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जाने माने लेखक+पत्रकार+इतिहास कार, ज़िंदा दिल सरदार खुशवंत सिंह नहीं रहे: वह 99 वर्ष के थे

जाने माने .लेखक+पत्रकार +इतिहास कार ज़िंदा दिल सरदार खुशवंत सिंह का आज निधन हो गया। वह 99 वर्ष के थे।पत्रकार के तौर पर खुशवंत सिंह ने ‘इलस्ट्रेटेड वीकली आफ इंडिया’ के आलावा अनेक पत्रिकाओं का संपादन किया|उनके निधन का समाचार सुन कर एक शोक कि लहर दौड़ गई है |
उप-राष्‍ट्रपति हामिद एम् अंसारी ने सरदार खुशवंत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि श्री खुशवंत सिंह का कई दशकों का लंबा, उत्‍कृष्‍ट और सफल साहित्‍यिक जीवन रहा है। इस दौरान उन्‍होंने राजनीति और कविता से लेकर सामाजिक चिंतन के विभिन्‍न मुद्दों पर साहित्‍य सृजन किया है। अपने लेखों और भाषणों में अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए वे हमेशा निर्भीक रहे। अपने शोक संदेश में उप-राष्‍ट्रपति ने शोक संतप्‍त परिवार, उनके मित्रों और प्रशंसकों को अपनी संवेदना व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्‍वर से यह प्रार्थना करता हूं कि वह आप सबको इस अपूरणीय क्षति को सहन करने का धैर्य और शक्ति प्रदान करे।
सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने खुशवंत सिंह के निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा , ‘’उत्कृष्ट इतिहासकार और स्पष्टवादी राजनीतिक टिप्पणीकार, श्री सिंह ने अपने विचारों को अपनी कलम की ताकत से व्यक्त किया। उन्होनें अपनी प्रत्येक रचना से साहित्य की दुनिया में नए मानक स्थापित किए जिनमें काल्पनिक कहानियां और गैर-काल्पनिक उत्कृष्ट साहित्य शामिल हैं। श्री सिंह को उनके नई सोच और अच्छी समझ के लिए हमेशा याद किया जाएगा जो उनकी लेखनी में दिखाई देता है। उनकी रचनाओँ ने इंटरनेट समकालीन डिजिटल सामग्री के युग में करोड़ों लोगों को पढ़ने का आनन्द प्रदान किया। उनके निधन से साहित्य जगत के एक युग का अंत हो गया है। ईश्वर शोक संतप्त परिवार के सदस्यों को इस नुकसान को बर्दाश्त करने का साहस प्रदान करें।

इस्लाम और हिंदुत्व एक दूसरे को सहयोग करने के लिए जरूर प्रयास करेंगे :एल के अडवाणी

भाजपा के वयोवृद्ध नेता और ब्लॉगर लाल कृषण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में चुनावों से ठीक पहले आर एस एस[RSS] की उदार साम्प्रदायिक सामंजस्यवादी छवि का उल्लेख किया है इसके लिए ब्लॉगर ने प्रसिद्द सरदार खुशवंत सिंह[Khushwant Singh] के ९९वे जन्म दिन पर उनके ही द्वारा लिया गया ४ दशक पूर्व एक साक्षात्कार [interview]का उल्लेख किया है | खुशवंत सिंह ने तत्कालीन आर एस एस चीफ एम् एस गोलवाकर[श्री गुरु जी] से यह साक्षात्कार लिया था |
अपने ब्लॉग के टेलपीस[TAIL PIECE]में ब्लॉगर अडवाणी ने बताया कि नवम्बर १९७२ के इलस्ट्रेटेड वीकली[ Illustrated Weekly] में छपे इस साक्षात्कार में वरिष्ठ एडिटर पत्रकार खुशवंत सिंह ने शुरुआत में ही लिखा था कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके विषय में जाने बगैर ही उनसे घ्रणा की जाती है उनमे सर्वप्रथम एम् एस गोलवाकर हैं |मुस्लिम MuslimIssues के प्रति विचार पूछे जाने पर आर एस एस चीफ गोलवाकर ने कहा बिना किसी शक के यह कह सकता हूँ कि मुस्लिम समाज भारत और पाकिस्तान के प्रति बंटी मुस्लिम सामज की निष्ठा[ Loyalty]
के लिए इतिहास उत्तरदाई है “I have not the slightest doubt that historical factors alone are responsible for the Divided Loyalty that Muslims have towards India and Pakistan. Moreover both Muslims and Hindus are equally to blame for this:और इसके लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों सामान रूप से जिम्मेदार हैं कुछ लोगों कि गलतियों के लिए पूरे समाज को दोषी मान लेनाउचित नहीं होगा|हमें मुस्लिम समाज के दिल को प्यार से जीतना होगाऔर मुझे आशाऔर विश्वास है कि इस्लाम और हिंदुत्व एक दूसरे को सहयोग करने के लिए जरूर प्रयास करेंगे

लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग ८५ वर्षीय [८ नवम्बर १९२७] लाल कृषण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में 98 नाट आउट खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक: और उनकी नवीनतम पुस्तक ‘खुशवंतनामा : दि लेसन्स ऑफ माई लाइफ‘ को विचारप्रेरक पुस्तक बताया है| प्रस्तुत है अडवाणी के ब्लाग से साभार उनके विचार उनके ही शब्दों में :
पिछले महीने मुझे ‘खुशवंतनामा : दि लेसन्स ऑफ माई लाइफ‘ की एक प्रति प्राप्त हुई। 188 पृष्ठों की इस पुस्तक को मैं लगभग एक बार में ही पढ़ गया। पुस्तक पढ़ने के पश्चात् मुझे पहला काम यह लगा कि मैंने अपने कार्यालय से खुशवंत सिंह से सम्पर्क करने को कहा ताकि पेंगइन[Penguin] विंकिंग द्वारा प्रकाशित इस शानदार पुस्तक के लिए मैं उनको बधाई दे सकूं।
खुशवंत सिंह के घर पर फोन उठाने वाले व्यक्ति ने मेरे कार्यालय को सूचित किया कि वे फोन पर नहीं आ सकेंगे। एक संदेश यह दिया गया कि यदि आडवाणी खुशवंत सिंह ही को मिलना चाहते हैं तो शाम को आ सकते हैं। मैंने तुरंत उत्तर दिया कि आज शाम को मेरा अन्यत्र कार्यक्रम है लेकिन अगले दिन में निश्चित ही उनसे मिलने आऊंगा।

 लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया

लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया


खुशवंत सिंह का जन्म 2 फरवरी, 1915 को हुआ। इसलिए जब फरवरी, 2013 में यह पुस्तक प्राप्त हुई तो मैं जानता था कि उन्होंने अपने जीवन के 98 वर्ष पूरे कर 99वें में प्रवेश किया है!
मैंने किसी और अन्य लेखक को नहीं पढ़ा जो सुबोधगम्यता के साथ-साथ इतना सुन्दर लिख सकता है, और वह भी इस उम्र में। इसलिए इस ब्लॉग के शीर्षक में मैंने न केवल पुस्तक अपितु लेखक की भी प्रशंसा की है।
पुस्तक की शुरुआत में शेक्सपियर की पंक्तियों को उदृत किया गया है:

दिस एवव ऑल, टू थाइन ऑन सेल्फ बी टू्र
एण्ड इट मस्ट फॉलो, एज दि नाइट दि डे,
थाऊ कांस्ट नॉट दैन बी फाल्स टू एनी मैन।
हेमलेट एक्ट-1, सीन III

(भावार्थ: जो व्यक्ति अपने बारे में ईमानदार होगा वही दूसरों के बारे में झूठा नहीं हो सकता।)
मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक मन को हरने वाले प्रमाण का तथ्य है कि खुशवंत सिंह ने अपने बारे में लिखते समय भी उन्होंने असाधारण साफदिली के साथ लिखा है। उनके परिचय के पहले दो पैराग्राफ उदाहरण के लिए यहां प्रस्तुत हैं:
”परम्परागत हिन्दू मान्यता के अनुसार अब मैं जीवन के चौथे और अंतिम चरण संन्यास में हूं। मैं कहीं एकांत में ध्यान लगा रहा होऊंगा, मैंने इस दुनिया की सभी चीजों से लगाव और अनुराग छोड़ दिया होगा। गुरु नानक के अनुसार, नब्बे की आयु में पहुंचने वाला व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है, इस कमजोरी के कारणों को नहीं समझ पाता और निढाल सा पड़ा रहता है। अपने जीवन के इस मोड़ पर मैं अभी इनमें से किसी भी अवस्था में नहीं पहुंचा हूं।
अठानवें वर्ष में, मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि हर शाम को सात बजे मैं अभी भी माल्ट व्हिस्की के एक पैग का आनन्द लेता हूं। मैं स्वादिष्ट खाना चखता हूं, और ताजा गपशप तथा घोटालों के बारे में सुनने को उत्सुक रहता हूं। मुझसे मिलने आने वाले लोगों को मैं कहता हूं कि यदि किसी के बारे में आपके पास अच्छा कहने के लिए नहीं है, तो आओ और मेरे पास बैठो। मेरे आस-पास की दुनिया के बारे में जानने की उत्सुकता मैंने बनाए रखी है; मैं सुंदर महिलाओं के साथ का आनन्द लेता हूं; मैं कविताओं और साहित्य तथा प्रकृति को निहारने का आनंद उठाता हूं।”
प्रस्तावना के अलावा पुस्तक में सोलह अध्याय हैं। एक पूर्व पत्रकार होने के नाते यह तीन विशेष मुझे ज्यादा पसंद आए:
1- दि बिजनेस ऑफ राइटिंग
2- व्हाट इट टेक्स टू बी ए राइटर
3- जर्नलिज्म दैन एण्ड नाऊ
***‘डीलिंग विथ डेथ‘ शीर्षक वाले अध्याय में लेखक लिखता है :
वास्तव में मृत्यु के बारे में, मैं जैन दर्शन में विश्वास करता हूं कि इसका जश्न मनाना चाहिए। सन् 1943 में जब मैं बीसवें वर्ष में था तभी मैंने अपनी स्वयं की श्रध्दांजलि लिखी थी। बाद में यह लघु कहानियों के मेरे संस्करण में ‘पास्चुमस‘ (मरणोपरांत) शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। इसमें मैंने कल्पना की कि दि ट्रिब्यून ने अपने मुखपृष्ठ पर एक छोटे चित्र के साथ मेरी मृत्यु का समाचार प्रकाशित किया है। शीर्षक इस तरह पढ़ा जाएगा: ‘सरदार खुशवंत सिंह डेड; और आगे छोटे अक्षरों में प्रकाशित होगा: गत् शाम 6 बजे सरदार खुशवंत सिंह की अचानक मृत्यु की घोषणा करते हुए खेद है। वह अपने पीछे एक युवा विधवा, दो छोटे बच्चे और बड़ी संख्या में मित्रों और प्रशंसकों…. को छोड़ गए हैं। दिवगंत सरदार के निवास पर आने वालों में मुख्य न्यायाधीश के निजि सचिव, अनेक मंत्री और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।‘
पुस्तक के अंत में एक अध्याय ”ट्वेल्व टिप्स टू लिव लॉन्ग एण्ड बी हैप्पी” (लंबे और प्रसन्न जीवन के बारह टिप्स) शीर्षक से इसमें है। मेरी सुपुत्री प्रतिभा ने मुझे कहा: ”इस पुस्तक को पढ़े बगैर ऐसा लगता है कि खुशवंत सिंह द्वारा बताए गए टिप्स में से अधिकांश का आप पालन कर रहे हैं। इस पुस्तक में बताए गए टिप्स में से दो अत्यन्त मूल्यवान यह हैं: अपना संयम बनाए रखें, और झूठ न बोलें! और आप लगभग सहज भाव से दोनों का पालन करते हैं।”
पुस्तक का अंतिम अध्याय स्मृतिलेख (एपटैफ) है जोकि निम्न है:
जब मैं नहीं रहूंगा तब मुझे कैसे स्मरण किया जाएगा? मुझे एक ऐसे व्यक्ति के रुप में स्मरण किया जाएगा जो लोगों को हंसाता था। कुछ वर्ष पूर्व मैंने अपना ‘स्मृति लेख‘ लिखा था:
यहां एक ऐसा शख्श लेटा है जिसने न तो मनुष्य और न ही भगवान को बख्शा,
उसके लिए अपने आंसू व्यर्थ न करो, वह एक समस्या कारक व्यक्ति था,
शरारती लेखन को वह बड़ा आनन्द मानता था,
भगवान का शुक्रिया कि वह मर गया, एक बंदूक का बच्चा।
-खुशवंत सिंह
रविवार 3 मार्च, 2013 को मैं सरदार खुशवंत सिंह से मिलने नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान सुजान सिंह पार्क (उनके दादा के नाम पर) गया। मैंने उन्हें इस पुस्तक को लिखने पर हार्दिक बधाई दी और उनका अभिनंदन किया। चाय पीते हुए उस स्थान पर एक घंटा आनन्द से गुजारा। मैं उनकी पुत्री माला से भी मिला जो साथ वाले फ्लैट में रहती हैं और उनकी अच्छे ढंग से देखभाल करती हैं।