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Tag: वाणी : गुरु अर्जन देव जी

परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखने से चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकला जा सकता है

ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरु अपुनै राखे ।
चरण कमल बसे रिद अंतरि अम्रित हरि रसु चाखे ।
भाव: गुरु अर्जन देव जी फरमा रहे हैं , जिसको सतगुरु ने अपना बनाकर रख लिया है उसे कोई विघ्न नहीं आ सकता , उसे कोई भी फ़िक्र नहीं हो सकती । उसके अन्दर परमात्मा के चरण कमल बसे हुए हैं , वह अपने परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखता है अर्थात जब हम उस नाम रुपी रस को चखते हैं , तब ही हम चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकल पाते हैं अन्यथा हमारी आत्मा एक चोला छोड़ेगी , उसे दूसरा चोला मिलेगा इसी तरह यह क्रम चलता रहेगा । हमारी आत्मा सृष्टि की शुरुआत से ही भटक रही है । जब सतगुरु की हमारे ऊपर मेहर होती है तो वह अपने अन्दर बसे हुए परमात्मा की ओर खींचता है और जब हम परमात्मा की ओर खिंचे चले जाते हैं और उस शब्द के साथ जुड़ते चले जाते हैं , हमारे कर्म कटने शुरू हो जाते हैं और हम चौरासी लाख के जियाजून के चक्कर से निकलना शुरू हो जाते हैं ।
वाणी : गुरु अर्जन देव जी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना