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Tag: Religious Poetry

सच्चे गुरु के बगैर माया रुपी जाल से मुक्ति नही मिलती

माया दीपक नर पतंग , भ्रमि भ्रमि इवैं पड़ंत ।
कह कबीर गुरु ग्यान तैं , एक आध उबरंत ।
भाव: कबीर दास जी कहते हैं कि जीव पतंगे के समान बार-बार माया रुपी
दीपक के प्रति आकर्षित होकर भ्रमजाल में पड़ जाता है और अपने जीवन को बिगाड़ लेता है । एकाध ही गुरु कृपा और गुरुज्ञान के सहारे इस आवागमन के चक्र से छूट जाता है । अर्थात- चाहे आप कितनी ही साधना,जप और नियमों में बंधे हैं जब तक आपको सच्चा गुरु नहीं मिल जाता , तब तक आप इस माया रुपी जाल से निकल नहीं सकते और न ही आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं ।
वाणी: संत कबीर दास जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

हे प्रभु मुझे आपने मोह माया की दुनिया में फंसा तो दिया है अब इससे निकलने में मदद भी करो

साहिब कौन देस मोहि डारा ।
साहिब कौन देस मोहि डारा ॥
वह तो देश अजर हंसन का ।
यह सब काल पसारा ॥
भाव: इन शब्दों में रूह की पुकार है । हे परमात्मा , ये तूने क्या किया ? मैं जो सतनाम की वासी हूँ , महाचेतनता के समुद्र की बूंद हूँ , मुझे मोह माया की दुनिया में फंसा दिया है और अब मेरी ऐसी शोचनीय अवस्था है कि कुछ कहते नहीं बनता । मेरी मदद कर , मुझे अपने घर ले चल । मेरी हालत ऐसी है कि मैं मोह माया में , इन्द्रियों के घाट पर , रो रही हूँ , हे गुरुवर , मुझ पर दया करो और मुझे अपने निज घर ले चलो । जो मेरा असली देश है वह तो अविनाशी है , वहां रहने वाले हंस वृत्ति के लोग हैं जो सत – असत का निर्णय कर सकते हैं । मगर इस दुनिया में जहाँ तुमने मुझे डाल दिया है , सब कुछ नष्ट होने वाला है ।
वाणी : श्री धर्म दास जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

 प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

परम पूज्य स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ का एक अंश.

मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.
भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी कितनी अधिक कृपा है कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके पावन चरणों सेदूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ भी नहीं होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.

प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल से ज्यादा नहीं है.

श्री रामशरणम् आश्रम ,
गुरुकुल डोरली , मेरठ,
प्रस्तुती राकेश खुराना