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हेमलेट की भूमिका निभाने वाले पहले पी एम् हमेशा स्वयम को जूलियस सीज़र ही बताते रहे: सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृष्ण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में पुस्तकों के माध्यम से अपने पुराने [अब दिवंगत हो चुके] साथियों के यौगदान को याद किया और कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की है| प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से:
6 जुलाई को पूरे देश में डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी की जयंती मनाई गई।उस शाम मैंने राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में एक पुस्तक: ”जम्मू-कश्मीर की अनकही कहानी” का लोकार्पण किया।
मेरे जैसे लाखों पार्टी कार्यकर्ता सही ही गर्व करते हैं कि हम एक ऐसी पार्टी से जुड़े हैं जिसका पहला राष्ट्रीय आंदोलन राष्ट्रीय एकता के मुद्दे पर हुआ और राष्ट्रीय एकात्मता के लिए ही हमारी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। लेकिन हममें से अनेक को यह शायद जानकारी न हो कि हमने जो देशव्यापी संघर्ष शुरु किया था, वह जम्मू-कश्मीर में जनसंघ के 1951 में जन्म से पूर्व ही एक

क्षेत्रीय पार्टी-प्रजा परिषद

ने शुरु किया था जिसका नेतृत्व पण्डित प्रेमनाथ डोगरा के हाथों में था। प्रजा परिषद के संघर्ष और त्याग की अनकही कहानी को देश के सामने लाने के लेखक के निर्णय की मैं प्रशंसा करता हूं।
यह उल्लेखनीय है कि डा. मुकर्जी के बलिदान के बाद, प्रजा परिषद ने जनसंघ में विलय का फैसला किया। कुछ समय बाद, पण्डित डोगरा जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
सात जुलाई को दिल्ली के केशवपुरम में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री डा. साहिब सिंह वर्मा की छठी पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में मैंने दिवगंत नेता की प्रतिमा का अनावरण किया और उनकी पुत्री रचना सिंधु द्वारा उनके जीवन तथा उपलब्धियों पर लिखी गई पुस्तक का लोकार्पण किया। देश में दिल्ली पहला स्थान है जहां जनसंघ ने अपनी प्रारम्भिक जड़ें जमाई। लेकिन इससे पार्टी की एक असंतुलित छवि भी बनी कि यह प्रमुख रुप से एक शहरी पार्टी है। इस छवि को सुधारने का श्रेय साहिब सिंहजी को जाता है, साथ ही ग्रामीण दिल्ली के विकास और कल्याण हेतु सुविचारित योगदान का श्रेय भी उनके मुख्यमंत्रित्व काल को जाता है। उनके पुत्र प्रवेश वर्मा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अच्छी संख्या में लोग आए थे। इसमें साहिब सिंह की खूब प्रशंसा हुई, अनेक वक्ताओं ने उन्हें ‘न केवल व्यक्ति अपितु एक संस्थान‘ के रुप में निरुपित किया।
दो दिन पूर्व 12 जुलाई को एक

प्रमुख पत्रकार पी.पी. बालाचन्द्रन की पुस्तक ”ए व्यू फ्राम दि रायसीना हिल”

का मैंने लोकार्पण किया। इस मास के पहले पखवाड़े में यह तीसरी पुस्तक भी जिसे मैंने लोकर्पित किया।
पुस्तक विमोचन के कार्यक्रमों में, मैं अक्सर 1975-77 के आपातकाल में बंगलौर सेंट्रल जेल में अपने बंदी होने का स्मरण कराता हूं। उन बंदी दिनों में एक शब्द ऐसा था जो हम सब साथियों को राहत और आनन्द देता था, और वह शब्द था ‘रिलीज‘। तब से, जब भी कोई मेरे पास पुस्तक को ‘रिलीज‘ करने का अनुरोध लेकर आता है तो मैं शायद ही उसे मना कर पाता हूं।
लेखक का नाम ‘बाला‘ लोकप्रिय है जो स्वयं के परिचय में अपने को ‘एक अनिच्छुक लेखक‘ वर्णित करते हैं, ने मुझे हाल ही में अमेरिकी फिल्म निर्माता मीरा नायर द्वारा निर्मित फिल्म का स्मरण करा दिया। फिल्म पाकिस्तान के मोहसिन हमीद द्वारा लिखित पुस्तक ”दि रिलक्टन्ट फण्डामेंटिलिस्ट” पर आधारित है। मीरा नायर की फिल्म की शीर्षक भी यही है और अनेक समीक्षाओं में इसे सराहा गया है। कनाडा के एक समाचार पत्र नेशनल पोस्ट में प्रकाशित समीक्षा की शुरुआती टिप्पणी इस प्रकार थी: ”ऐसा अक्सर ही होता है कि कोई फिल्म उस पुस्तक को सुधारे जिस पर वह आधारित है, लेकिन मीरा नायर की दि रिलक्टन्ट फण्डामंटिलिस्ट बिल्कुल यह करती है।”
इस समीक्षा में फिल्म का सारांश इस तरह दिया गया है: चंगेज नाम का एक पाकिस्तानी व्यक्ति अमेरिका आता है ताकि वॉल स्ट्रीट में अपना भाग्य बना सके, लेकिन 9/11 के बाद वह अहसास करने लगता है कि वह इसमें फिट नहीं बैठता।
बाला 40 वर्षों से पत्रकारिता में हैं, जैसेकि परिचय में उन्होंने अपने बारे में सही ही लिखा है: ”शायद मैं एकमात्र ऐसा पत्रकार हूं या उन कुछ में से एक हूं जिन्होंने समूचे मीडिया इन्द्रधनुष-समाचारपत्र, पत्रिकाएं, सवांद एजेंसी, रेडियो और टेलीविज़न, तथा वेब (वेबसाइट)- में एक भरोसेमंद स्टाफकर्मी तथा एक गैर भरोसेमंद स्वतंत्र पत्रकार के रुप में काम किया है। इसके अलावा दो पत्रिकाएं मैंने शुरु कीं और सम्पादित की। सत्तर के दशक के शुरुआत में एक व्यापार पत्रिका (यदि यह चलने दी गई होती तो भारत की पहली व्यापार पत्रिका होती) और दूसरी अप्रवासी भारतीयों के लिए एक पाक्षिक पत्रिका, जोकि अपने आप में पहली थी। दोनों वित्तीय पोषण के अभाव में शैशवास्था में ही दम तोड़ गर्इं।
एक विदेशी सवांददाता के रुप में बाला ने सबसे पहले हांगकांग से प्रकाशित साप्ताहिक एशियावीक के लिए काम किया, वह इस महत्वपूर्ण पत्रिका के भारत में पहले स्टाफ सवांददाता बने। बाला कहते हैं कि यह तीन साल तक चला। वह लिखते हैं: ”इसके बाद अनेक अन्य बड़े-बडे अतंरराष्ट्रीय प्रकाशन इस कड़ी जुड़े। उनमें थे रेडियो आस्ट्रेलिया] वांशिगटन पोस्ट, गल्फ न्यूज और रायटर साथ-साथ डेली मेल टूडे जैसे ब्रिटिश साप्ताहिक तथा यूएसए टुडे भी।”
पुस्तक के आवरण पर लेखक की अपनी टिप्पणी बहुत सटीक प्रतीत होती है। वह कहते हैं कि वह तभी लिखते हैं जब वह ‘द्रवित‘ हो उठते हैं, वह आगे लिखते हैं” अनुभव में मुझसे आधे लोग जब अलमारी के एकड़ के ज्यादा हिस्से पर छाए रहते हैं तब मैं केवल एक छोटा सा संग्रह कर पाया हूं जिसे ज्यादा से ज्यादा सम्पादकीय लेखन या निबन्ध वर्णित किया जा सकता है।”
परन्तु मैं इस पुस्तक के प्रकाशक से इस पर पूरी तरह सहमत हूं कि एक लेखक के बारे में निर्णय उसके कार्य के आकार के बजाय उसके लेखन की गुणवत्ता से करना चाहिए। मैं इस 163 पृष्ठीय पुस्तक को थोड़ा पढ़ पाया हूं। उनके द्वारा प्रकट किए गए सभी विचारों से मैं भले ही सहमत नहीं होऊं लेकिन जहां तक उनके लेखन की गुणवत्ता का सम्बन्ध है, मैं अवश्य कहूंगा कि यह शानदार है। अपने परिचय की शुरुआत में अपने बारे में लिखे गए उनके कुछ पैराग्राफ का नमूना यहां प्रस्तुत है। वह कहते हैं:
”लिखने का प्रत्येक प्रयास दिमाग पर धावा बोलना है; और प्रत्येक लेखक अपने निजी आंतरिक विचारों का लुटेरा है; विचारों को वह अपने दिमाग की गहराईयों से लाता है और दुनिया के सामने रखने से पहले उन्हें शब्दों और छवियों में पिरोता है।
निस्संदेह यह अत्यन्त दु:खदायी काम है जहां सारी पीड़ा सिर्फ लेखक की है।
कुछ इसे एक सीरियल किलर के रौब से करते हैं। अन्य इसे एक सजा के रुप में भुगतते हैं जिससे भागने में वे असफल रहे हैं। किसी भी रुप में, यह एक त्याग का काम है, आत्मा की शुध्दि का और इसलिए एक भाव विरेचक अनुभव है।
मैं शब्दों की दुनिया में पत्रकारिता के माध्यम से आया जो केवल लेखन के अलंकृत विश्व के साथ खुरदरा सम्बन्ध रखती है। मैं मानता हूं कि यद्यपि पत्रकारिता में मेरा प्रवेश कभी भविष्य में लेखक बनने की गुप्त इच्छा के बगैर नहीं था, तथापि मैं सोचता हूं कि पत्रकारिता एक ऐसा मार्ग था जो एक लेखक बनने की इच्छा हेतु मार्ग प्रशस्त करती है।
सौभाग्य से या अन्य कारण से प्रत्येक पत्रकार लेखक नहीं बनता। लेकिन जैसे प्रत्येक गणिका पत्नी नहीं बनती। सभी पत्रकार गणिकाएं हैं जो रानियां बनना चाहते हैं: लेकिन दहलीज इतनी चौड़ी है कि उनके यह बनने की प्रगति सदैव सुखद रुप से कम रहती है।”
***आज का ब्लॉग एक पुस्तक के बारे में है जिसे दो दिन पूर्व मैंने विमोचित किया था और जिसके शीर्षक में मैंने लिखा था – ‘अत्यन्त सुंदर ढंग से लिखी गई।‘ लेकिन ब्लॉग अभी तक सिर्फ लेखक के बारे में बोलता है। मैं अपने पाठकों को पुस्तक की सामग्री की एक झलक भी देना चाहता हूं। ब्लॉग के इस हिस्से में मैं पुस्तक से मात्र एक उध्दरण देना चाहता हूं जो हमें बताता है कि कैसे बाला रायसीना हिल की अपनी विशिष्ट स्थिति से भारत के पहले प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी को देखते हैं, साथ ही भ्रष्टाचार और परमाणु शक्ति को भी।
पहला उध्दरण शीर्षक ”अवर ट्रायस्ट विद् नेहरूस लैम्प पोस्ट” वाले अध्याय से है। यह कहता है:
पण्डित नेहरू अनेक लोगों के लिए बहुत कुछ थे। वह एक प्रतिभाशाली बैरिस्टर थे जो एक मंहगे वकील बन सकते थे यदि उन्हें पहला पाठ गांधी से न मिला होता तो।
वह संसद में भ्रष्ट न्यायाधीशों या प्रधानमंत्रियों के हत्यारों या उनका भी जिन्होंने करेन्सी नोटो से भरे संदूकों को प्रधानमंत्री को रिश्वत दी थी का बचाव कर रहे होते।
