झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां
एक आम नागरिक
ओये झल्लेया ये क्या हो रहा है? रिटायर[न्यायाधीश] होने के बाद प्रेस कौंसिल के सुप्रीमो बने माननीय मार्कंडेय काटजू साहब को अब ९०%भारतीय बेवकूफ नज़र आने लग गए हैं|उनके मुताबिक़ तो केवल १०% भारतीय ही सयाने हैं+अक्लमंद हैं+बुद्धिमान हैं |इसका मतलब तो ये हुआ कि केवल १०% सयाने ही देश को चला रहे हैं|राजनीती कर रहे हैं|
झल्ला
माननीय मार्कंडेय काटजू ने एक समान दो मुकद्दमों में अलग अलग विरोधी निर्णय देकर यह साबित कर दिया था कि देश में बहुसंख्यक वाकई बेवकूफ हैं देश की दो बड़ी अदालतों[अलग अलग]में न्यायाधीश थे तो जालंधर और मेरठ में छावनी परिषदों की रिहायशी कालोनियों के विषय में अलग अलग निर्णय देकर जालंधर को अभय दान और मेरठ की शिवाजी कालोनी के रिटायर्ड+ अल्पाय+असहाय नागरिकों को जीवन भर की परेशानियों से नवाज़ा था| अब तो उन्होंने केवल अपने पुराने विचारों को जुबान भर ही दी है लेकिन अब एक बात कहनी जरूरी है कि इस बार उन्होंने बात तो सही कही है मगर उसके लिए शब्दों के चयन करने में शायद उनसे चूक हो गई है|
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