देश में इस समय लगभग १२५ एयर पोर्ट्स हैं यहाँ पर आने जाने वाले जहाज़ों के लिए ऐ टी ऍफ़ खरीदने वालों कोअपने खर्चे का ४५ % तक फ्यूल टैक्स देना पड़ता है| इंटर नॅशनल एयर ट्रांसपोर्ट अथोरिटी के महा निदेशक टोनी टाइलर के हवाले से मीडिया ने छापा है कि विश्व में एयर लाइन्स को अपने खर्चे का एक तिहाई भार फ्यूल के लिए वहां करना पड़ता है जबकि दिल्ली जैसे अति आधुनिक और अन्तराष्ट्रीय स्तर के एयर पोर्ट पर यह खर्चा ४५% तक जा पहुंचता है| उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बीते एक वर्ष में फ्यूल कास्ट में १२% की बढोत्तरी की गई है|
अब ऐसा नहॆएन कि सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाये |एयर लाइन्स को अपनी विदेशी उड़ान के दौरान विदेश से सस्ता फ्यूल लाकर बचत का एक मार्ग दिया गया था लेकिन किसी भी कम्पनी ने इसका फायदा उठाने के लिए पहल नही की |बाद में कहा जाने लगा कि फ्यूल स्टोरेज के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर जरुरी है और यह बेहद खर्चीला होने के कारण उनके बूते से बाहर है|मौजूदा तीनो तेल कंपनियों ने निजी एयर लाइन्स के लिए अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रयोग के लिए अपर्याप्त बता दिया है|
फ्यूल कास्ट में इस तरह कि बेतहाशा बढोत्तरी के नकारात्मक परिणाम भी आने लगे हैं|
[१]अधिकाँश एयर लाइन्स घाटे का रोना रो रही है और कुछ मैदान छोड़ने की तैय्यारी में हैं|दो तीन कम्पनियाँ फायदे में हैं लेकिन इसके लिए सुरक्षा नियमों को तक पर रखा गया है| और इनके प्लेन की दुर्घटना की खबरें आने लग गई हैं|एयर इंडिया के साथ +इंडिगो+स्पाईस जेट +जेट एयरवेज के जहाज़ों के एक्सीडेंट की खबरें प्रकाशित हुई हैं|
[२]केंद्र सरकार के ऍफ़ डी आई सम्बन्धी एक ड्रीम प्रोजेक्ट के अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे हैं|इसके कुछ और कारण भी हो सकते हैं मगर फिलहाल तो फ्यूल कास्ट में बढोत्तरी को ही इंगित किया जा रहा है|
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