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Tag: : ममता

मोह,माया,ममता,अहम, फरेब को त्यागे बगैर अगर कहूं परमात्मा नहीं मिलता तो झल्ली ही कह्लाउंगी

तांघ माहि दी जली आं
नित काग उडावां खली आन
नै चन्दन दे शोर किनारे
घुम्मन घेरा ते ठाठा मारे
डुब डुब मोहे तारु सारे
शोर करा ते मैं झल्ली आं ।

Rakesh khurana

भाव: आत्मा की सबसे बड़ी इच्छा सद्गुरु परमात्मा को पाने की चाह होती है । सद्गुरु परमात्मा को पाने के लिए खुद को खोना भी पड़ता है तभी परमात्मा की समीपता प्राप्त हो सकती है । जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता यही है ।
बुल्ले शाह फरमाते हैं कि हे प्रियतम मैं तेरी चाह में विरह की आग में जल रही हूँ , कागों[क्रो] के रूप में सांसारिक वासनाओं को अपने समीप नहीं आने देती,
संसार के तमाम रिश्ते नाते, कामनाएँ , वासनाएं प्रेम नदी के किनारे इतना शोर मचा रही हैं जिसके कारण आत्मा नदी में उतर ही नहीं पा रही है । तथा नदी भी इतनी भयानक है कि मोह , माया एवं ममता की भँवरे इतनी तेज पड़ती हैं कि तैरने वाला तो तैरने वाला कभी कभी दूसरों को पार पहुँचाने वाली लकड़ी की नाव भी इस में डूब जाती हैं । कितने ज्ञानी विज्ञानी इस नदी में डूब कर मर गए ऐसे में मेरा क्या होगा ? एक तरफ तो मैं तो इन मोह , माया, ममता, अहम्, फरेब, का त्याग नहीं कर पा रही , तथा दूसरी तरफ मैं शोर मचा रही हूँ की मुझे सद्गुरु परमात्मा की समीपता नहीं मिल पा रही, तो लोग तो मुझे झल्ली ही कहेंगे नां ।
सूफी संत बुल्ले शाह का कलाम
प्रस्तुति राकेश खुराना

ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है: श्रीमद्भगवद्गीता

श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।
कर्मयोगी आसक्ति का त्याग करके केवल (ममता रहित )इन्द्रियां , शरीर , मन और बुद्धि के द्वारा अंत:करण की शुद्धि के लिए ही कर्म करते हैं ।
व्याख्या : ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है । कर्मयोगी साधक शरीर -इन्द्रियाँ -मन -बुद्धि को अपना तथा अपने लिए मानते हुए , प्रत्युत संसार का तथा संसार के लिए मानते हुए ही कर्म करते हैं । इस प्रकार कर्म करते – करते जब ममता का सर्वथा अभाव हो जाता है , तब अंत:करण पवित्र हो जाता है ।
श्लोक

Rakesh Khurana On श्रीमद्भगवद्गीता


प्रस्तुती राकेश खुराना