा के चरण कमल बसे हुए हैं , वह अपने परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखता है अर्थात जब हम उस नाम रुपी रस को चखते हैं , तब ही हम चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकल पाते हैं अन्यथा हमारी आत्मा एक चोला छोड़ेगी , उसे दूसरा चोला मिलेगा इसी तरह यह क्रम चलता रहेगा । हमारी आत्मा सृष्टि की शुरुआत से ही भटक रही है । जब सतगुरु की हमारे ऊपर मेहर होती है तो वह अपने अन्दर बसे हुए परमात्मा की ओर खींचता है और जब हम परमात्मा की ओर खिंचे चले जाते हैं और उस शब्द के साथ जुड़ते चले जाते हैं , हमारे कर्म कटने शुरू हो जाते हैं और हम चौरासी लाख के जियाजून के चक्कर से निकलना शुरू हो जाते हैं ।
वाणी : गुरु अर्जन देव जी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो , अब मोहिं पार करो ।
महाकवि संत सूरदास

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

भाव : महाकवि संत सूरदास कहते हैं हे प्रभु , आप मेरे पिता हैं और मैं तो एक बालक हूँ। बालक तो अक्सर गलतियाँ करता रहता है ।
कृपया आप मेरी गलतियों पर ध्यान न दें । आप तो सबको एक नजर से दखते हैं । आप के अन्दर तो समभाव है । हम माया
के जाल में फँसे हुए हैं , हे प्रभु आप से प्रार्थना है कि आप हमें इस चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकालिये । मूलरूप से
हम प्रभु का ही अंश हैं , हम सब चाहते हैं कि वापस परमात्मा में जाकर लीन हो जायें ।
सूरदास जी को महाकवि[सूर सूर ] कहा जाता है इनकी संगीत मय कृष्ण भक्ति से समकालीन बादशाह अकबर भी इनके भजनों के कायल थे|महा कवि ने कृष्ण भक्ति में जीवन गुजार दिया| जीवन के अंतिम समय में इन्होने कृष्ण जन्म भूमि पर कृष्ण के भजन गा गा कर मौक्ष प्राप्त किया
प्रस्तुति राकेश खुराना