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कहत कबीर सुनो भाई साधो , होनी होके रही

कर्मों के विधान से कोई भी नहीं बच नहीं सका। एक पौराणिक आख्यान के माध्यम से कबीर दास जी हमें समझाते हैं :-
राहु केतु औ भानु चंद्रमा , विधि संयोग परी ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो , होनी होके रही ।
कबीर दास जी फरमाते हैं कि जो राहु और केतु हैं उनका ग्रहण भानु और चंद्रमा को लगता है । उसकी कहानी इस प्रकार है – समुद्र मंथन हो रहा था । उसमें से अमृत , शराब और जहर तीनों ही निकले । जो देवता थे उन्होंने सोचा कि हम अमृत पीयें और शराब राक्षसों को पिलायें , विष तो महादेव जी ने पी लिया था । देवताओं ने अमृत पीना शुरू कर दिया तो एक राक्षस जिसका नाम राहु था, उसको मालुम हो गया । उसने अपना भेष बदला और देवताओं की पंक्ति मेंजाकर बैठ गया । उसने अमृत पीया , अमृत अभी मुंह में ही था , गले के नीचे भी नहीं उतरा था कि भगवान विष्णु को पता चल गया , भगवान विष्णु ने तुरंत उसका सिर काट दिया । अब जो सिर कटा हुआ है उसको केतु बोलते हैं और जो नीचे का धड़ है , उसको राहु बोलते है। चंद्रमा और सूर्य ने यह बात भगवान विष्णु को बताई थी । चंद्रमा और सूर्य को कुछ – कुछ समय बाद जो ग्रहण लगता है , राहु और केतु ही उसका निमित्त होते हैं । इस दोहे का कोई सम्बन्ध जे दी यूं और भाजपा के गठबंधन से नही है|
संत कबीर दास जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना