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लोक सभा की ८४ रिजर्व्ड सीटों पर कब्ज़ा करने के लिए राजनीतिक दलों ने, चुनावों की तैय्यारी शुरू की

२०१४ के इलेक्शनों में दिल्ली के तख्त तक पहुँचने के लिए राजनीतिक दलों ने दलित कार्ड खेलने शुरू कर दिए हैं |मंडल कमीशन आंदोलन के बाद अब फिर से दलित वर्ग को लुभाने के लिए कांग्रेस ही नहीं भाजपा भी नारे लगाने लग गई है भाजपा के पी एम् पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पिछड़ा+गरीब होने के ढोल पीटे जा रहे हैं | भाजपा ने कभी तत्कालीन दलित नेता जगजीवन राम को अपना पी एम् प्रत्याशी घोषित करके अपनी उँगलियाँ जला ली थी उस समय भाजपालोक सभा की केवल दो सीटों पर ही सिमट कर रह गई|उसके बाद मंडल कमीशन के जवाब में कमंडल राजनीती शुरू हुई और उसका लाभ भी भाजपा को मिला और सत्ता सुख प्राप्त किया| ऐसे में अब क्या वजह है कि अपनी सुरक्षित विचारधारा के बजाय कांग्रेसी मार्ग का अनुसरण किया जाने लगा है यह मार्ग परिवर्तन अकारण ही नहीं हुआ है वास्तव में लोक सभा की ५४३ सीटों में से ८४ सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व्ड हैं |२००४ के चुनावों से यह ५ सीटें अधिक हैं
उत्तर प्रदेश में ====१७
वेस्ट बंगाल======१०
आंध्र प्रदेश ======७
तमिल नाडु======७
बिहार=========६
इस गणित को समझे बगैर भाजपा ने २००९ का चुनाव लड़ा और इन ८४ सीटों में से केवल १२ सीटों तक ही सिमट कर रह गई २००४ के चुनावों से भी यह ४ सीटें कम थी| सी पी एम् ने छह सीटों पर कब्जा किया जबकि जे डी यूं के हिस्से में चार सीटे ही आई |भाजपा की धुरंधर विरोधी कांग्रेस ने ३० रिजर्व्ड सीटें जीतीऔर सत्ता सुख को अपने पास रखने में सफलता पाई|
CourtesyPIB

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