वह एक स्वप्नदर्शी थे जो तब तक नींद में थे जब तक उनके अच्छे दोस्त चाऊ एन लाई ने उन्हें जगा नहीं दिया, भले ही भौण्डे ढंग से क्यों न हो।
और, निस्संदेह वह एक शानदार कलाकार थे जो अपने जीवन भर हेमलेट की भूमिका निभाते रहे और तब भी आभास देते रहे कि वह तो जूलियस सीज़र की भूमिका निभा रहे हैं।
लेकिन इस अधिकांश, और जिसे किसी माप में मापा न जा सके, तो वह हमारे महानतम और सर्वाधिक सफल मध्यस्थ थे, जिन्होंने हमारे लिए बहुप्रतीक्षित हमारी अपनी नियति से हमारा मिलन कराया:
हालांकि हमारी नियति से मिलन तय करते समय, इसे देश के निर्माता नेहरू ने देशभर में कुछ लैम्प पोस्ट खड़े करवाए – हमें बिजली देने के लिए नहीं अपितु भ्रष्टों, कालाबाजारियों और हवाला व्यापारियों को लटकाने के लिए:
उन्हें लटका दो, यदि उन्हें हम खोज सकें। क्योंकि नेहरू सोचते थे कि यह घास के ढेर में सुई ढूंढने जैसा काम होगा, इतना कठिन और इतना अविश्वसनीय। क्योंकि वह सोचते थे कि एक स्वतंत्रता के लिए इतना कड़ा संघर्ष किया गया और इतनी मुश्किल से जीता गया, को इतनी आसानी से नष्ट या बेरंग नहीं किया जा सकता और वह भी उन लोगों द्वारा जिन्होंने इसे बनाया है।
और मात्र 50 वर्षों में इस घास के ढेर की कायापलट होकर यह एक खरपतवार की तरह से आकार और क्रूरता में बढ़ा है, जोकि राष्ट्र की भावना और संवेदनाओं पर प्रहार कर रहा है। 50 वर्षों में, लैम्प पोस्ट एक प्रकार से बदल गई प्रतीत होती हैं उन्हीं राजनीतिज्ञों द्वारा परिवर्तित कर दिया गया है जो इन पर लटकाए जाने वाले थे।
पचास वर्ष पश्चात् अब, जब हम अपने भविष्य से प्रथम महान अर्ध्दरात्रि की मुलाकात का समारोह कर रहे हैं, तब मैं नेहरू को ही उदृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं लेकिन अलग संदर्भ में और किसी अन्य के संदर्भ में – उन अंग्रेजों के बारे में जिन्हें स्वयं नेहरू ने अपने अनोखे अंदाज में स्वतंत्रता के सुदर फूल के रूप में पुकारते थे।
नेहरू ने एक एक ऐसी ही अवसर पर कहा था ”मैं जानता हूं कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य क्यों नहीं कभी अस्त होता, क्योंकि ईश्वर अंधेरे में किसी अंग्रेज पर कभी भरोसा नहीं करता।” यह एक निष्कपट विचार है: क्या हमने किसी पर इतना ज्यादा विश्वास नहीं किया जब हम उस अर्ध्दरात्रि की मुलाकात हेतु गए? शायद, हमें यह मुलाकात एक लैम्प पोस्ट के नीचे करनी चाहिए थी जिस पर प्रकाश आ रहा होता।
भारत के एक परमाणु शक्ति बनने पर बाला का टिप्पणियां समान रुप से महत्वपूर्ण हैं, इस लेख का उपशीर्षक है: ”जब वृहत्काय जगा: भारत एक परमाणु शक्ति के रुप में” (When a Giant Wakes up: India as a Nuclear Power)। इसमें लेखक कहते हैं:
अमेरिका के 1500 या रुस के 700 अथवा चीन के 45 विस्फोटों की तुलना में भारत के पांच परमाणु विस्फोटों से आखिर दुनिया में भूकम्प और कूटनीतिक रेडियोधर्मिता पैदा क्यों होनी चाहिए। संभवतया, इसका उत्तर तथाकथित महाशक्तियों के पूर्वाग्रह और भेदभाव वाली मानसिकता में ज्यादा न होकर हमारे अपने सभ्यतागत डीएनए और हमारे लोगों तथा उनके नेताओं-राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि धार्मिक-की वंशगत भीरुता में है।
हिन्दूइज्म को एक पराजयवादी या एक शांतिवादी जीवन जीने के रुप में गलत परिभाषित करने ने हमारे राष्ट्र-राज्य को स्वयं हिन्दुइज्म की तुलना में ज्यादा नुक्सान पहुंचाया है।
यह अपने आप में साफ करता है कि क्यों पूरी दुनियाभर में थरथराने वाले भूकम्प आया जब यह राष्ट्र, जिसे सदियों से सुस्त शरीर और कमजोर भावना मानकर चला जाता है, जब खड़े होने और अपने जीवन तथा सम्पत्ति का रक्षक बनने का निर्णय किया-जैसाकि 1974 में भारत के पहले परमाणु विस्फोट के समय हुआ।
जब श्रीमती गांधी ने यह निर्णय किया तब वह परमाणु हथियारों और दुनिया पर प्रभुत्व रखने वाले, माने जाने वाले कुछ राष्ट्रों के विरुध्द मात्र खड़ी नहीं हुई थीं। उनकी कोशिश, देश की शांतिवादी परम्परा में व्यवहारगत परिवर्तन लाने की एक बहादुरी वाला प्रयास था। दुर्भाग्य से, यद्यपि 24 वर्ष पूर्व उनका पोखरण विस्फोट कोई ठोस व्यवहारगत परिवर्तन नहीं ला पाया, क्योंकि मुख्य रुप से वह स्वयं, चुनौतियां का सामना करने हेतु राष्ट्र की अन्तर्निहित शक्ति के बारे में अनभिज्ञ थीं।
यह तथ्य कि श्रीमती गांधी का आग्रह कि 1974 का परीक्षण एक शांतिपूर्ण विस्फोट था न कि एक बम-सिर्फ दर्शाता हे कि यह ठोस आधार के अभाव में मात्र एक दिखावा था।
बाद के 24 वर्ष, पहले पोखरण विस्फोट को एक पुरातत्व संग्रह में रखने वाले; और ‘नेक‘ माफ कर देने वाले हिन्दुओं की भांति, हम हमारे राष्ट्र के अतीत के स्वयं के क्षूद्र और बचे-खुचे अवशेष की तरह बने रहे।
जब मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने किया वह हमें इस पराजित मानसिकता वाली नींद से झकझोर और हमारे राष्ट्रीय गौरव का पुन: दृढ़ता से घोष था। स्वाभाविक रुप से परमाणु मोर्चेबंदी वाले खुश नहीं हुए।
निस्संदेह, सभी एक अच्छे व्यक्ति को पसंद करते हैं लेकिन सभी दृढ़ व्यक्ति का सम्मान करते हैं। अभी भी सभी एक अच्छे ओर दृढ़ व्यक्ति को प्रेम ओर सम्मान करते हैं। एक नेक बृहकाय बच्चों के हीरो का रोमांटिक विचार होने के साथ-साथ व्यस्कों की दुनिया का भी सपना है।
चौबीस वर्ष पश्चात्, अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे एक असली हथियार के रुप में बदल दिया है जो राष्ट्र की रक्षा सभी शत्रुओं-चाहें वे असली हों थी माने जाने वाले-से करेगा। बिल क्लिंटन और नवाज शरीफ ने इसे पसंद नहीं किया।
वाजपेयी इन सज्जनों को खुश करने के लिए ‘नेक‘ इंसान बन सकते थे। लेकिन यह एक तथ्य है कि एक नेक इंसान को अक्सर भू-राजनीति की झुलसाने वाली वास्तविकताओं से सामना करना पड़ता है। और वाजपेयी इसे उसी तरह से समझते थे जैसाकि उनकी स्थिति वाले व्यक्ति को पता है, यदि आज भी इस्राइल जिंदा है तो एक यहूदी राष्ट्र होने के नाते, जिसने शुरु से ही एक ‘नेक इंसान‘ न बनने का फैसला किया।

