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Tag: सतगुरु

परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखने से चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकला जा सकता है

ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जो सतिगुरु अपुनै राखे ।
चरण कमल बसे रिद अंतरि अम्रित हरि रसु चाखे ।
भाव: गुरु अर्जन देव जी फरमा रहे हैं , जिसको सतगुरु ने अपना बनाकर रख लिया है उसे कोई विघ्न नहीं आ सकता , उसे कोई भी फ़िक्र नहीं हो सकती । उसके अन्दर परमात्मा के चरण कमल बसे हुए हैं , वह अपने परमात्मा के नाम रुपी अमृत को चखता है अर्थात जब हम उस नाम रुपी रस को चखते हैं , तब ही हम चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकल पाते हैं अन्यथा हमारी आत्मा एक चोला छोड़ेगी , उसे दूसरा चोला मिलेगा इसी तरह यह क्रम चलता रहेगा । हमारी आत्मा सृष्टि की शुरुआत से ही भटक रही है । जब सतगुरु की हमारे ऊपर मेहर होती है तो वह अपने अन्दर बसे हुए परमात्मा की ओर खींचता है और जब हम परमात्मा की ओर खिंचे चले जाते हैं और उस शब्द के साथ जुड़ते चले जाते हैं , हमारे कर्म कटने शुरू हो जाते हैं और हम चौरासी लाख के जियाजून के चक्कर से निकलना शुरू हो जाते हैं ।
वाणी : गुरु अर्जन देव जी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना

हे प्रभु! मुझे ऐसी विधि दे दो जिससे मैं क्षण मात्र भी आप को भुला न सकूँ:गुरु नानक

काम क्रोध लोभ झूठ निंदा इन ते आपि छडावहु।
इह भीतर ते इन कउ डारहु आपन निकटि बुलावहु ।
अपुनी बिधि आपि जनावहु हरि जन मंगल गावहु ।
बिसरू नाही कबहू हीए ते इह बिधि मन महि पावहु ।
गुरु पूरा भेटिओ वडभागी जन नानक कतहि न धावहु ।

भाव -काम क्रोध लोभ झूठ और निंदा से आप ही छुड़ा सकते हैं । ये सब मुझ से बाहर कर दो और मुझे अपने पास बुला लो । किस तरह आप यह करते हैं यह केवल आप ही जानते हैं । हे प्रभु! मुझे ऐसी विधि दे दो जिससे मैं क्षण मात्र भी आप को भुला न सकूँ । गुरु नानक कहते हैं कि बड़े भारी भागों से वह पूरे सद्गुरु से मिले और उनके मन की भटकन हमेशा के लिए ख़त्म हो गई है।
वाणी: श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

असली ५ रत्न वोह हैं जो हमें हमारे मानव जीवन की वास्तविक मंजिल की तरफ ले जाते हैं

तुलसी या संसार में पांच रत्न हैं सार
साध संगत , सतगुरु शरण , दया , दीन , उपकार ।

Rakesh Khurana

भाव: संत तुलसी साहिब कहते हैं यूँ तो इस संसार में बड़े रत्न हैं , परन्तु वो रत्न जो हमें हमारे मानव जीवन की मंजिल की तरफ ले जाते हैं – वो केवल पांच हैं । पहला रत्न है – किसी साधु अर्थात किसी प्रभु रूप हस्ती की संगत। पहला रत्न जो मरने के बाद भी हमारे साथ जाता है , वो हमारा सतगुरु है ।दूसरा रत्न सतगुरु की शरण है । तीसरा रत्न सब पर दया करना है ।चौथा रत्न हमारी दीनता , हमारी विनम्रता है और पांचवा रत्न सब पर उपकार करना है । संत तुलसी साहिब कहते हैं ये पांच रत्न ऐसे हैं जो इस संसार में भी हमारा साथ देते हैं और उसके बाद भी हमारा साथ देते हैं । यदि हम किसी प्रभु रूप हस्ती के चरणों में बैठकर इन रत्नों को हासिल कर लें तो हमारी जिंदगी का जो ध्येय है – अपने आप को जानना और प्रभु को पाना – वो पूरा हो जायेगा । हमारी ये जिंदगी संवर सकती है और अगली जिंदगी भी ।
संत तुलसी साहिब हाथरस वाले
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु मेलों में नहीं जाता,पूजा नहीं करवाता ,भेंट नहीं लेता फिर भी प्रभु देन बांटता ही रहता है

साधो सो सतगुरु मोहिं भावै ।
सतनाम का भरि – भरि प्याला , आप पिवै मोहिं प्यावै ।
मेले जाय न महंत कहावै , पूजा भेंट न लावै ।
परदा दूरि करै आँखिन को , निज दरसन दिखलावै ।

Rakesh khurana on Sant kabir das ji

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं – हे साधु ! जो मेरा सतगुरु है , वो मुझे बहुत ही प्यारा लगता है , बहुत ही अच्छा लगता है ।सतगुरु मुझे इसलिए अच्छा लगता है, कि जो नाम का अमृत है , उसके प्याले भर – भर कर , एक तो वह खुद पीता है अर्थात वह खुद प्रभु में लीन हो जाता है और फिर यही नहीं वह मुझे भी पिलाता है , मुझे भी ईश्वर के नाम के साथ जोड़ता है ।
ऐसा सतगुरु मेलों में नहीं जाता , क्योंकि वह तो खुद परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ है , बाहर की दुनिया की उसे कोई परवाह नहीं होती और न ही वह महंत की तरह से, पंडित की तरह से जीता है । न ही वह अपनी पूजा करवाता है , न ही भेंट में कुछ लेता है । ऐसा सतगुरु अपनी ही कमाई पर जीता है । वह प्रभु की देन को बिना किसी कीमत के औरों में बाँटता रहता है ।वह हमारी आँखों पर पड़े माया के परदे को हटाता है ।वह अपने दर्शन हमें अन्दर देते हैं । उस नूरी स्वरूप को हमारे साथ मिला देते हैं और इसी तरह हमें सचखंड तक पहुंचा देते हैं ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं और इसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं

