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Tag: श्री शक्तिधाम मंदिर

मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करने से ही परमात्मा का सच्चा सिमरन होता है

श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती, मेरठ में अमृतवाणी सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
परमेश्वर कल्याणकारी, दुःख निवारक, सर्वशक्तिमान है। उस परिपूर्ण परमात्मा का सिमरन तभी होता है जब हम अपने मन को उसके नाम में सौंप दें। जब हम मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करें ।
मन तो एक ही है और इसे हमने जगत के विषयों में लगाया हुआ है, जिसके कारण इस मन में गुरु एवं प्रभु के नाम की मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाती। हमारा मन बाहरी वृत्तियों में लगा रहता है तथा मन एकाग्र नहीं हो पाता । इन्हीं वृत्तियों के कारण हमारा मन परमात्मा के भजन में नहीं लगता । हम सारा जीवन दूसरे लोगों के दोषों को ढूँढने में लगे रहते हैं अपने दोषों को नहीं देखते । इसके कारण हमारे दोष तो समाप्त नहीं होते बल्कि हमारी दृष्टि और सोच दोनों दूषित हो जाते हैं। परिणामवश हम परमात्मा के नाम, सुमिरन से बहुत दूर हो जाते हैं।
संत महापुरुष समझाते हैं की अपनी सोच को सकारात्मक बनायें, अपना निरिक्षण स्वयं करें, अपने दोषों को ढूंढकर उसे दूर करें और प्रभु के पावन नाम का सुमिरन करें ।
श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती,
अमृतवाणी सत्संग ,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया

संत शिरोमणि इस युग के युगावतार, वन्दनीय; प्रातः कालीन पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निर्वाण दिवस के अवसर पर श्री शक्तिधाम मंदिर, लाल कुर्ती, मेरठ में विशेष श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया|पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को श्रधांजलि देने के लिए भारी संख्या में श्रधालुजन मंदिर में एकत्र हुए।

पूज्य भगत नीरज मणि ऋषि जी


पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृत प्रवचनों की वर्षा करते स्वामी जी के जीवन एवं उनके तप का वर्णन किया। उनहोंने बताया की स्वामी जी का जीवन बहुत ही सरल था। उन्हों कई ग्रन्थ भी लिखे जिन्हें श्रधालुजन बड़ी श्रधा एवं प्रेम से पढ़ते हैं तथा धर्मलाभ उठाते हैं|उन्होंने बताया कि ऐसे बहुत कम संत हैं जिन्हें सीधे ईश्वर दरबार से राम नाम का प्रशाद मिला। स्वामी जी ने इस राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का पावन पाठ पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के श्री मुख से हुआ। तथा स्वामी जी द्वारा लिखे गए भजनों का गायन भी किया गया।