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दशहरा मैदान में न रावण फुंका ना ही”हुड्डा”को विदाई ही दी गई फिर फरीदाबाद में आतिश बाजी क्यूँ हुई

झल्ले दी झल्लियां गल्लाँ

दुखी पटाखा व्यपारी

ओये झल्लेया हम तो बर्बाद हो गए इस दिवाली में हसाड़ा तो दिवाला निकल गया |पहले डॉ हर्षवर्धन ने साइलेंट दिवाली का देश निकाल कर लोगों को हमसे दूर किया फिर इन्ही की सरकार ने चीन के पटाखे के आयात पर प्रतिबन्ध लगा कर हसाडे छोटे से पेट पर ताला लगा दिया |अबकुदरत की मार देख |हमेशा से उपेक्षित हसाडे फरीदाबाद के दशहरा के खुले मैदान में लगाए गए पटाखों के बाजार में आग लग गई |इसने तो २५० व्यापारियों के नसीब पर भी लात मार दी| ओये हसाडे अच्छे दिन कब आएंगे ?

झल्ला

ओ मेरे भोलेसेठ जी बात तो दुःख की ही हैलेकिन ये तो आप भी मानोगे के मोदी के कट्टर समर्थक एम एल खट्टर की जीत में सब तरफ लड्डू+फुलझड़ियाँ फूट रही है और कांग्रेसी दबंग भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार से विदाई में पारम्परिक आतिश बाजी भी नहीं हो रही |झल्लेविचारानुसार दशहरा मैदान में तो रावण फुंकता ही है और जब रावण फुंकता है तो जबरदस्त आतिश बाजी भी होती ही है| लेकिन इस मैदान में न रावण फुंका+ना विदाई समारोह हुआ +फिर आतिश बाजी क्यूँ कर हुई |लगता है के डूबे हुए नेताओं ने इसमें भी सहारे का तिनका ढूंढ़ना शुरू कर देना है | इस तिनके को नष्ट करने के लिए अग्नि कांड के पीड़ितों को तत्काल न्याय दिया जाना अवश्यम्भावी है |अग्निकांड की जांच और पीड़ितों को मुआवजे की तत्काल घोषणा से मनोहर लाल खट्टर की सियासी माउस का सफर शुरू होना चाहिए|