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Tag: L K ADVANI’S BLOG

श्वेत पत्र के बावजूद देश से बाहर काला धन भेजने में २४%बढ़ोत्तरी हुई,२०११ में ४ लाख करोड़:एल के अडवाणी के ब्लॉग से

श्वेत पत्र के बावजूद देश से बाहर काला धन भेजने में कोई रुकावट नहीं लगाईं गई जिसके फलस्वरूप बीते वर्षों के मुकाबिले काला धन भेजने में २४%बढ़ोत्तरी हुई,और २०११ में ४ लाख करोड़ तक जा पहुंची :एल के अडवाणी के ब्लॉग से
भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने केंद्र सरकार की कथनी और करनी के अंतर को उजागर करते हुए विदेशों में भेजे जा रहे भारतीय धन में बढ़ोत्तरी पर चिंता व्यक्त की है |
अपने ब्लॉग के टेल पीस[TAILPIECE] में अडवाणी ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा ब्लैक मनी पर श्वेत पत्र प्रस्तुत किये जाने के पश्चात भी वर्ष २०११ में ४ लाख करोड़ का काला धन गैर कानूनी तरीके से बाहर भेजा गया |
ब्लॉगर अडवाणी ने २०११ में निकाली गई अपनी ४० दिवसीय जन चेतना यात्रा[ Jana Chetna Yatra. ] को याद करते हुए बताया कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य काला धन देश में वापिस लाना + भ्रष्टाचारको समाप्त करना +मुद्रास्फूर्ति+फ़ूड इन्फलेशन को रोकना था |इस यात्रा को पिछली यात्राओं से अधिक समर्थन मिला जिसके दबाब में केंद्र सरकार को भी संसद में श्वेत पत्र प्रस्तुत करना पड़ा लेकिन दुर्भाग्यवश उसके पश्चात कोई फॉलोअप[follow-up] नहीं हुआ और एक पैसा भी भारत नहीं लाया जा सका|अडवाणी ने [international watchdog Global Financial इंटीग्रिटी[ [(GFI) ] के हवाले से बताया कि वर्ष २०११ में बीते वर्षों के मुकाबिले २४%अधिक काला धन विदेशों में भेजा गया जो ४ लाख करोड़ है

पाकिस्तान के आक्रमण पर बदल बदल कर दिए गए रक्षा मंत्री के बयानों से देश और सरकार की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची है : लाल कृषण अडवाणी

