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Tag: साम्प्रादाईक सौहार्द

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

संत कबीर दास हरी की महिमा का वर्णन करते हुए फरमाते हैं

हुए ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।

भावर्थ

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर

जब कबीर साहब काशी में प्रकट हुए , तो पंडित और काज़ी , दोनों विरोधी हो गए क्योंकि उनका मार्ग कुछ और था । जब बातचीत और वाद-विवाद में पूरे न उतर और सके , तो उनको एक शरारत सूझी । कबीर साहब सचखंड से आए थे और ये पंडित और काज़ी बाहर (इन्द्रियों के घाट पर) बैठे थे । मुकाबले में पूरे कैसे उतरते ? उन्होंने बाहर दूर -दूर तक पत्र भेज दिए कि काशी में एक सेठ कबीर साहब हैं , उनके घर अमुक तारीख़ को यज्ञ है , जहाँ तक हो सके जरुर आएँ । जब वह तारीख़ आई , तो लोग हजारों की संख्या में आ गए और पूछने लगे कि सेठ कबीर साहब का घर कहाँ है ? कबीर साहब तो एक साधारण जुलाहे थे , यह सुनकर झाड़ियों में जा छिपे । उधर मालिक (प्रभु) ने कबीर का रूप धर कर सारा सामान तैयार किया । सारी दुनिया खा गई । सभी जाते हुए कहते जाते कि ‘ धन्य है कबीर ।’ जब कबीर साहब को पता लगा , तो कहते हैं –
ना कुछ किया न करि सका , ना करने जोग सरीर ।
जो कुछ किया साहिब किया , ता तें भया कबीर ।
वे अपना नाम ही नहीं रखते हैं , बल्कि कहते हैं कि जो कुछ किया उस हरि ने किया है । जो सब कुछ वाहेगुरु को कुर्बान कर देता है , वाहेगुरु भी उसके सभी काम स्वयं करता है ।
संत कबीर दास जी की वाणी ,
साम्प्रादाईक सौहार्द ,
प्रस्तुति राकेश खुराना