Ad

Tag: यूनिवर्सिटी ऑफ वारबिक

साम्राज्य समाप्त होने के बाद भी पाप की परछाई पीछा नहीं छोडती :सीधे एल के आडवाणी के ब्लॉग से

साम्राज्य के पाप

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण आडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग में ब्रिटिश साम्राज्य के पाप गिनाते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि साम्राज्य समाप्त होने के दशकों बाद भी पाप की परछाई पीछा नहीं छोडती इसीकारण आज कल ब्रिटिश सरकार केन्याई पीड़ितों को मुआवजा दे कर अपने पाप धोने में लगी है जबकि इससे कहीं जयादा पाप तो भारत में किये गए थे| प्रस्तुत है सीधे एल के आडवाणी के ब्लॉग से:
डेविड एम. एण्डरसन, यूनिवर्सिटी ऑफ वारबिक में अफ्रिकी इतिहास के प्रोफेसर हैं। इन्टरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून के 14 जून, 2013 के संस्करण में इन प्रोफेसर महोदय का एक महत्वपूर्ण लेख ”एटोनिंग फॉर दि सिन्स ऑफ एम्पायर” शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
लेख का सार यह है कि ”गत् सप्ताह ब्रिटिश सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसले में 1950 के दशक में मऊ मऊ विद्रोह के दौरान जिन 5228 केनयाइयों को बंदी बनाने के समय प्रताड़ित किया गया उन्हें मुआवजा देने का निर्णय किया है। प्रत्येक दावेदार को लगभग 2670 पौण्ड (करीब 4000 डॉलर) मिलेंगे।”
डेविडसन की टिप्पणी है: ”पैसा नगण्य है। लेकिन इससे जो सिध्दान्त स्थापित हुआ है, और जो इतिहास फिर से लिखा गया है, वह अथाह है।”
भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख उपनिवेशों में से एक रहा है। और यहां पर अनगिनत गुनाह किए गए। तबकी सरकार द्वारा किया सर्वाधिक बर्बर अपराध था जलियांवाला बाग का कत्लेआम। यह कत्लेआम 13 अप्रैल (रविवार), 1919 को अमृतसर में बैशाखी के दिन किया गया। गोली चलाने का आदेश ब्रिगेडियर-जनरल इ.एच. डायर ने दिया। डायर का मानना था कि कोई बड़ी बगावत होने वाली है।
यह जानकारी मिलने पर कि 15 से 20 हजार की संख्या में लोग जलियांवाला बाग मैदान में इक्ट्ठे हो गए हैं तो डायर 50 गोरखा बंदूकधारियों को वहां एकत्रित हुए पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर फायरिंग करने को कहा गया। फायरिंग तब तक जारी रही जब तक उनके पास का गोलियों का स्टॉक समाप्त नहीं हो गया। डायर ने स्वयं बताया कि 1650 राऊण्ड गोलियां चलाई गई: ब्रिटिश अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक 379 लोग मारे गए, जबकि लगभग 1000 लोग घायल हुए। भारतीय राष्ट्रीय क्रांग्रेस के अनुमान के मुताबिक शिकार हुए लोगों की संख्या 1500 से ज्यादा थी, जिसमें से लगभग 1000 लोग मारे गए।
जनरल डायर द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को यह सूचना देने कि उन्हें ‘एक क्रांतिकारी सेना से मुकाबला करना पड़ रहा है,’ के बाद पंजाब के ब्रिटिश लेफ्टिनेंट-गवर्नर, माइकेल ओ‘डायर (Michael O’Dwyer) ने ब्रिगेडियर डायर को भेजे टेलीग्राम में लिखा। ”आपकी कार्रवाई ठीक है और लेफ्टिनेंट गर्वनर इसे स्वीकृति देते हैं।” ओ‘डायर ने अनुरोध किया कि अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लागू कर दिया जाए, और इसे वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने लागू कर दिया।
*13 मार्च, 1940 को लंदन के केस्टन हॉल में, भारत के सुनाम के रहने वाले एक क्रांतिकारी ऊधम सिंह, जो अमृतसर की घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी या और स्वयं वहां घायल हो गया था, ने पंजाब के ब्रिटिश लेफ्टिनेंट-गवर्नर माइकेल ओ‘डायर की गोली मार कर हत्या कर दी। अमृतसर कत्लेआम के समय ओ‘डायर वहां का गर्वनर था ही, जिसने न केवल डायर की कार्रवाई को स्वीकृति दी अपितु माना जाता है कि वह इसका मुख्य सूत्रधार भी था। ब्रिगेडियर-जनरल डायर स्वयं 1927 में मर गया था।
ऊधम सिंह की कार्रवाई की भारत में अमृत बाजार पत्रिका जैसे राष्ट्रवादी समाचारपत्रों ने सराहना की। आम लोगों और क्रांतिकारियों ने इसे गौरवान्वित कदम कहा। दुनिया भर में अधिकांश समाचारपत्रों ने इस अवसर पर जलियांवाला बाग के कत्लेआम को स्मरण करते हुए माइकेल ओ‘डायर को इस कत्लेआम का जिम्मेदार ठहराया। ऊधम सिंह को ‘स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाला‘ और उसके कदम को लंदन के दि टाइम्स तक ने इसे ”भारतीय लोगों के दबे हुए आक्रोश की एक अभिव्यक्ति” के रुप में वर्णित किया।
ऊधम सिंह को गवर्नर ओ‘डायर की हत्या के आरोप में 31 जुलाई, 1940 को फांसी दे दी गई। उस समय जवाहरलाल नेहरु और महात्मा गांधी सहित अनेकों ने ऊधम सिंह के कदम को नादान परन्तु साहसी करार दिया। हालांकि 1952 में नेहरु (तब के प्रधानमंत्री) ने ऊधम सिंह को निम्न शब्दों से सम्मानित किया (डेली प्रताप के अनुसार):
”मैं शहीदे-आजम ऊधम सिंह को सम्मानपूर्वक सलाम करता हूं जिसने फांसी के फंदे को गले लगाया ताकि हम स्वतंत्र रह सकें।”
*ब्रिटेन के वर्तमान प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन फरवरी, 2013 में तीन दिवसीय भारत की यात्रा पर आए थे और इस अवधि में वह अमृतसर भी गए। यहां वह न केवल स्वर्ण मंदिर गए अपितु जलियांवाला बाग के कत्लेआम की जगह पर जानेवाले पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बने।
उस मैदान पर जहां अब शहीद स्मारक है, पर डेविड कैमरुन ने पुष्प अर्पित किए और 1920 में तत्कालीन वॉर सेक्रेटरी, विंस्टन चर्चिल द्वारा कहे गए शब्दों का स्मरण किया जिसमें कत्लेआम को ‘सरासर गलत‘ कहा गया था। प्रधानमंत्री ने स्वयं टिप्पणी की कि यह कत्लेआम ”ब्रिटिश इतिहास में एक अत्यधिक शर्मनाक घटना है।”