भाजपा ने कांग्रेस के विकास के दावों को झूठ की झल्लेबाजी की नाकाम गूँज बताया

भाजपा ने आज कांग्रेस के विकास के दावों को कांग्रेसी झूठ की झल्लेबाजी की नाकाम गूँज बताया है|
भारतीय जनता पार्टी[भाजपा]के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कांग्रेस झूठ के झाड से झल्ले बाजी कर रही है|इससे उसकी चौतरफा नाकामी की गूँज हलकी नही पड़ सकती|
श्री नकवी ने रामपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार की सहयोगी समाज वादी और बहुजन समाज वादी पार्टियों से भी जवाब माँगा कि बीते साड़े नों साल में देश में भ्रष्टाचार+महंगाई+बेरोजगारी+कैसे बडी|देश की अर्थ व्यवस्था कैसे बिगड़ी +आन्तरिक सुरक्षा +राष्ट्रीय सुरक्षा की परेशानी कैसे बड़ी |उन्होंने कहा कि कांग्रेस इन मुद्दों का जवाब देने से बचने के लिए देश को अपनी चतुराई के चक्रव्यूह में फंसा कर लोगों को गुमराह करने में लगी हुई है|
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी नरेन्द्र मोदी के भाषण के एक शब्द को चुन कर साजिशन अपनी सुविधानुसार उसमे कन्फ्यूजन का डिसट्रेकटिव मसाला डाल कर परोसने में लगी है|यहाँ तक कि धर्म निरपेक्ष और साम्प्रदाइक्ता के घिसे पिटे और बासी हो चुके फार्मूले को कांग्रेस अपनी नाकामी नगाड़ा बनाना चाहती है| उन्होंने कहा कि कांग्रेस कागज़ कि नाव से करप्शन के जहाज में फंसे लोगों को बचाना चाह रही है|भाजापा शासन कल में महंगाई ३% थी तो अब यह १३% से भी ऊपर आ गई है|इसके लिए सरकार की नीतियाँ जिम्मेदार हैं