भारतीय जनता पार्टी[भाजपा] के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने संसद सत्र को व्यर्थ करने के लिए केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की | अडवाणी ने अपने ब्लाग में बताया है कि संसद के मानसून सत्र में तेलंगाना के गठन को लेकर सरकार की ढुल मुल नीति + सीमा पर हुए पाकिस्तान के आक्रमण पर बदल बदल कर दिए गए रक्षा मंत्री के बयानों से देश और सरकार की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची है प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से
इन इकतालीस वर्षों के अपने संसदीय जीवन में मैंने पहले कभी भी नहीं देखा कि किसी सरकार ने संसद सत्र को इतनी बुरी तरह से व्यर्थ कर दिया हो जैसाकि यूपीए सरकार ने संसद के वर्तमान मानसून सत्र को किया है।
तीन सप्ताह का सत्र घोषित किया गया था। पहला सप्ताह समाप्त हो गया है। एक दिन भी न तो प्रश्नकाल हो सका या न ही कोई अन्य कामकाज। समूचे सप्ताह में रोज हंगामा होता रहा। और यह हंगामा मुख्य रुप से आंध्र से जुड़े कांग्रेसजनों ने किया-जो तेलंगाना का विरोध और आंधा प्रदेश को संयुक्त रखने की मांग कर रहे थे।
पहले सप्ताह के व्यर्थ जाने में मुख्य कारण तेलंगाना के बारे में घोषणा करना रहा। भाजपा सदस्य सरकार से बार-बार अनुरोध करते रहे कि वह अपनी पार्टी के सदस्यों को संयम में रखें परन्तु इस दिशा में कोई कोशिश होती भी नहीं दिखाई दी! इससे आश्चर्य होता है कि आने वाले दो सप्ताहों के सत्र की सत्तारुढ़ दल कैसे योजना बनाएगा!
तेलंगाना आंदोलन के दशकों पुराने इतिहास में जाए बगैर मुझे स्मरण आता है कि 9 दिसम्बर, 2009 का, जब यूपीए सरकार ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की थी, तब केंद्रीय गृह मंत्री श्री पी. चिदम्बरम ने घोषणा की कि भारत सरकार एक पृथक राज्य तेलंगाना बनाने की रुकी हुई प्रक्रिया को राज्य विधानसभा में विधेयक पारित कराकर शुरु करेगी। सभी को लगा था कि इस हेतु आवश्यक विचार-विमर्श कांग्रेस पार्टी के भीतर हो गया होगा। लेकिन इस घोषणा से आंध्र और रायलसीमा में विरोध शुरु हो गया। 23 दिसम्बर, 2009 को भारत सरकार ने दूसरी घोषणा की कि जब तक सभी दलों से एक आम सहमति नहीं बन जाती तब तक तेलंगाना पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
इसका अर्थ हुआ गृह मंत्रालय की घोषणा का उलट होना। अब जो हो रहा है उससे तेलंगाना के लोग महसूस कर रहे हैं कि यह घोषणा आगामी चुनावों में फायदा उठाने के उद्देश से की गई है और सत्तारुढ़ दल ने एक बार फिर से उन्हें वेबकूफ बनाया है।
मुझे याद है कि एनडीए शासन के दौरान तीन नए राज्यों-उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड-का निर्माण कितनी सहजता से हुआ। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार-इन तीन राज्यों जिनमें से उपरोक्त तीनों राज्यों का जन्म हुआ, की विधानसभाओं ने इनके पक्ष में प्रस्ताव पारित किए और संसद के दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से आवश्यक विधेयक पारित किए। यह सब इसलिए हासिल हो सका क्योंकि भाजपा इन नए राज्यों के बारे में इच्छुक थी और इस सम्बन्ध में आवश्यक आधार कार्य कर लिया गया था।
तब भी भाजपा तेलंगाना के पक्ष में थी लेकिन चूंकि उस समय हमारी सरकार को समर्थन दे रही सहयोगी पार्टी तेलुगूदेसम इसके पक्ष में नहीं थी, अत: हमारी सरकार इसके बारे में बात तक नहीं कर सकी।
तेलंगाना मुद्दे को गलत ढंग से ‘हैंडल‘ करने के चलते अब तक का संसद सत्र एकदम व्यर्थ गया है। परन्तु पिछले सप्ताह नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर एक गंभीर त्रासदी घटी, जिसने इस सरकार की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है-विशेष रुप से रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी द्वारा त्रासदी के दिन गड़बड़ करने से।
मैं कहना चाहूंगा कि यदि पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पर घात लगाकर हमारे पांच जवानों को मार गिराया, तो एंटोनी के वक्तव्य से व्यथित भारतीय संसद ने रक्षा मंत्री पर हमलाकर उन्हें अपने पहले दिन के अस्पष्ट वक्तव्य को वापस लेने पर बाध्य किया और उसके स्थान पर दूसरा वक्तव्य आया जो पाकिस्तान के विरुध्द राष्ट्रीय आक्रोश को पूरी तरह से प्रकट करता है।
संसद में रक्षा मंत्री के वक्तव्य के बारे में चौंका देने वाली यह बात कि उन्होंने इस घटना के बारे में सेना द्वारा जारी किए अधिकारिक बयान में जानबूझर बदलाव किए-बदलाव पाक सरकार और पाक सेना को इस हमले जिम्मेदारी से बचाने के लिए किए गए।
सेना के बयान में बदले गए अंश का उदाहरण:
पीआईबी (रक्षा विभाग) का प्रेस वक्तव्य कहता है: ”हमला पाक सेना के जवानों के साथ लगभग 20 भारी हथियारबंद आतंकवादियों द्वारा किया गया।” रक्षा मंत्री एंटोनी ने कहा: ”हमला 20 भारी हथियारबंद आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहले लोगों से साथ मिलकर किया।”
संसद का वर्तमान सत्र शुरु होने से पूर्व ही प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के हवाले से मीडिया में प्रकाशित हुआ था कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ वार्ता करने वाले हैं और वह भी 26/11 के मुंबई के आतंकवादी हमलों के अपराधियों को भारत को सौंप जाने की शर्त को भुलाकर। इसलिए संसद को एंटोनी के 8 अगस्त के संशोधित वक्तव्य में यह देखकर प्रसन्नता हुई कि ”पाकिस्तान की आतंकवादियों के नेटवर्क संगठन और ढांचे को नेस्तानबूद करने में निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए और नवम्बर, 2008 में मुंबई पर आतंकी हमले के जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने में संतोषजनक कदम उठाने चाहिए ताकि शीघ्र न्याय हो सके।
घटनास्थल पर सेनाध्यक्ष के दौरे और रक्षा मंत्री को पूरे तथ्यों की जानकारी देने के बाद संसद में मंत्री के संशोधित संस्करण में पाकिस्तान को निम्न शब्दों में चेतावनी दी गई:
”निश्चित तौर पर इस घटना का पाकिस्तान के साथ हमारे सम्बन्धों और नियंत्रण रेखा पर हमारे व्यवहार पर असर पड़ेगा। हमारे संयम को कमजोरी नहीं समझना चाहिए और हमारी सशस्त्र सेना की क्षमता को तथा हमारे इस दृढ़ निश्चय को कि हम नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं होने देंगे, कम करके नहीं आंका जाना चाहिए था।”

