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मंत्र मुग्ध करने वाली गायिका शमशाद बेगम अपने अल्लाह को प्यारी हो गई

मशहूर गायिका[पद्म भूषण] शमशाद बेगम अपने अल्लाह को प्यारी हो गई| 94 साल की शमशाद पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं। उनका निधन मुंबई के उनके [पवई]घर में हुआ।14 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जन्मी बेगम ने आज़ादी से पहले के दशक में लाहौर के पेशावर रेडियो पर१६ दिसंबर को पहली बारअपनी आवाज के जादू से दुनिया को मंत्र मुग्ध कर दिया | जिसके जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। १५/= प्रति सांग से शुरुआत करने वाली इस गायिका को म्यूजिक कंपनी ने ५०००/= दिए| वर्ष 1955 में अपने पति गणपत लाल बट्टो के निधन के बाद से शमशाद मुंबई में अपनी बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रह रही थीं। शमशाद बेगम हिंदी सिनेमा की पहली पार्श्व गायिकाओं में से एक थीं। उन्होंने कई सुपरहिट गानों में अपनी आवाज दी। लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसी प्रतिभावान गायिकाओं के सामने १९४० से १९५० में अपनी आवाज का लोहा मनवाने वाली गायिका शमशाद बेगम के गाए गीत आज भी मंत्र मुग्ध कर देते हैं|इन्होने हिंदी-उर्दू पंजाबी फिल्मों में लगभग पांच सौ से ज्यादे गाने गाये, जिनमें से दर्ज़नों गाने आज भी पुराने फ़िल्मी गीत-प्रेमियों की पसंद बने हुए हैं। उनके गाये कुछ सदाबहार गीत हैं – छोड़ बाबुल का घर+ होली आई रे कन्हाई+ गाडी वाले गाडी धीरे हांक रे+ तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़मा कर + लेके पहला−पहला प्यार…. काफी मशहूर हुआ। पूछ मेरा क्या नाम रे, नदी किनारे गांव रे+. कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना+ कजरा मोहब्बत वाला+जैसे गीतों के लिए वह अब भी याद रखी जाती हैं।
फ़िल्मी संगीत की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाले ओ पी नैय्यर ने शमशाद बेगम की आवाज की तुलना मंदिर की घंटियों से की थी|
शमशाद बेगम ने अपने गायन की शुरुआत रेडियो से की। 1937 में उन्होंने लाहौर रेडियो पर पहला गीत पेश किया। उस दौर में उन्होंने पेशावर, लाहौर और दिल्ली रेडियो स्टेशन पर गाने गाए। शुरुआती दौर में लाहौर में निर्मित फिल्मों खजांची और खानदान में गाने गाए। वह अंतत: 1944 में बंबई आ गईं।१९९८ में इनकी मृत्यु की खबर आ गई थी दरअसलदिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानू की नानी का नाम भी शमशाद बेगम [क्लासिकल]था उनके निधन पर यह गलत फहमी हो गई थी|