निस दिन सतसंगत में राचै , सबद में सुरत समावै ।
कहै कबीर ताको भय नाही , निर्भय पद परसावै।

Rakesh khurana On Sant kabir das

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं कि सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं , वे सत में लीन हैं , वे प्रभु में अभेद हैं ।हमारा रात – दिन सत्संग के बीच गुजरे ।हम परमात्मा का अंश हैं और उसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं और उस चेतना को हमने उभारना है , नहीं तो हमारी जिंदगी बेकार हो जाएगी ।उस चेतनता के साथ सतगुरु हमें ऐसे जोड़ देते हैं कि वह जोड़ कभी नहीं टूटता। जैसे – जैसे हम अभ्यास करते चले जाते हैं , हमारी सुरत अन्दर के शब्द के साथ जुडती जाती है , माया समाप्त हो जाती है । जब हम इस शरीर से ऊपर उठते है तो हम निडर हो जाते हैं , डर हमें छू भी नहीं सकता ।
हम एक ऐसे गुरु की शरण में पहुँच गए है जो हमें प्रभु की ज्योति , श्रुति के साथ जोड़ देता है ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु उस अगम , निराकार , अगोचर का देहधारी स्वरूप है

सतगुरु मुकर दिखाया घट का नाचूंगी दे – दे चुटकी ।
मेरा सुहाग अब मोकूं दरसा और न जाने घट – घट की ।

Rakesh khurana on sant meera bai

मीरा कहती है – सतगुरु ने मेरे अंतर का दर्पण साफ़ कर दिया है , जिसमें मुझे प्रभु के दर्शन होते हैं । मैं सुहागिन हो गई । मेरी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया । इस आनंद में मैं खुश होकर नाचूंगी । सतगुरु ही घट के आन्तरिक रहस्य को जान सकता है ।
मीरा कहती है सतगुरु के अलावा घट की बात जानने वाला परमात्मा है । इससे सिद्ध होता है कि सतगुरु परमात्मा का ही अभिन्न स्वरूप है । सतगुरु उस अगम , निराकार , अगोचर का देहधारी स्वरूप है ।
संत मीराबाई
प्रस्तुति राकेश खुराना

जैसे जैसे चंचल मृग रूपी सतगुरु जीवन मार्ग दिखाता है तृष्णा बढती जाती है

असां हुण चंचल मिर्ग फहाया ,
ओसे मैनूं बन्ह बहाया ,
हर्ष दुगाना उसे पढाया ,
रह गईयां दो चार रुकाटा ।

Rakesh Khurana

भाव: सद्गुरु (परमात्मा ) किसी चंचल मृग के समान है । वह आसानी से पकड़ में नहीं आता । मोह – माया के भयंकर जंगल में वह मन को भरमाता हुआ दौड़ाता रहता है परन्तु मैंने उस चंचल मृग को पकड़ लिया है । सद्गुरु मुझे मिल गया है परन्तु उसने भी मुझे बांधकर बैठा लिया है।
आत्मा और परमात्मा के एकत्व के बाद चंचलता का कोई अर्थ ही नहीं है ।उसी ने मुझे भजन का पाठ पढ़ाया है।उसी सद्गुरु ने मुझे यह ज्ञान दिया है कि उसे प्राप्त करने के लिए उससे प्रेम करना और उसका भजन करना ही एकमात्र मार्ग है ।परन्तु अब भी थोड़ा सा हिस्सा उससे पढ़ना बाकी है । सद्गुरु की शिक्षा कभी पूरी नहीं होती ।जैसे – जैसे वह जीवन का मार्ग दिखाता है प्यास जागती जाती है और लगता है कि अभी तो यह अधूरा है , अपूर्ण है ।
सूफ़ी संत सांई बुल्लेशाह
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु हमारे पापकर्मों को धो देता है

इक नदिया इक नार कहावत , मैलो नीर भरो ।
जब दोनों मिल एक बरन भये, सुरसरी नाम परौ ।

संत सूरदास जी समझाते हैं कि एक नदी है एक नाला है; नदी में साफ़-सुथरा पानी
है तथा नाले में गन्दा पानी है। हम सांसारिक प्राणी तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की
माया में फंसे हुए हैं, बुरे कर्मो की गन्दगी से लथ-पथ हैं। प्रभु तो निर्मल जल का समुद्र
है। वह करुणा , दया, प्रेम का अथाह सागर है। जब कोई गन्दा नाला , दरिया में
जाकर मिलता है तो उसका पानी भी साफ़ हो जाता है और दरिया का हम रंग बन
जाता है। इसी तरह हमारी आत्मा और हमारे सतगुरु का मिलाप होता है। हम जब अपने सतगुरु की शरण में जाते हैं तो सतगुरु हमारे पापकर्मों को धो देता है और यतन करते -करते हमारा मन परमात्मा के नाम में लीनता लाभ करने लगता है। और हमारे
अन्दर से काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की गंदगी समाप्त हो जाती है।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना