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Tag: स्वामी सत्यानन्द महाराज

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

 प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

परम पूज्य स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ का एक अंश.

मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.
भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी कितनी अधिक कृपा है कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके पावन चरणों सेदूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ भी नहीं होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.

प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल से ज्यादा नहीं है.

श्री रामशरणम् आश्रम ,
गुरुकुल डोरली , मेरठ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

श्री शक्ति धाम मंदिर में अमृत वाणी के पाठ से नव वर्ष का स्वागत हुआ

गुरु चरण कमल चित्त जोड़िए

श्री शक्तिधाम मंदिर लाल कुर्ती मेरठ में

jai mata dii file photo

स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित अमृत वाणी के पावन पाठ से हुआ। पूज्य श्री नीरज मणि ऋषि जी ने इस अवसर पर अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा सर्वप्रथम मनुष्य जीवन भाग्य से मिलता है , मनुष्य जीवन मिल भी गया तो संतों की शरण मुश्किल से मिलती है , संतों की शरण मिल जाती है तो महापुरषों से पतित पावन परमेश्वर का मंगलमय नाम मुश्किल से मिलता है, फिर गुरु कृपा एवम परमेश्वर की कृपा से अंतःकरण में परमात्मा का नाम जपने का भाव मुश्किल से पैदा होता है ।
बिना संत कृपा के नाम भी नही जपा जाता। नाम को केवल लेने से कल्याण नही, नाम को जपने से कल्याण है।
चाहे जीवन भर हम ज्ञान की चर्चा करते रहें पर हमारे जीवन में अगर प्रभु के नाम का ध्यान और सिमरन नही है तो हमें पता ही नही चलता के नाम क्या है? जब हम नाम को जपते हैं तो परमात्मा हमारे अतःकरण में ऐसे प्रकट होता है जैसे मेहंदी को रगड़ने से लालिमा प्रकट होती है।
जिस कन्दरा के अन्दर शेर रहता है वहां गीदड़ नही आते, इसी प्रकार जिसके अन्तःकरण में परमात्मा का नाम होता है, वहां से पाप रूपी गीदड़ भाग जाते हैं।
आज हम सब नव वर्ष की पावन बेला पर भगवान् को याद इसलिए कर रहे हैं ताकि हमारा नव वर्ष मंगलमय हो, कल्याणकारी हो और हमारे जीवन की आन्तरिक और बाहरी विघ्न बाधाएं दूर हों, हमारे मन में ईश्वर की जय-जय कार हो। अंत में पूज्य श्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने सभी उपस्थित भक्तजनों को नव वर्ष के मंगलमय होने का आशीर्वाद देते हुए सत्संग का समापन किया।
प्रस्तुती राकेश खुराना