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सच्चे पारस के लिए पूजा के चाकू और कसाई की छुरी में कोई भेद नही है

पारस गुन अवगुन नहीं चितवै , कंचन करत खरो ।
भाव : संत सूरदास जी कहते हैं कि पारस के पास किसी भी किस्म का लोहा चला जाये , चाहे वह पूजा में बरतने वाला चाकू हो , चाहे वह कसाई की छुरी हो , पारस दोनों में कोई फर्क नहीं करता , वह तो अपनी दया की नज़र दोनों पर डालता है , अपनी नजरे – करम से दोनों को खरा सोना बना देता है । वह यह नहीं देखता , कि ये लोहा किस काम आता रहा है । इसी तरह हे प्रभु ! आप के कदमों में गुनाहगार भी आते हैं , पाक और पाकीजा भी आते हैं मगर आप तो समदर्शी होने के नाते दोनों पर नजरे – करम करते हैं । हे प्रभु ! मैं भी पापी हूँ ,मैं इस काबिल तो नहीं हूँ कि आप मुझ पर नजरे – करम करें मगर आप अपनी रहमत से मुझे इस भवसागर से पार कर दीजिए ।
संत सूरदास जी,
प्रस्तुती राकेश खुराना