जिस दिन बुर्के से बाहर आकर राजनीती शुरू हो जायेगी,उसी समय हसाडा देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाणा है


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

एक दुखी मुस्लिम मौलवी

ओये झल्लेया ये पोलिटिशियंस को क्या हो गया है ?सारे के सारे हमारे मजहब में आत्मसम्मान के प्रतीक बुर्के[ Veil ] के पीछे पड़ गए हैं पहले भाजपाई नरेन्द्र मोदी ने पुणे के फ‌र्ग्यूसन कॉलेज से दिल्ली की कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता का बुर्का पहनाया| अब अजय माकन ने वोह बुर्का तो पहन लिया और उसे साम्प्रदाईक्ता से बेहतर भी बताया |भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कांग्रेसी सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी को को बुर्के के लायक बताने में कोई देर नही लगाई |ओये अगर इन्हें एक दूसरे को नीचे दिखाना है तो अपने मजहब के चुन्नी+ओढ़नी +दुपट्टा+पर्दा+घूंघट को यूज करना चाहिए |

झल्ला

भाई मियाँ जिस दिन ये लोग बुर्के से बाहर आकर राजनीती करने लगेंगे उसी समय से हसाडा देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाणा है|

भाजपा ने रायबरेली में खुलने वाली महिला यूनिवर्सिटी को लेकर कांग्रेस को इतिहास पढ़ाया और महाराष्ट्रियन भावनाओं को भी उकसाया

भाजपा ने आज राय बरेली में खुलने वाली महिला यूनिवर्सिटी को लेकर कांग्रेस को महिला शिक्षा का इतिहास पढ़ाया +महाराष्ट्रीय भावनाओं को उकसाया | भाजापा ने बताया कि श्री मति सोनिया गाँधी के संसदीय छेत्र राय बरेली में ५०० करोड़ रुपयों की लागत से पूर्व प्रधानमंत्री श्री मति इंदिरा गांधी के नाम पर खुलने वाला महिला विश्वविद्यालय पहला महिला विश्वविद्यालय नहीं है बल्कि पुणे की एसएनडीटी[SNDT] यूनिवर्सिटी है | इसे भारत रत्न डॉ केशव डी कर्वे ने १९१६ में दी इंडियन वुमन यूनिवर्सिटी के नाम से स्थापित किया था| यहाँ के वार्षिकोत्सव में महात्मा गाँधी ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई थी| इसके पश्चात डॉ राधा कृष्णन +डॉ शंकर दयाल शर्मा+पंडित जवाहर लाल नेहरू+ श्री मति इंदिरा गाँधी आदि जैसी विभूतियों द्वारा यहाँ के अनेकों महत्वपूर्ण फंक्शन अटैंड किये गए हैं|
पूर्व केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री नाइक ने कहा कि सरकार की यह घोषणा भारत में शैक्षणिक इतिहास के बारे में उसकी अज्ञानता को दर्शाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए अपने संसदीय छेत्र में यह यूनिवर्सिटी खोली जा रही है और इसे पहली महिला यूनिवर्सिटी कहा जा रहा है|
भाजपा के राम नाईक ने इस अवसर पर महाराष्ट्र के भारी भरकम नेता केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को भी उलाहना देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के ये नेता भी दिल्ली की सत्ता सुख में अपने छेत्र के सुनहरे इतिहास को भी भुला चुके हैं|
श्री नाईक ने बताया कि पुणे की पहली महिला यूनिवर्सिटी से महिलाओं का सशक्तिकरण शुरू हो गया था|चूंकि श्री मति इंदिरा गाँधी के नाम पर अनेको संस्थाएं हैं इसीलिए राय बरेली में खुलने वाली यूनिवर्सिटी को श्री मति सावित्री बाई फुले ,भागिनी निवेदिता,डॉ अन्दिता जोशी, श्रीमती रमाबाई रानाडे जैसी महिलाओं के नाम दिए जाने चाहिए| इन्होने भी महिला सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है |
गौर तलब है कि गुरुवार को केंद्र सरकार ने रायबरेली में दो विश्वविद्यालयों को खोलने की मंजूरी दी थी। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर एक महिला विश्वविद्यालय है इसे पहला महिला विश्व विद्यालय बताया गया है| ।
राम नाईक भाजपा के वरिस्थ नेता हैं और भाजपा नीत एन डी ऐ की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे हैं लेकिन फ़िल्मी एक्टर गोविंदा ने कांग्रेस के टिकट पर इन्हें हराया था |

भाजपा ने देश में वर्तमान आर्थिक संकट के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया

भाजपा ने वर्तमान आर्थिक संकट के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है|राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री मति मीनाक्षी लेखी ने पार्टी के सामान्य ब्रीफिंग में कहा कि एशिया में भारतीय रुपये की हालत ज्यादा खस्ता है|३१ मई के पश्चात ५.३% कमजोर हो गया है
आज यह डॉलर के मुकाबिले ६०/= तक गिर चुका है अब इसके ७०/= तक गिरने की संभावना बनी हुई है|
विक दर ५% के रिकार्ड निचले स्तर पर आ पहुंची है|३१ मार्च को समाप्त वर्ष में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जी.डी पी ४.८% .पर पहुँच गई|इसी कुशासन के कारन मणि शंकर ऐय्यर जैसे मंत्री को में, पंचायत राज के लिए ,नार्वे जैसेदेश के युवराज हाकोन से भिक्षा मांगनी पडी \
करीब दस वर्षों में लगातार बढती कीमतें+मुद्रा स्फूर्ति+भ्रष्टाचार+अराजकता+साम्प्रदाईक नफरत आदि से कांग्रेस का चेहरा देश के सामने आ गया है|कांग्रेस पार्टी की झूठा प्रचार करने की मशीनरी के दिन लद चुके हैं |

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर भाजपा ने चिंता व्यक्त की

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के दिनों दिन बिगड़ने पर कांग्रेस के पश्चात अब भाजपा ने भी चिंता व्यक्त की |भाजपा प्रवक्ता, टेक्नोक्रेट, डॉ सुधांशू त्रिवेदी ने पार्टी की सामान्य ब्रीफिंग में समाज वादी पार्टी की यूं पी में सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कानून व्यवस्था की समस्या नैसर्गिक रूप से सपा के साथ जुड़ी रहती है लेकिन इस बार तो सभी उम्मीदें ध्वस्त हो चुकी हैं| गुना और बलिया के विधायक से लेकर मंत्री आज़म खान +शिव पाल यादव+ और यहाँ तक कि पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं |
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि बी एस पी के भ्रष्टाचार से त्रस्त उत्तर प्रदेश की जनता ने सपा को सत्ता सौंपी थी लेकिन मात्र डेड़ वर्षों में ही व्यवस्था बद से बत्तर हो गई है | युवा मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की सरकार से उम्मीदें समाप्त हो गई हैं| उन्होंने आरोप लगाया कि सरकर के छह शक्ति केंद्र बने हुए हैं |शिव पाल यादव कहते हैं कि थानों पर समाज वादियों का कब्जा है|आज़म खान कहते हैं कि उन्होंने ऍफ़ आई आर दर्ज़ कराई और दूसरों ने पैसे देकर उनकी ऍफ़ आई आर को कही रफा दफा करवा लिया|पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह कहते हैं कि यदि में सत्ता में होता तो तत्काल सभी कुछ ठीक कर लेता|
डॉ सुधांशू त्रिवेदी ने कहा कि चूंकि सपा केंद्र में कांग्रेस की सरकर को सहयोग दे रही है ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस भी सपा को सपोर्ट करने को बाध्य है ऐसे में इन दोनों पार्टियों से कोई उम्मीद नही है इसीलिए लोक सभा के चुनावों में दोनों को उखाड़ फैंकना जरुरी है |इससे पूर्व कांग्रेस कि नेत्री रीता बहुगुणा जोशी भी यह ओपचारिकता निभा चुकी हैं

दागियों को संसद से दूर रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसले का आम आदमी पार्टी ने स्वागत किया

दागियों को संसद से दूर रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दागी शब्द की व्याख्या कर दी है इस एतिहासिक फैसले का आम आदमी पार्टी[आप] ने स्वागत किया और मांग की है कि जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है. उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाई जानी चाहिए| गौरतलब है कि कांग्रेस के 44, भाजपा के 43, समाजवादी पार्टी के नौ, बहुजन समाजवादी पार्टी के छह, जेडीयू के आठ और सीपीएम के तीन सांसद हैं. ऐसा ही हाल राज्यसभा में देखा जा रहा है. 41 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से 16 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
राजनीति को साफ करने के सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले को आप पार्टी ऐतिहासिक मानती है और इसका स्वागत करती है. पार्टी का मानना है कि इस फैसले से अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को राजनीति से दूर रखने में काफी मदद मिलेगी.
आप पार्टी पहले से ही यह कहती आई है कि जब तक अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के लिए संसद और विधानसभाओं के रास्ते बंद नहीं किए जाते, सही मायने में लोकतंत्र स्थापित नहीं होगा. पार्टी का मानना है कि न सिर्फ सजायफ्ता, बल्कि ऐसे लोगों के भी चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए, जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.
अदालत ने “दागी” शब्द की फिर से व्याख्या करते हुए ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है जिनको किसी भी अदालत से दो साल की सजा हुई हो और उन्होंने उस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालतों में अर्जी लगा रखी हो. जनप्रतिनिधित्व कानून ऐसे सजायाफ्ता लोगों को भी चुनाव लड़ने का अधिकार देता है जिन्होंने कोर्ट के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालतों में अर्जी लगा रखी हो और जिसपर सुनवाई चल रही हो.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राजनीति को साफ करने की आम आदमी पार्टी की मुहिम को मदद मिलेगी. पार्टी आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. पार्टी का वादा है कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया जाएगा जिसे किसी अदालत से सजा हुई हो या जिसके खिलाफ किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट भी दाखिल हुई हो.
एडीआर की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा में फिलहाल करीब एक तिहाई (161 सांसदों के) सांसदों के ऊपर आपराधिक मामले चल रहे हैं. उनमें से 78 यानी 15 प्रतिशत लोगों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.
दागी लोगों को संसद तक पहुंचाने में सभी पार्टियों ने भरपूर रुचि दिखाई है. इन 161 दागी सांसदों की सूची में कांग्रेस के 44, भाजपा के 43, समाजवादी पार्टी के नौ, बहुजन समाजवादी पार्टी के छह, जेडीयू के आठ और सीपीएम के तीन सांसद हैं. ऐसा ही हाल राज्यसभा में देखा जा रहा है. 41 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से 16 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली विधानसभा में भी आपराधिक छवि के लोगों की भरमार है. दिल्ली के 70 विधायकों में से 32 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से आठ के खिलाफ तो गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेस की नई पीढ़ी ने अपने पूवजों की परम्परा त्याग कर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रधांजली सभा का बहिष्कार किया

