केंद्रीय सूचना आयोग ने ६ मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को भी आरटीआई एक्ट के दायरे में ला दिया है|यह एक एतिहासिक निर्णय बताया जा रहा हैलेकिन कुछ राजनितिक दलों को एतराज भी है|
आयोग के अध्यक्ष मुख्य सूचना आयुक्त सत्येंद्र मिश्रा की पूर्ण बेंच ने कांग्रेस+ भाजपा+माकपा+ भाकपा+ एनसीपी+ +बसपा को आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाओं का जवाब देने का निर्देश दिया है और कहा है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण आरटीआई एक्ट के दायरे में हैं|
इस फैसले के बाद तमाम राजनीतिक दलों का पर्दे के पीछे होने वाला चंदे का खेल गड़बड़ा सकता है। उन्हें आरटीआइ कानून के तहत सार्वजनिक संस्थाएं माना जाएगा। राजनीतिक दल इसे हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। दलों का मानना है कि चुनाव आयोग को सारी जानकारी दी जाती है और केंद्रीय सूचना आयोगको भी मुहैय्या कारवाई जा सकती है लेकिन आम जनता के साथ इसे शेयर करने को तैयार नही दिख रहे| मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्र+ सूचना आयुक्त अन्नपूर्णा दीक्षित+ सूचना आयुक्त एमएल शर्मा की पीठ ने सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद और राजनीतिक दलों की लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका के मध्यनजर इन्हें आरटीआइ कानून की धारा 2[H] में सार्वजनिक संस्थाएं करार दिया है।
आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल +अनिल बैरवाल की याचिका के फलस्वरूप यह निर्णय आया है| याचकों ने दलों के कोष +उन्हें मिले चंदे+ चंदा देने वालों के नाम + पते उजागर करने को कहा था |जिसे दलों द्वरा स्वीकार नहीं किया गया था |सीआइसी[ CIC ] ने यह माना है किमान्यता प्राप्त इन ६ राजनितिक दलों को केंद्र से मदद मिलती है|
आरटीआइ के दायरे में आने के पश्चात प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि चुनाव आयोग और सूचना आयोग को आपस में तय करना है कि राजनीतिक पार्टियां किसके प्रति जवाबदेह होंगी।
नकवी ने कहा, हर राजनीतिक दल अपनी सारी जानकारी पहले से चुनाव आयोग को देता रहा है और कोई भी व्यक्ति आरटीआइ के तहत उससे यह जानकारी ले सकता है लेफ्ट ने इस पर अपनी नाखुशी साफ जता दी है, जबकि कांग्रेस ने फैसला देखने के बाद ही प्रतिक्रिया देने की बात कहकर चुप्पी साध ली है।
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