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मोदी जी !प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय राहत कोष पाकिस्तान से विस्थापितों के लिए बना था उन पुरुषार्थियों का भी ख्याल करो

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय राहत कोष के कामकाज की समीक्षा की और गुजरात मॉडल पर कई महत्वपूर्ण बदलाव भी सुझाये लेकिन पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए जनवरी, 1948 में बनाये गए राष्ट्रीय कोष अपने ६६ सालों में भी उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाये है |
प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने १९ जुलाई को प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय राहत कोष के कामकाज की समीक्षा की और कोष के प्रबंधन को लेकर कई महत्‍वपूर्ण बदलावों का सुझाव दिया। यह जान कर अच्छा लगा कि 16-05-2014 तक लेखापरीक्षित रुपये 6.82 9.63 2038.०१ का अब उचित उपयोग हो पायेगा |
गुजरात मॉडल की चर्चा करते हुए पी एम का कहना है कि लाभ पाने वालों का चुनाव व्‍यापक, वैज्ञानिक और मानवीय आधार पर किया जाना चाहिये।
बच्‍चों, गरीबों और सरकारी अस्‍पतालों के मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जानलेवा रोगों को प्राथमिकता देते हुए ऐसे मामलों का निपटारा उनके महत्‍व और जरूरत के मुताबिक किया जाना चाहिए।
श्री नरेन्‍द्र मोदी ने सहायता के लिए आई अपीलों की सुनवाई में लगने वाले समय को कम करने के निर्देश भी दिए।
उन्‍होंने कहा कि ऐसे मामलों को चुनने के लिए होने वाले ड्रॉ इस तरह होने चाहिए जिससे कि सहायता पाने के सही हकदारों के मामले छूट न जाएं।
यह तय किया गया कि राहत कोषों से सहायता या लाभ पाने वाले ऐसे सभी लोगों को प्रधानमंत्री की ओर से एक पत्र भेजा जाए। जिन लोगों की सहायता पाने की अपील को मंजूरी मिल गई हो, उन्‍हें एसएमएस के जरिये सूचना दी जाएगी।
इसके अलावा श्री मोदी ने प्रधानमंत्री विवेकाधीन कोष+प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय रक्षा कोष+ प्रधानमंत्री छात्र सहायता कोष + प्रधानमंत्री लोक कला कोष जैसे प्रधानमंत्री के अन्‍य कोषों के कामकाज की समीक्षा भी की।
यहाँ यह बताना जरूरी है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोषकी स्थापना जनवरी, 1948 में पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए की गई थी |
पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी।
प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़+चक्रवात + भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है। , हृदय शल्य-चिकित्सा+गुर्दा प्रत्यारोपण+ कैंसर आदि के उपचार के लिए भी इस कोष से सहायता दी जाती है।
गौरतलब है कि यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है। कोष की धनराशि बैंकों में नियत जमा खातों में रखी जाती है। कोष से धनराशि प्रधान मंत्री के अनुमोदन से वितरित की जाती है।
सम्भवत सरकारी स्तर पर यह मान लिया गया है कि विस्थापितों के लिए जनता के अंशदान गठित इस कोष कि अब जरुरत विस्थापितों को नहीं है इसीलिए इसे अन्य सामाजिक कार्यों में लगाय जाने लगा है इसमें मुख्यत प्राकृतिक आपदाएं ही हैं | दुर्भाग्य से उत्तराखंड जैसे नव गठित प्रदेश में इसके सदुपयोग पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं |
अब चूँकि पी एम ने शिक्षा और चिकित्सा को प्राथमिकता दिए जाने के आदेश दिए हैं लेकिन अभी भी देश में अनेकों ऐसे विस्थापित परिवारों के वंशज हैं जो कंपनसेशन को तरस रहे हैं अधिकांश लोगों को कागजों में जमीन एलॉट की गई थी ये सभी कागज पंजाब के चंडीगढ़ में दफन हैं और लाभार्थियों को पंजाब और हरियाणा के चक्कर लगवाये जाते हैं सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रिहैबिलिटेशन/पुनर्वास विभाग के चंडीगढ़ स्थित कार्यालय और पंजाब के अन्य जिलों में ऐसे अनेको मामले हैं जिन्हें हरियाणा में रैफर किया जा रहा है वहां जा कर पता चलता है कि जमीन पर तो किसी और का अवैध कब्ज़ा है|दस्तावेज उर्दू में हैं सो पढ़ने के लिए भी विशेष व्यवस्था करनी पढ़ती हैं
सोर्स : पी एम ओ