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित पारंपरिक श्रधांजली सभा का सत्ता रुड कांग्रेस द्वारा बहिष्कार किये जाने पर भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण आडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग में नाराजगी प्रकट की है और इस बहिष्कार को कांग्रेस की स्वाभाविक पूर्वाग्रह ग्रसित सोच बताया |प्रस्तुत है सीधे एक के अडवाणी के ब्लॉग से :
6 जुलाई, हमारी पार्टी जो अब भारतीय जनता पार्टी के रुप में सक्रिय है, के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी की जयंती है। यह ब्लॉग कल जारी होना है।
मैंने स्मरण दिलाया था कि कैसे 1953 की 23 जून को कानपुर में सम्पन्न भारतीय जनसंघ के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन में डा. मुकर्जी ने, देश के सभी भागों से आए जनसंघ के प्रतिनिधियों को जम्मू एवं कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के बारे में अपने आव्हान से प्रेरित किया था। आखिर क्यों इस प्रदेश की स्थिति उन अन्य 563 देसी रियासतों से अलग होनी चाहिए जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पूरी तरह से एकीकरण करना स्वीकार किया।
जनसंघ के सम्मेलन ने जम्मू एवं कश्मीर सरकार द्वारा लागू किए गए परमिट सिस्टम के विरुध्द एक आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। डा. मुकर्जी ने घोषणा की कि वे इस सिस्टम की अवज्ञा करने वाले पहले नागरिक होंगे और बगैर परमिट के प्रदेश में प्रवेश करेंगे। उनको बंदी बनाया जाना और तत्पश्चात् उनका बलिदान अब इतिहास का अंग है।
जैसाकि मैंने एक अन्य ब्लॉग में उल्लेखित किया था कि कांग्रेस संसदीय दल ने भी गोपालास्वामी आयंगर को यही बात कही थी, जिन्हें पण्डित नेहरु ने अपनी अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को संविधान सभा में प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
सन् 1947 से संसद में यह सुदृढ़ परम्परा रही है कि जिन नेताओं के चित्र सेंट्रल हॉल में लगाए गए हैं, उनके जयंती पर उन्हें फूलों से श्रध्दांजलि देने हेतु सभी सांसदों को निमंत्रित किया जाता है।
आज सुबह भी दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष – श्रीमती सुषमा स्वराज और श्री अरुण जेटली सहित बड़ी संख्या में सांसद सेंट्रल हॉल में उपस्थित थे। परन्तु सबसे ज्यादा मुझे यह अखरा कि न तो कोई कांग्रेसी सांसद और नही कोई मंत्री वहां उपस्थित था। मैं जानता हूं कि कुछ वर्ष पूर्व वीर सावरकर, के चित्र अनावरण कार्यक्रम, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया था, का कांग्रेस पार्टी ने बहिष्कार का औपचारिक निर्णय किया और उसके पश्चात् से वह उनके जन्म दिवस के कार्यक्रम से दूर ही रहते हैं। आज कांग्रेसजनों की अनुपस्थिति जानबूझकर लिया गया निर्णय नहीं लगता। चाहे यह अनजाने में हुआ हो, मगर यह स्वाभाविक पूर्वाग्रह ग्रसित सोच को प्रकट करता है।
यहां पर मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि श्री ज्योति बसु के नेतृत्व वाली माक्र्सवादी सरकार ने कोलकाता के मैदान में डा. श्यामा प्रसाद की शानदार प्रतिमा लगाने का निर्णय किया था। मैंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमणन से इसके अनावरण का अनुरोध किया। वह सहर्ष तैयार हुए और समारोह की गरिमा बढ़ाई।
आज यह सब मैंने वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व को स्मरण कराने के लिए उल्लेख किया है कि देश संभवतया यह निष्कर्ष निकालने को बाध्य होगा कि जहां तक कांग्रेस पार्टी का सम्बन्ध है, उसकी नई पीढ़ी अपने ही पूवजों की परम्परा से दूर हो रही!