मुगलों के प्रति नाराजगी प्रकट करने के लिए ही राजस्थान में स के स्थान पर ह का प्रयोग प्रारम्भ हुआ L K Advani’s blog

भजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी ने अपने नवीनतम ब्लॉग के पश्च्य लेख [टेल पीस] में बताया कि मुगलों के प्रति नाराजगी प्रकट करने के लिए ही राजस्थान में स के स्थान पर ह का प्रयोग प्रारम्भ हुआ|
प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लॉग से :
मैंने अपने जीवन के प्रारम्भिक बीस वर्ष कराची (सिंध) में बिताए। 1947 में मैंने कराची छोड़ा और अगले दस वर्ष राजस्थान में रहा।
मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार जोधपुर गया तो वहां किसी से मैंने पूछा ”समय क्या है?” उसने जो जवाब दिया वह कुछ ऐसा था जिसे मैं समझ नहीं पाया। जब मैंने दोबारा यह सवाल पूछा तो उसने साफ-साफ जवाब दिया ”साढ़े सात”! मैंने उन्हें कहा कि पहले आपने जो हिन्दी में बताया था वह मेरी समझ में नहीं आया।
बाद में मेरे एक मित्र ने मुझे एक किस्सा दोहराया। उसने बताया कि राजस्थान बीस से ज्यादा रियासतों से बना है। प्रत्येक रियासत के लोग स्वाभाविक रुप से अपनी रियासत पर गर्व करते थे। उसने यह भी कहा कि सामान्य तौर पर महाराणा प्रताप के राज्य मेवाड़ को लोग, वहां के योध्दाओं के शौर्य एवं वीरता के चलते समूचे राजस्थान में गर्व से देखा जाता है।
यह भी समान रुप से दृष्टव्य था कि जयपुर राज्य सदैव दिल्ली के मुगल सुल्तानों के सामने झुकने को तैयार रहता था, जिसके फलस्वरुप उनका सम्मान नहीं था।
उस समय एक दौर ऐसा आया जब दिल्ली के शासकों ने जयसिंह और मान सिंह को बुलाकर कहा कि मुगल सल्तनत जयपुर के महाराजा को सवाई उपाधि से विभूषित करना चाहती है, जिसका अर्थ होता था कि जबकि अन्य राजाओं की हैसियत एक के बराबर होगी परन्तु जयपुर के राजा की सवाई – यानी एक और चौथाईA
मुझे यह किस्सा सुना रहे मेरे मित्र ने बताया कि इस घटना के बाद से सभी अन्य रियासतों के लोगों ने तय किया कि वे स के बजाय ह सम्बोधन बुलाएंगे। वे जयपुर के राजा को सवाई नहीं हवाई बुलाएंगे। अत: उसने निष्कर्ष रुप में कहा कि जब आपने मुझसे समय पूछा तो ”साढ़े सात” कहने के बजाय मैंने ”हाडे हाथ” कहा जिसे आप समझ नहीं पाए।
(स का ह में रुपान्तरण एक सामान्य भाषायी परिवर्तन है। सप्ताह बना हफ्ता ( हिन्दू भी सिन्धु से उत्पन्न हुआ है। लेकिन इस मामले में मुगलों के प्रति नाराजगी इस किस्से में प्रकट होती है।)