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Tag: Meerut Air Port

हवाई अड्डे के निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें तैयार लेकिन पतनाला पुराणी जगह ही गिर रहा है

मेरठ में हवाई पट्टी को हवाई अड्डा बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें पूरी तरह तैयार हैं लेकिन इस सबके बावजूद दोनों सरकारों में अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया है|इस आपसी लड़ाई में १३३ एकड़ वाली हवाई पट्टी का तक इस्तेमाल भी बंद पडा हुआ है|
सेन्ट्रल सिविल एविएशन मिनिस्ट्री द्वारा ४३३ एकड़ लैंड की मांग की गई है जिसे गावं गगोल+कांशी+ कंचन पुर घोपला से अधिग्रहित की जानी है|
जिस भूमि का ग्रहण किया जाना है उसके लिए साड़े ग्यारह एकड़ भूमि वन विभाग की है|इसके लिए वन विभाग से एन ओ सी[ NOC ] ली जा चुकी है| इसके बदले में सी जाने वाली भूमि की खरीद के लिए एम् डी ऐ [ MDA ] द्वारा कार्यवाही की जानी है|यह अभी फाईलों में ही है|
सरकार के कब्जे में सत्ताईस एकड़ जमीन/ एम् डी ऐ की ढाई एकड़ / गगोल डेरी की दो एकड़ जमें के लिए भी कोई समस्या नही है|ग्राम पंचायत की साड़े सात एकड़ के अलावा प्राईवेट १३४ एकड़ और के लिए भी कोई समस्या नही है लेकिन इसकी रजिस्ट्री अभी लंबित है|
इस सबके अतिरिक्त मुख्य समस्या केंद्र द्वारा ४३३ एकड़ भूमि की मांग को लेकर हुआ है|जिसे पूरा करने के लिए भूमि अधिग्रहित की जानी है| टोटल खर्चा का आधा राज्य सरकार उठाने को तैयार हैं लेकिन इसके साथ आधा खर्चा केंद्र को उठाने की शर्त भी लगा रखी है| इस पर दोनों पक्षों में बातचीत जारी है|
एन सी आर / महानगर में हवाई अड्डे के बनने से दिल्ली के हवाई अड्डे का लोड भी कम होगा।
प्रमुख सचिव नागरिक उड्डयन अनिता सिंह ने मेरठ के डीएम व कमिश्नर को भेजे पत्र में कहा है कि हवाई अड्डे के लिए आवश्यक 433 एकड़ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की जाए डीएम के आदेश पर एसडीएम सदर ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। वह जमीन का सर्वे करके किसानों के नाम व जमीन का ब्यौरा धारा 4 के लिए नागरिक उड्डयन विभाग को भेजेंगे, जिसमें एक माह लगेगा। नागरिक उड्डयन विभाग ने हरी झंडी दी तो जमीन की कीमत की 10 फीसदी राशि जमा करानी होगी।
गौरतलब है कि दिल्ली स्थित इंटरनेशनल एयरपोर्ट मेरठ से मात्र ७० किमी दूर है,लेकिन मेरठ और आस पास से जाने वाला ट्राफिक यहाँ डायवर्ट हो सकेगा|सिविल एविएशन मिनिस्टर चौधरी अजित सिंह भी इसी छेत्र से हैं २०१४ के चुनावों में उतरने से पहले यहाँ कुछ करके दिखाना चाहते हैं लेकिन सूत्रों की माने तो केंद्र द्वारा ४३३ एकड़ भूमि कि मांग कुछ ज्यादा समझी जा रही है|दबी जुबान में यह भी कहा जाता रहा है कि जरुरत से अधिक अधिग्रहित भूमि का इस्तेमाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से किया जाना है इसीलिए केंद्र सरकार को बाज़ार भाव से जमीन की कीमत का आधा खर्च उठाना चाहिए |अब इस सब से ऊपरी टूर से दीखता तो यही है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों तैयार हैं मगर हवाई पट्टीका भविष्य अभी भी उजाले को तरस रहा है|कहा जा सकता है कि सारी बातें सर मात्थे लेकिन पतनाला वहीं पुरानी जगह ही गिर रहा है|