भाजपा ने रेल काण्ड और इशरत जहाँ एन्काउन्टर में दो ब्यान जारी करके सी बी आई को कांग्रेस का खिलौना बताया

गुजरात में इशरत जहाँ के एन्काउन्टर को लेकर सी बी आई द्वारा दायर की गई चार्ज शीट से बौखलाई भाजपा ने बुधवार को रेल कांड में पूर्व रेल मंत्री को क्लीन चिट दिए जाने पर भी एतराज किया |भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने अलग अलग ब्यान जारी करके एक तरफ तो सी बी आई की गुजरात एन्काउन्टर पर दाखिल चार्ज शीट को राजनीती से प्रेरित बताया और इसके साथ ही सी बी आई द्वारा पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल को क्लीन चिट दिए जाने पर पी एम् की भूमिका पर भी सवाल उठाया|

सांसद एम् वेंकैय्या नायडू [ M. Venkaiah Naidu, ]

ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इशरत जहाँ को लेकर गन्दी राजनीती कर रही है और देश कि सुराक्षा के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है| उन्होंने कोल गेट + सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और बसपा की नेत्री माया वती को लेकर सी बी आई के बार बार बदलते स्टैंड को लेकर सी बी आई की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगाया|
सांसद नायडू ने कहा कि एलेक्शन माहौल गरमा रहा है ऐसे में भाजपा को बदनाम करने और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण के लिए ही सी बी आई का प्रयोग किया जा रहा है|
इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ.बिजय सोनकर शास्त्री[DrVijaySonkarShastri ]ने एक अलग प्रेस कांफ्रेंस करके रेल कांड में सी बी आई को निशाना बनाया|डॉ शास्त्री ने कहा कि सी बी आई पी एम् के हाथों खिलौना बन कर रह गई है| पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल को सी बी आई ने जिस प्रकार हड़बड़ी में क्लीन चिट दी है उससे लगता है कि कोल् गेट की तरह ही पी एम् को बचाने के लिए पवन बंसल को कील चिट दी गई है| उन्होंने आरोप लगाया कि रेल कांड में भी पी एम् की भूमिका पर पर्दा डालने के लिए पवन बंसल को क्लीन चिट दी गई है|

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राजनेता आज कल अपनी पार्टी की वेब साईट के बजाय विदेशी[ट्विटर] साइट्स पर राजनीति कर रहे हैं

sushma swaaraj
[1]Those who cannot govern in crisis do not deserve to be in the Government even for a day.==हिंदी में कहा जाये तो सुषमा स्वराज ने उत्तराखंड के मुख्य मंत्री से नाकामी के लिए इस्तीफा माँगा है|
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[2]What has your state Government done ? Nothing. The living are starving. The dead are being robbed. And you are patting your back.आपकी सरकार ने क्या किया है ?कुछ नहीं |लोग भूख से मर रहे हैं|लाशों के कफ़न तक चुराए जा रहे हैं|और आप लोगअपनी पीठ थपथपा रहे हैं|
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[3] Ajay Maken‏@ajaymaken
Instead of helping in relief works in U’khand, don’t try to use this calamity as a Political Opportunity! #NoPoliticsOverCalamity
45 retweet 6 FAVORITES उत्तराखंड में राहत कार्य में सहयोग करने के बजाय आपदा कोलेकर राजनीती कि जा रही है |आपदा पर पॉलिटिक्स नही होनी चाहिए
उत्तराखंड में आई प्राकृतिक विपदा में मारे गए लोगों की[१] चिताएं अभी ठंडी नहीं हुई
+[२]हज़ारों लापता लोगों के लिए तलाश भी शुरू नही हुई
[३]विपदा ग्रस्तों के पुनर्वास के लिए नीवं त़क नही रखी गई
दूसरे शब्दों में ये दर्द अभी कम नही हुआ कि राजनीतिको ने राजनीती करने के लिए सब्र का बाँध तोड़ ही दिया और शाब्दिक बम्ब बारी शुरू कर दी है| यह इनके डी एन ऐ की देन हो सकता है लेकिन इसके लिए नेताओं ने अपनी पार्टी की वेब साईट के बजाय ट्विटर जैसे सोशल साईट को मैदान बना लिया है|कांग्रेस और भाजपा की अपनी अपनी विशाल +आकर्षक +महंगी वेब साइट्स हैं और इन पर यदा कदा कुछ अप लोड किया जाता है लेकिन ज्यादा तर दूसरी प्राइवेट वेब साईट का ही इस्तेमाल किया जाता हैं |इससे एक संभावना पैदा होती है कि क्या इन वरिष्ठ नेताओं को अपनी बात कहने के लिए अपनी पार्टी की ही वेब साईट नही मिलती या फिर घर का जोगी जोगना और बाहर का जोगी सिद्ध वाली कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है|इस सबसे एक बात तो तय है कि पार्टीकी वेब साइट्स के बजाय दूसरों की वेब साइट्स में ही खाद पानी डाला जा रहा है|
इन ट्विट्स पर नजर डाली जाए तो भाजपा की लोक सभा में नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने दो ट्विट्स किये हैं और दोनों ट्विट्स में रीत्विट्स और फेवरेट की संख्या क्रमश २४९+१७९+और ११० +४९ ही हैं|इसके बाद कांग्रेस के नए बने संचार मंत्री अजय माकन के ट्विट पर यह संख्या ४५ और ६ है| सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के लिए मीडिया उपलब्ध रहता है इसीलिए उनके ट्विटर पेज पर ताला ही लगा रहता है|